व्यंग्य
........... और अब लेखक मोदी
दर्शक
यही कमी रह गयी थी सो वो भी पूरी हुयी
जाती है। अब प्रधानमंत्री मोदी का लेखक अवतार सामने आने वाला है। बचपन में मगर
पकड़ने वाले बहादुर मोदी जी खुद को चाय बेचने वाला तो बताते हैं, पर कोई ऐसा सामने
नहीं आया जिसने उनके हाथ की चाय पी हो। पिछले दिनों तो वे जिस भी प्रोफेशन के
कार्यक्रम में जाते थे तो यह कहते थे कि बचपन में मैं यही बनना चाहता था। गज़ब तो
यह हुआ कि आईएएस अधिकारियों की सभा में भी कह दिया कि आप लोगों के साथ मेरा इतना
साथ हो चुका है अगर में राजनीति की जगह आईएएस हो गया होता तो अब तक इसके बड़े कैडर
पर पहुँच गया होता।
बहरहाल मोदीजी की किताब आने वाली है। और
यह किताब शिक्षा व्यवस्था पर आने वाली है। पर शायद मैं इसे गलत वर्गीकृत कर रहा
हूं, यह शिक्षा व्यव्स्था पर नहीं अपितु कह सकते हैं लाइफ मैनेजमेंट पर है। शिक्षा
तो ज्ञान प्राप्ति के लिए भी ली जा सकती है किंतु यह पुस्तक बच्चों को परीक्षा के
तनाव से बचाने के नुस्खों पर है। आप मजाक में मत लीजिए किंतु ऐसी पुस्तक लिखने के
लिए देश में मोदी जी से अधिक सुपात्र और कौन हो सकता है जिसने परीक्षा के लिए कभी
तनाव मोल नहीं लिया। मुख्य मंजिल सफलता है और जिसके लिए अगर डिग्री की जरूरत भी हो
तो उसके लिए परीक्षाओं का तनाव लेना क्यों जरूरी है? राहत इन्दौरी का एक शे’र है-
क्या जरूरी है कि ग़ज़लें भी खुद लिखी जायें
खरीद लायेंगे कपड़े कपड़े सिले सिलाये हुये
मूल लक्ष्य है सफलता, वह जैसे भी मिले,
इसलिए तनाव मत लो! और जो लेते हैं वे मोदी की किताब पढ कर तनाव मुक्त हो लें।
राम भरोसे को नौकरी के लिए बीए की डिग्री
की तुरंत जरूरत थी सो उसने नकली डिग्री बेचने वाले का पता लगाया, और बिल्कुल असली
इंतजाम वाली डिग्री खरीद लाया और नौकरी कर ली। जाँच वगैरह सब हुयी पर सब ठीक निकला
क्योंकि डिग्री बेचने वाले ने सारी व्यवस्था की हुयी थी। कुछ दिनों बाद जब उसे
प्रमोशन की चिंता सताने लगी सो उसने सोचा कि एम.ए. कर लिया जाये। ठीक समय पर उसने
विश्वविद्यालय में बीए की डिग्री के आधार पर फार्म भर दिया। पर जाँच में बीए की
नकली डिग्री पकड़ ली गयी, बड़ी मुश्किल पेश आयी और वह मुँहमांगी रकम देकर मुश्किल से
छूट पाया। गुस्से में वह बीए की डिग्री बेचने वाले के पास गया और सारी घटना बतायी
तो वह बोला कि तुम तो मूर्ख हो। तुम्हें एम.ए. का फार्म भरने की क्या जरूरत थी,
जैसे बीए की डिग्री खरीद कर ले गये थे, वैसे ही एम.ए. की ले जाते।
तनाव मुक्ति का इससे अच्छा उपाय और क्या
हो सकता है? वह तो अच्छा हुआ कि मोदी ने किताब लिखने का फैसला कर लिया, नहीं तो
राम भरोसे को लिखना पड़ती।
अयोध्या वाले मामले में गिरफ्तार लालकृष्ण
अडवाणी को झाँसी के पास माताटीला के रैस्ट हाउस में रखा गया था। उनकी देखरेख करने
वाले एक अधिकारी साहित्यकार थे। उनसे बातचीत में उन्होंने अडवाणीजी की तारीफ करते
हुए कहा कि अदवाणीजी बातचीत कम से कम करते हैं और अधिक से अधिक समय पढने में
बिताते हैं। मैं प्रभावित हुआ और यह बात मैंने कामरेड शैली को बतायी। शैली जी हँसे
और बोले बात तो सच है कि वे पढते रहते हैं पर वे स्वेट मार्टिन जैसों की ‘सफल कैसे
हों’ जैसी किताबें पढते हैं। यह बात सच थी।
एक प्रकाशक ने पिछले दिनों बताया था कि
पुस्तक मेलों में साहित्य नहीं अपितु कैरियर, कम्प्टीशन, कुकिंग, गार्डनिंग, और
ज्योतिष की किताबें ज्यादा बिकती हैं। अगर लेखकों को पुरस्कार, और सरकारी
पुस्तकालयों की खरीद न हो तो साहित्य वही छपेगा जिस पर रायल्टी खत्म हो चुकी है।
मोदी जी ने सही कहा था कि उनके खून में
व्यापार है। पुस्तक लिखने के लिए उन्होंने सही विषय चुना और अच्छा किया कि गैर
सरकारी प्रकाशक चुना। ममता बनर्जी भी तो अपनी पेंटिंग्स ऐसे ही बेचती रही हैं, पता
नहीं आजकल दार्जलिंग या बशीरहाट क्या पेंट कर रही हैं!
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