व्यंग्य
अशांता कुमार
दर्शक
भाजपा
में कुछ दिनों पहले लगाने लगा था कि मरघट वाली शांति छायी हुयी है और हिन्दुओं का
खून खौलाने के लिए जो लोग लगातार सब्सिडी वाली गैस जलाये रखते थे उन्होंने गैस
सब्सिडी वापिस कर दी है। सारे फुदकने वाले मैंढक सुसुप्तावस्था को प्राप्त हो गये
लगते थे। किंतु सुसुप्तावस्था का भी एक मौसम होता है। जब धन की व्यापक बारिश होने
लगी हो तो दादुर कैसे चुप रह सकते थे। सोने से सारा सोना लुट सकता है। जब नींद
पूरी हो चुकी हो तो कोई कब तक करवटें बदलता रहे। इसीलिए चादरों के नीचे
कुलबुलाहटें शुरू हो गयीं।
सच्चाई यह है
कि जग सब रहे थे, पर संकेत कोई नहीं दे रहा था- जो बोले सो दरवाजा खोले। सभी गणेश
वाहनों के सामने एक ही प्रश्न था कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे! बाहर
कुत्तों के भौंकेने की रिकार्डिंग लगा दी गयी थी
और अन्दर ब्लैक कैट्स, कमांडो बन कर गश्त कर रहीं थीं। बूढों को ज्यादा
बूढा बता कर डरा दिया गया था, बहुएं यह कहते हुए ताने देने लगी थीं कि इन्हें बड़ी
जवानी चढ रही है, सीधी तरह घर में बैठ कर राम का नाम नहीं लिया जाता। बाहर निकल कर
आयेंगे तो कहेंगे कि घुटने पिरा रहे हैं थोड़ा तेल गरम कर दो। मार्ग दर्शक मंडल का
सम्मानजनक प्रतीक क्या दे दिया, रस्ता नापने चल देते हैं। रथयात्रा में क्या कम
रस्ता नापा था! अब घर में बैठें और मन ही मन, मन की बातें करते रहें। एकाध बुड्ढे
को तो समझ में आ गया कि उन्हें ब्रेन डैड मान लिया गया है। अब समस्त बुजुर्ग तो
मध्य प्रदेश के उन बुजुर्ग सांसद की तरह नहीं हो सकते जो मुख्य सचिव जैसे पद पर
रहने के बाद भाजपा में आये थे व दो बार सांसद चुने गये थे, पर जिन्हें पार्टी से
उपेक्षा पाकर आत्महत्या करना पड़ी थी। सुर्खियों और फ्लैश लाइटों के बीच रह कर
जवानी काट देने के बाद बुढापे में निष्क्रिय हो जाना सब के बूते की बात तो नहीं
होती। मुक्तिबोध की कविता भूल-गलती का सा
दृश्य –
खामोश !!
सब खामोश
मनसबदार
शाइर और सूफ़ी,
अल गजाली, इब्ने सिन्ना,
अलबरूनी
आलिमो फाजिल सिपहसालार, सब सरदार
हैं खामोश !!
सब
से पहले बाहर वालों ने कोयल की तरह कूक मारी। गोबिन्दाचार्य ने भूमि अधिकरण कानून
को लूट का कानून बताया। फिर वे अरुण शौरी बोले जिन्हें राजनाथ सिंह की अध्यक्षता
के समय हम्पी डम्पी और एलिस इन वंडरलेंड की याद आयी थी, उन्होंने अब कहा कि पार्टी
को तीन तिलंगे चला रहे हैं जिनके नाम मोदी अमित शाह और जैटली हैं। बाकी सब खामोश
हैं। फिर अभयदान प्राप्त बुजुर्ग जेठमलानी बोले कि उनका मोह भंग हो गया है और किसी
भ्रष्ट सरकार को ही भ्रष्ट न्यायधीशों की जरूरत होती है। इस खामोशी में अन्दर से जो
कोई सबसे पहले बोला वह ‘खामोश’ कहने के लिए ही जाना जाने वाला कलाकार था जिसका कुछ
भी दाँव पर नहीं लगा हुआ था।
मोह
गया माया गई, मनुआ बेपरवाह,
जाको
कछु नहिं चाहिए, सो ही शाहनशाह
एक बच्चा ही ताली
बजा कर राजा को नंगा कह सकता है। इससे जब जगार मच गयी तो चादर के नीचे नीचे से
आवाजें आने लगीं। हिम्मत जुटायी पुराने होम सेक्रेटरी ने जिनको पुराने पुलिस के
दिनों का भ्रम था और भाजपा में सम्मलित होकर भी जिनके अन्दर शर्म शेष रह गयी थी,
कहा कि किसी भगोड़े की पक्षधरता सरकार के लिए ठीक नहीं। अडवाणी जी बोले कि ऐसी दशा
में मैं होता तो स्तीफा दे देता।
स्बसे अधिक अशांत तो
तो शांताकुमार हो गये उन्होंने तो पार्टी के न बोल पाने सदस्यों की ओर से पार्टी
अध्यक्ष को चिट्ठी ही लिख दी कि व्यापम के भार से सारे पार्टी कार्यकर्ताओं के सिर
शर्म से झुक गये हैं। जब उनकी चिट्ठी को पुंगी बना कर यथास्थान फाइल करा दिया गया
तो उन्होंने उसे लीक करा दिया। उस लीकेज से जो बदबूदार गैस निकली तो चारों दिशाओं
में बदबू बिखेर गयी। वे चाहते थे कि मंत्री पद नहीं तो पार्टी के आंतरिक लोकपाल की
ही जिम्मेवारी दे दी जाती। वैसे पिछला अनुभव उनका भी अच्छा नहीं था। उनकी बहुत फूं
फाँ के बाद भी अनुशासन समिति के अध्यक्ष रहे शांता कुमार के कहने पर येदुरप्पा को
नहीं हटाया गया था। भाजपा ने तो उन की बात पर ध्यान देना तब से ही छोड़ दिया था जब
गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार के बाद मोदी के लिए उन्होंने कहा था कि लाशों पर
राजनीति करने की वजाय वे होते तो तत्काल त्यागपत्र दे देते। वैसे वे वैंकैया नायडू
और राजनाथ सिंह के विभागों पर टिप्पणी करके खुद भी बर्खास्तगी झेल चुके हैं। बाद
में हलचल ऐसी तेज हुयी कि शांता कुमार पर भी पंजाब के पूर्व मंत्री ने आरोप लगा
दिया कि उन्होंने अपने चुनाव के दौरान जो पैसा पंजाब से लिया था उसका हिसाब पार्टी
को नहीं दिया।
मध्य
प्रदेश में मलाईदार विभागों से लाभ न पा सकने वाले कार्यकर्ता व्यापम की रक्षा
हेतु सक्रिय नहीं हो पा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि मलाई दूसरे खायें और लठैती हम
करें- खीर में सौंझ महेरी में न्यारे।
निरंतर
जागते जा रहे अशांता कुमारों की भाजपा में पहले भी शांति नहीं सन्नाटा था और अब वह
भी टूट रहा है।
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