व्यंग्य [लघुकथा]
लाल बत्ती का हलाल
होना
दर्शक
उनका ड्राइवर मैकेनिक के पास गाड़ी में हूटर लगवाने आया था। उसका चेहरा ऐसा उतरा हुआ था जैसे किसी घर में कोई बिना कोई सम्पत्ति छोड़े मर जाता है और अंतिम संस्कार का खर्चा छोड़ जाता है।
पूछा क्या हुआ, तो बोला लाल बत्ती गई। निराशा ऐसी थी जैसे दाग ने कहा है-
होश-ओ, हवास-ओ ताब-ओ
तवाँ दाग जा चुके
अब हम भी जाने वाले
हैं, सामान तो गया
बात सचमुच ही अफसोस की थी। न तो वे मंत्री थे और न ही आईएएस थे, पर लाल बत्ती
वाले थे। लाल बत्ती वाले इसलिए थे क्योंकि उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ
था। यह दर्जा बड़ी मुश्किल से मिलता है। इसका हाल वही होता है कि
मुहब्ब्बत रंग दे
जाती है, जब दिल, दिल से मिलता है
मगर मुश्किल तो ये
है, दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है
उन्होंने जिन्दगी भर फर्श बिछाया था, पोस्टर चिपकाये थे, रिक्शे पर लाउडस्पीकर
रख कर भाइयो बहिनो कह कर मीटिंग की घोषणा की, प्रदर्शन किये, नारे लगाये, नारों के
उत्तर दिये, बड़े नेता के आने तक भाषण दिये, फिर बड़े नेता के भाषण सुने, छोटे मोटे
पदाधिकारी बन कर उसे मोटे मोटे अक्षरों से अपने पुराने स्कूटर पर लिखवाया।
विधायकों का जलवा देख कर विधायक बनने के सपने पाले, सोचा जब हमारी पार्टी के दिन
आयेंगे तो हम भी चुनाव लड़ेंगे, विधायकों जैसे हाथ जोड़ कर गेन्दे की फूलों की माला
पहिनेंगे। हुआ भी वैसा ही। पार्टी के दिन फिरे, वे खुश हुये कि अब बनेंगे विधायक व
मौका लग गया तो मंत्री बनेंगे, लाल बत्ती की गाड़ी में फर्राटे मार कर निकल
जायेंगे।
पर पार्टी हाईकमान भी कोई चीज होती है। चुनाव आये। क्षेत्र का पुराना खाँटी विधायक
तत्कालीन सत्तारूढ पार्टी का था। कुत्ते की तरह उसने सूंघ लिया कि हवा किस तरफ की
बह रही है सो वह दिल्ली जाकर इनकी पार्टी के हाई कमान से मिल आया। देवता से मिलने
जाने पर प्रसाद तो चढाना ही पड़ता है। हाईकमान नगर में पधारे तो सीधे इनके पास आये,
घर के बच्चों को दुलारा और बोले कि आप लोगों की मेहनत की वजह से ही यह दिन आया है
कि डूबते जहाज से चूहे कूद कूद कर भाग रहे हैं। यहाँ का विधायक हमारी शरण में आ
रहा है, हमारी पार्टी में शामिल हो रहा है। मैं चाहता हूं कि आप ही उसके फार्म पर
अनुमोदन दें। मंच पर आप बैठेंगे। वे खुश हुये। विधायक ने बड़ा ताम झाम जोड़ लिया था।
वह अपने दो सौ साथियों के साथ शामिल हो रहा था। उसने पूरा मीडिया बुला लिया था
जिनके डिनर और और उसके पूर्व का कार्यक्रम भी सबसे बड़े होटल में तय था। मंच पर
हाईकमान ने उसका स्वागत किया, माल्यार्पण किया तो उसने उनके पैर छुये। हाईकमान के
इशारे पर इनके भी पैर छुये तो ये गद्गद हो गये। अगले दिन अखबारों में उसके और
हाईकमान के फोटो भरे हुये थे। इन्होंने सारे कोणों से देखा पर इनके कुर्ते की
किनोर तक किसी फोटो में नहीं दिखी। इसके साथ ही सम्भावना व्यक्त की गयी थी कि अगला
टिकिट उसी को मिलेगा। इन्हें धक्का लगा। सारा राष्ट्रवाद धरा रह गया। हिन्दू के
खून खौलाने का चूल्हा बुझ चुका था। जो हमेशा पार्टी की विचारधारा को गाली देता था,
वह अब इसी पार्टी की ओर से विधायक बनेगा और इन्हें जय जय कार करना पड़ेगी। काटो तो
खून नहीं।
जो होना था वही हुआ। उसे टिकिट मिला और इनकी शक्ल पर बारह बज रहे थे। इनने तय
किया कि ये विरोध करेंगे। जिस पार्टी के पक्ष में ज़िन्दगी भर चिचियाते रहे उसी को
हराने के लिए काम करेंगे। फुसफुसाहट हाईकमान तक पहुंची तो उन्होंने बुलावा भेजा।
बोले तुम्हारे प्रचार से अभी तक तो हमारी पार्टी का उम्मीदवार जीत नहीं सका था, सो
यह भी नहीं मान सकते कि अब हार जायेगा। पहली बार प्रदेश में सरकार बनने की
स्थितियां बन रही हैं तो क्यों अपने ज़िन्दगी भर के काम को मिट्टी में मिलाते हो।
सरकार बन गई तो केवल विधायक ही तो पद नहीं होता, सैकड़ों दूसरे भी मौके होते हैं।
पार्टी का कहा मानोगे तो फायदे में रहोगे।
झक मार कर उन्होंने पार्टी का कहा माना था, सो पार्टी ने उन्हें कोई पद देकर
लाल बत्ती की गाड़ी का मौका दिया था। पर उन्हें लाल बत्ती में बैठ कर एक महीना भी
नहीं हुआ था कि सबकी लाल बत्तियां गुल कर दी गयीं। वे पुनर्मूसको भव की स्थिति को
प्राप्त होने जा रहे थे। लाल बत्ती का ड्राइवर केवल ड्राइवर होने जा रहा था। बंगले
पर तो मातम ही छाया हुआ था।
लाल बत्ती हलाल हो गयी थी।
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