हैरान भक्तमंडली
दर्शक
भक्तमंडली
विमुद्रीकरण के कारण कष्ट में आ गयी है। उनकी दशा ऐसी है कि-
जो चुप रहूं तो मेरी
आकवत बिगड़ती है
जो बोल दूं तो खुदी
बेनक़ाब हो जाये
कुछ कहा भी न जाये,
चुप रहा भी न जाये। उसके ऊपर से आदेश ये कि जनता के बीच में जाकर विमुद्रीकरण के
फायदे समझाओ।
समझाएं तो तब जब खुद
समझ में आये हों। बकौल निदा फाज़ली-
कभी कभी यूं ही हमने
अपने दिल को समझाया है
जिन बातों को खुद
नहिं समझे, औरों को समझाया है
जो काली कमाई घर में
रखी हुयी थी, वह नौकरों चाकरों के नाम पर जमा करा दी थी। उस पर भी प्रधान सेवक बोल
गया कि वह दिमाग लगा रहा है कि किस तरह वह उन्हीं लोगों की हो जाये जिनके नाम जमा
की है। वो तो अच्छा हुआ कि उसका दिमाग लगा नहीं बरना जो चौबीस चौबीस हजार करके
निकाल रहे हैं वे सब हरि अर्पन हो जाते।
जनता के बीच नहीं जाते तो सरकार से रिस कर आने वाले स्त्रोत सूख सकते हैं और
जाते है तो उत्तर नहीं सूझते। पुजारी कहते हैं कि संकल्प नकद राशि से ही हो सकता
है पर पार्टी कहती है कि कैशलैस का प्रचार करो। जिस भगवा भीड़ को प्रचार के काम में
लाते थे वही आँखें तरेरने लगी है। पूछती है कि काला धन कितना निकला? नकली नोट
कितने बरामद हुये? आतंकवाद कितना खत्म हुआ? कितने लोग लाइन में लगे लगे मर गये?
कितनों की कन्याओं के कन्यादान रुक गये? कितने लोग बेरोजगार होकर गाँव लौट आये? कितने
किसानों को फसल की लागत तक नहीं मिली, कहा तो था कि कम से कम डेढ गुना सुनिश्चित
करेंगे? जब कार्ड से पैट्रोल भरवाया तो ढाई प्रतिशत सर्विस चार्ज लग गया और इसी
बीच उसके दाम भी बढ गये। खुद लखनऊ की रैली में चालीस हजार बसें और चौदह हजार
मोटरसाइकिलें आयीं पर उनमें से कितनों में कैशलैस पेट्रोल और डीजल भरवाया गया?
विमुद्रीकरण का विरोध करने वालों को काले धन का पक्षकार बताया पर पकड़े गये सरकारी
पार्टी के आदमी। आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों की ओर इशारा किया जाता है किंतु किसी
मुसलमान को नकली नोट के साथ नहीं पकड़ा गया, तो फिर गद्दारों की जाति धर्म और
पार्टी क्या है? जीडीपी कितना गिर गई? रुपया कितना और गिरेगा? कब तक बतायें कि
दूरगामी फायदा होगा? लोग पूछते हैं कि कितना दूरगामी होगा? जन्नत में बहत्तर हूरें
मिलेंगी। भई बद्दूर, भई बद्दूर, अब जायेंगे कित्ती दूर............।
राम राम करते करते जय जय श्रीराम तक आये थे और फिर उन्हें भी छोड़ कर मोदी मोदी
करने लगे थे, पर अब आवाज ही नहीं निकलती। अडवाणी पहले ही इमरजैंसी के संकेत दे
चुके थे, बाद में सबने कहा कि आर्थिक इमरजैंसी आ गयी और अब – हाय कमबख्त को किस
वक्त खुदा याद आया- की तरह साक्षी महाराजों के श्रीमुख से इमरजैंसी वाला परिवार
नियोजन का सन्देश निकलवाया जा रहा है। 2002 में जब चुनाव आयुक्त लिंग्दोह ने
गुजरात विधान सभा के चुनावों की तिथि को आगे बढा दिया था तब उत्तेजना को भुनाने को
उतावले बौखलाये मोदी ने ईसाई लिंग्दोह शब्द की व्याख्या ही नहीं की थी अपितु पाँच
बीबियां पच्चीस बच्चे का जुमला उछाला था पर अब साक्षी महाराज का गणित बदल गया है,
वे चार बीबियां चालीस बच्चे पर आ गये हैं। बंगाल में महाजोट वाली दीदी अलग से उछल
उछल पड़ रही हैं जिन्हें शारदा और रोज जैसे चिट फंड के सहारे ठंडा किया जा रहा है।
उनके पीछे पड़ने के लिए उन्हीं की टक्कर की उमा भारती को सामने लाया गया है। उमा
भारती भी खाली पड़े पड़े अपना बजन बढा रही थीं सो काम मिल गया। उत्तर प्रदेश के
पिछले विधानसभा चुनावों में तो उन्हें मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित कर के
प्रदेश बदर किया गया था पर इस बार अभी तक नाम घोषित नहीं किया जा सका है। लगता है
कि जैटली केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में नम्बर दो बनने के लिए राजनाथ सिंह को उत्तर
प्रदेश भिजवाने को प्रयास रत हैं, तब उनकी कीर्ति के मार्ग में सुब्रम्यम स्वामी
और कीर्ति आज़ाद ही शेष रह जायेंगे।
सरकारी पार्टी को जब अपनी ओर से कहने को कुछ नहीं होता तो वह विपक्षी की कमजोरी
को ही अपनी ताकत समझता है। वे मुलायम के कुनबे की कलह से ही उम्मीद बाँध रहे हैं,
पर दिल्ली और बिहार के भूत साँय साँय कर रहे हैं। बेचारा भक्त हैरान परेशान है।
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