व्यंग्य
विधायक बाजार आनलाइन
दर्शक
जब से आन लाइन मार्केटिंग शुरू हुयी है तब
से आदमी नित्य क्रियाओं के लिए जाने के अलावा अपनी देहरी नहीं लाँघता। वैसे तो
विद्या बालान ने मोदी जी के आग्रह पर घर घर शौचालय बनवा दिये हैं, और उनके घर भी
शौचालय बनवा दिये जिनके पास घर ही नहीं था, पर क्या करें आदत भी कोई चीज होती है।
वे आदत बदलने की भी सोच सकते थे बशर्ते नलों में जरूरत के मुताबिक पानी आता होता,
इसलिए पर्यावरण का संतुलन बनाये रखना होता है।
अब हर आर्डर आनलाइन होता है और हर डिलीवरी
आन डोर होने लगी है। जो चाहिए वह एक घंटे में हाजिर है जिसके भुगतान के लिए कुत्ता
घसीटी की तरह, बस कार्ड घसीटना पड़ता है और खाते से पैसे कट जाते हैं, बशर्ते उसमें
हों। हर सुपर बाज़ार ग्राहकों को तरह तरह की छूट देते हैं, विशेष रूप से उन वस्तुओं
पर जो उनके यहाँ बिकती नहीं हैं। कभी कभी तो एक की खरीद पर एक फ्री मिलता है।
कुछ ग्राहक दुकानदार को बहुत प्रिय होते
हैं, क्योंकि वे मोलभाव नहीं करते। सुपर बाजार में इसीलिए दुकानदार और मालिक के
सम्बन्ध खराब नहीं होते क्योंकि मोलभाव कर ही नहीं सकते, सब पर बारकोड का कोढ लगा
हुआ होता है। पिछले दिनों रिटेल ट्रेड में विदेशी निवेश का प्रतिशत बढाने वाली
भाजपा को समझ में आया कि सुपर बाजार में सब वस्तुएं नहीं मिलतीं, विधायक तो खुद खरीदने
जाना पड़ता है। उन्होंने आन लाइन आर्डर करना चाहा पर नहीं मिले। मजबूरन ठेकेदार को
ठेका दिया, पर एक विधायक कम रह गया। बड़ी निराशा हुयी। दिगम्बर होकर खेत में हल
चलाया, फिर भी बरसात नहीं हुयी। सचेत हो गये, अगली बार से आन लाइन टेंडर निकालने
की सोच रहे हैं। डाइरेक्ट डील, नो बिचौलिया।
नये युधिष्टर का नया कुत्ता
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युधिष्टर के कुत्ते की कहानी बहुत
प्रसिद्ध है। वे जब बिना रथ के अपनी अंतिम यात्रा पर पत्नी और भाइयों के साथ निकले
तो उनके साथ एक सातवां प्राणी और था और वह था युधिष्टर का कुत्ता। वह सदा की तरह
उनके साथ साथ चला। जब स्वर्ग के लिए उन्हें ले जाने देवदूत आये तो उन्होंने कहा कि
मेरा कुत्ता भी मेरे साथ जायेगा। देवदूत असमंजस में थे, क्योंकि युधिष्टर कोई बिल
क्लिंटन तो थे नहीं कि कुत्ते गाँधीजी की समाधि राजघाट तक चले जायें, और फिर वह तो
स्वर्ग था। पर युधिष्टर अड़ गये, बोले जायेंगे तो कुत्ते को साथ लेकर जायेंगे।
अंततः स्वर्ग के नियम बदले गये और स्वर्ग में कुत्ते का प्रवेश होने लगा। तब से
ऐसी परम्परा पड़ी कि प्रत्येक राजनेता अपने कुत्तों को साथ लेकर चलने लगा।
अब यह परम्परा और सुधर रही है, कुत्तों का
प्रभाव इतना बढ गया है कि वह युधिष्टर के बिना ही स्वर्गों के दौरे करने लगा है व
उनकी ही तरह गार्ड आफ आनर प्राप्त कर रहा है। जब जब जहाँ जहाँ सफाई दिखने लगे तो
समझ लेना कि युधिष्टर का कुत्ता आ रहा होगा।
कुत्ते और युधिष्टर का तो ठीक है पर इन
स्वर्ग के देवदूतों को क्या हुआ है?
बलि के लिए पूजा
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जब बड़े जोर शोर से नर्मदा मैय्या का सरकारी
पूजा पाठ चल रहा था तब उन्हें भी लगा होगा कि अभी तक तो ये सब हुआ नहीं, पर अब
क्यों? जरूर दाल में कुछ काला है। अब जब पुजारी के भेष वाले लोग गाँव के गाँव की
बलि देने पर उतर आये हैं तब समझ में आता है कि बलि के लिए पूजा की गयी थी।
सारी बलियां पूजा के बहाने पेट और मुँह के
स्वाद से जुड़ी होती हैं। नईम जी की गज़ल का एक शे’र है-
आप झटका, हलाल के कायल
जान तो लोगो मेरी जाना है
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