व्यंग्य
गंगा, नर्मदा, गाय,
मन्दिर, साध्वी, योगी,
दर्शक
भाषा, समाज की आत्मा होती है। हमारे देश में वही भाषा बदल रही है। कहा जाता है
कि भूत के पाँव उल्टे होते हैं, और जो भूत काल की ओर मुंडी घुमा कर चलने में ही
अपना भविष्य देखते हैं, उनका वर्तमान खराब ही होता है।
संघ परिवार भाषा पर विशेष ध्यान देता है। इसी के माध्यम से वे अपने परिवेश के
स्वरूप को बदलने का दम भरते हैं। ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों से
शिक्षित लोग जब विज्ञान पढने लगे व वैज्ञानिक दृष्टि से सोचने लगे तो उन्होंने भी समानांतर
स्कूल खोले और उनका नाम स्कूल की जगह मन्दिर रखा। जैसे सरस्वती शिशु मन्दिर। अब तय
है कि कोई मुसलमान मन्दिर में क्यों जाना चाहेगा, और दलितों का मन्दिर प्रवेश तो
वैसे ही वर्जित है। सो हो गया विभाजन। सवर्ण हिन्दू बच्चे मन्दिर में और बाकी
सरकारी स्कूलों में।
इस सादगी पै कौन न
मर जाये या खुदा
लड़ते भी हैं , और
हाथ में तलवार भी नहीं
मन्दिरों में स्कूल ड्रैस या यूनीफार्म नहीं पहिने जा सकते इसलिए उन्हें गणवेश
कहते हैं, संघ के गणवेश में अब हाफ पेंट की जगह फुल पेंट आ गया पर नाम गणवेश ही
रहा। पेंट पहिना जाता है किंतु ‘गणवेश” धारण किया जाता है। वे सड़क छाप नहीं होते
इसलिए चुनाव के दौरान ‘रोड शो’ नहीं करते अपितु ‘पथ संचलन’ करते हैं।
जहाँ आप मोटर, कार, ट्रक, जीप, आटो, आदि आदि विदेशी वस्तुओं का उपयोग करते
हैं, वहीं अडवाणी एंड कम्पनी रथ की सवारी करती है और रथ के सहारे ही दो लाख लोगों
को हाँक कर अयोध्या में मस्जिद गिराती नहीं अपितु विवादित ढाँचे को ध्वस्त करा
देती है, जैसे अगर विवाद हो तो सजा देने का काम उनके अधिकार क्षेत्र में आता हो।
इसी अधिकार के अंतर्गत राजस्थान का गृहमंत्री कहता है कि अलवर में मारा गया पहलू
खान गौ तस्कर था, और उसकी गुलाम पुलिस उसकी हत्या करने वालों के साथ साथ उस पर भी
केस कायम कर लेती है। अखलाख के घर में पाया गये मांस का डीएनए तय करने में
प्रयोगशालाओं को महीने लग जाते हैं किंतु भीड़ अपनी आस्था के कारण तुरंत तय कर लेती
है और सजा दे देती है। गुजरात में मृत पशु की खाल उतारने वाले जिन्दा लोगों की खाल
उतारने वाले किसी सरकारी न्यायाधीश की तुलना में अधिक सुख भोग रहे हैं।
पूरे देश में पुरातन काल छाया हुआ है, इसलिए देश में एजेंडा तय करने के लिए
मीडिया को क्रय कर लिया गया है। अब पूरे देश में न किसानों का लागत मूल्य और बाज़ार
भाव समस्या है, न बेरोजगारी समस्या है, न शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं में मची लूट
समस्या है, न कश्मीर समस्या है, न नक्सलवाद समस्या है, असली समस्या गाय है जिसके
बहाने अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक करके बहुसंख्यक भावनाओं को उभारना और उसकी पूंछ पकड़
कर वैतरिणी पार करना, या न कर पाना, ही समस्या है। पिछ्ले दिनों अनियंत्रित सोशल
मीडिया पर जितनी गायें कटते हुए देश ने देखीं उतनी तो शायद पौराणिक काल से अब तक
नहीं काटी गयी होंगीं। वोट इसी तरह झड़वाये जाते हैं।
गंगा का तो पूरा मंत्रालय बना दिया गया है जिसने तीन साल में गंगा की शुद्धता
के लिए तो कुछ नहीं किया, केवल बजट को ठिकाने लगाने के लिए तरीके तलाशे हैं। उस
विभाग की भगवा वस्त्रधारी मंत्री कहीं नदी की भावना में बह कर मध्य प्रदेश के घाट
पर न लग जायें इसलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सारे कामधाम छोड़ कर नर्मदा मैया की
जगह जगह पूजा आरती प्रारम्भ कर दी है और मान रहे हैं कि इन आयोजनों के बाद किनारे
पर गन्दगी छोड़ कर नदी शुद्ध हो जायेगी। नर्मदा के विस्थापित अभी भी परेशान हैं, पर
पूरी केन्द्र सरकार मैय्या की आरती गाने क्रमशः पधार रही है।
कहीं गंगा, कहीं नर्मदा, कहीं गाय, कहीं मन्दिर से भी पेट नहीं भरा तो उत्तर
प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी को ले आये और गले गले तक सरकारी विज्ञापनों
से भरा मीडिया शेष बचे स्थान पर योगी के कुल्ला करने तक की कहानियां किश्तों में
चला रहा है। जहाँ अनुशासन और प्रशासन पूरी तरह गुंडों के हाथों में आ गया हो, जहाँ
एसएसपी के घर में भीड़ लेकर एमपी घुसे जा रहे हों, जहाँ थानों में आग लगायी जा रही
हो, जहाँ ताजमहल को बाबरी मस्जिद बनाने की तैयारियां शुरू हो गयी हों, उस प्रशासन
की गाथाएं गायी जा रही हैं। गुण गाये जा रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें