व्यंग्य
भारतीय बूचड़खाना
पार्टी
दर्शक
चुनाव प्रचार के दौरान, सबसे पहले उन्होंने बूचड़ खाने बन्द कराने का वादा किया
था, और शपथ ग्रहण करने वाले दिन ही वादे के अनुसार बूचड़ खाने बन्द कराये जिनकी
संख्या तीन थी। वैसे भी वे चुनाव में सभी बूचड़खाने बन्द कराने के अपने वादे को
चुनाव बाद बदल कर अवैध बूचड़खाने बन्द कराने के स्तर पर ले आये थे व जिन तीन को
बन्द कराने का दावा किया वे पहले से ही बन्द थे। कहते हैं कि एक सैनिक दुश्मन का
कटा हुआ हाथ लेकर अपने कम्पनी कमांडर के पास पहुँचा और अपनी वीरता का बखान करने
लगा। कमांडर ने उसे शाबाशी देते हुए पूछा कि उसने दुश्मन का हाथ ही क्यों काटा सिर
क्यों नहीं काटा। वह बोला- श्रीमानजी उसका सिर तो पहले से ही कटा हुआ था।
जिस तरह प्रेम में मजनू को लैला की बिल्ली से भी प्रेम था उसी तरह नफरत में भी
होता है। नफरत की पाठशाला मनुष्यों से नफरत करना ही नहीं सिखाती वह दुश्मन की
वस्तुओं से भी नफरत करने लगते हैं। पानी की बचत के लिए केतली नुमा लोटा उपयोगी
बरतन है किंतु किसी गैर मुस्लिम संत द्वारा नहीं अपनाया गया, न मुसलमानों द्वारा
कमंडल अपनाया गया। गैर मुस्लिम मांसाहारियों की संख्या मुस्लिमों से कम नहीं है,
किंतु हिन्दू मुहल्ले में मुसलमानों को मकान न देने के पीछे उनके मांसाहारी होने
का बहाना बनाया जाता है। कसाई दोनों ही धर्मों के लोगों में पाये जाते हैं और
दोनों ही समाजों में कसाई शब्द को गाली की तरह ही प्रयोग किया जाता है। कहीं झटके
का खाया जाता है तो कहीं हलाल का खाया जाता है, कहीं गाय नहीं खायी जाती तो कहीं
सुअर नहीं खाया जाता। किंतु मुसलमानों के विरुद्ध नफरत पैदा करने वालों ने ऐसा
माहौल बना दिया है कि गैर मुस्लिमों का मांसाहार शाकाहारियों को उतना बुरा नहीं
लगता जितना कि मुस्लिमों का मांसाहार लगता है।
पत्रकार अभय दुबे ने सही कहा है कि गाय मारने वाले को फाँसी की सजा घोषित की
जाने वाली है पर मनुष्यों को मारने वालों को बड़ी बड़ी कुर्सियां मिल रही हैं। कसाई
तो अपने परिवार की रोटी के लिए पशुओं को मारने के लिए विवश है किंतु कुछ लोग तो
अपने सिंहासनों के लिए ही पूरे गुजरात को बूचड़खाने में बदल चुके हैं। मुनव्वर राना
ने कहा है कि-
बहुत सी कुर्सियां
इस मुल्क की लाशों पै रक्खी हैं
ये वो सच है जिसे
झूठे से झूठा बोल सकता
वैसे बूचड़खाने की सारी आवाजें भारतीय जनता पार्टी से आती सुनाई देती हैं।
हैदराबाद के भाजपा विधायक जो अपने शिखर के नेताओं के बहुत प्रिय हैं कहते हैं कि
जो राम मन्दिर निर्माण का विरोध करेगा उसका सिर काट देंगे। छत्तीसगढ में ईसाइयों पर
इसलिए हमला कर दिया जाता है कि वे बाइबिल और क्रास बांट रहे थे जो ‘आपत्तिजनक
सामग्री’ उनसे बरामद की गई। नाम दिया गया कि वे धर्म परिवर्तन करा रहे थे, जबकि
दबाव या लालच से धर्म परिवर्तन के खिलाफ देश में कानून है और किसी ने ऐसी कोई
शिकायत नहीं की थी। यही काम योगी के मुख्यमंत्री बनते ही महाराज गंज में किया गया
और बहाना वही धर्म परिवर्तन का। अलवर में विधिवत खरीद कर ले जायी जा रही गाय के
सच्चे गौ सेवक को इसलिए मार दिया जाता है, क्योंकि कथित गौ सेवकों को जिन मे से
80% को कभी प्रधान सेवक मोदी गौ गुंडे बतला चुके हैं, को गौकुशी की आशंका थी।
छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को
तो जल्लाद का काम दे देना चाहिए जो कहते हैं कि अगर कोई गाय को मारेगा तो उसे लटका
देंगे। वे शायद नहीं जानते कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के काम बँटे
हुये हैं। राँची में एक मुस्लिम युवक को हिन्दू लड़की से प्रेम के ‘अपराध’ में,
जिसे संघी भाषा में लव जेहाद कहा जाता है,
मार डाला गया। यूपी में मुख्यमंत्री तो क्या स्टार प्रचारक तक न बन पाये
वरुण गाँधी ने तो मुसलमानों के हाथ काटने वाला बयान देकर अपने नम्बर बढवाने की
कोशिश की थी, पर कारनामा कारगर नहीं रहा।
उज्जैन में संघ के प्रचारक केरल के मुख्यमंत्री का सिर काट कर लाने के लिए एक
करोड़ की घोषणा करते हैं, जिन्हें जेल ले जाने में शिवराज की पुलिस यह जानते हुए भी
देर कर देती है कि शाम के बाद प्रवेश नहीं मिलता व शासकीय सहानिभूति के कारण अगले
दिन उनकी जमानत हो जाती है। इसी उज्जैन में प्रोफेसर सव्वरवाल की हत्या के चश्मदीद
होने व वीडियो प्रमाण होने पर भी आरोपी छूट चुके हैं। न्यायालय भले अलग हो पर
अभियोजन तो अपना है।
उमा भारती हर मामले को संवेदनशील बनाने की कूटनीति को इतना आत्मसात कर चुकी
हैं कि बाबरी मस्जिद तोड़ने के मामले में फाँसी की सजा से कम पर राजी ही नहीं हैं।
मारो, काटो, हाथ काट दो, सिर काट दो, जबान काट दो, लटका दो, फाँसी दे दो, धाँय
धाँय, खचा खच मचा हुआ है। जब इतना कुछ पार्टी में ही हो रहा है तो आप ही बताइए कि
बूचड़खानों की जरूरत क्या है! बन्द करो सबको।
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