व्यंग्य
तूल देना और तेल लगाना
दर्शक
भगवा वेषधारी अजय सिंह विष्ट जो खुद को
योगी बताते हुए अपना नाम योगी आदित्यनाथ बताते हैं, ने कहा है कि माब लिंचिंग को ज्यादा ही तूल दिया जा रहा
है। योगी के शब्दों के सही अर्थ जानने के लिए मैंने शब्दकोश खोला और तूल का अर्थ
देखा अर्थ था तूल, माने कपड़ा, लम्बाई, कोमल पंख, प्रसार, रुई, सविस्तार विवरण ।
मैं धन्य हो गया। अगर कपड़ा के अर्थ में
लें तो मृतक को कफन देने की परम्परा है। अजय सिंह विष्ट ने भी भले ही गोरखपुर
अस्पताल में मारे गये बच्चों को कफन न दिया हो किंतु उनके परिवार वालों ने तो तूल
देना जरूरी समझा होगा। आखिर मोब लिंचिंग में एक दो नही दर्जनों लोग मारे गये हैं।
बताइए योगी जी इन्हें तूल दें या न दें! हाल ही में दिवंगत नीरज जी लिख गये हैं-
पर ठहर वो जो वहाँ लेटे हैं फुटपाथों पर
लाश भी जिनके कफन तक न यहाँ पाती है
और वो झोंपड़े छत भी है न जिनके सर पर
छाते छप्पर ही जहाँ जिन्दगी सो जाती है
पहले इन सब के लिए एक इमरत गढ लूं
फिर तेरी मांग सितारों से जड़ी जायेगी
अगर तूल का अर्थ लम्बाई या विस्तार मान कर
चला जाये तो आपको थोड़े में समझ में कहाँ आता है। अगर कानून व्यवस्था की हमारी
बातें आपको तूल लगती हैं तो सम्बित पात्रा की बातें क्या लगती हैं जो टीवी डिबेट
में कभी विषय पर बात ही नहीं करता अपितु विषय को टालने और समय खत्म करने के लिए
यहाँ वहाँ की बातें ही करता रहता है।
साम्प्रदायिकता के प्रसार के लिए जिन
निर्दोषों को अकारण बेमौत मार दिया गया उनके जख्मों पर थोड़ी सी रुई या किसी चिड़िया
का कोमल पंख जरूर रखना चाहूंगा और इस तरह तूल देना जरूरी समझते हैं। हम लोग आपकी
तरह योगी नहीं इंसान हैं इसलिए हमारी सच्चाई और वादा निभाना ही हमारी पूंजी है।
आपकी तरह नहीं कि पिछले साल शपथ लेते समय कहा था कि 15 जून तक सड़कों के सारे गड्ढे
खतम कर देंगे पर इस साल की 15 जून भी निकल गयी और सड़कों पर और अधिक गड्ढे हो गये।
सड़कें तो सड़कें हाल ही में कैराना चुनाव के समय उद्घाटित हुये एलीवेटिड रोड तक में
इतना पानी भरने लगा है नावें चलने की नौबत आ गयी है। इस रोड का उद्घाटन भी आपके
प्रिय प्रधान मंत्री ने किया था पर मैं उनके कर कमलों को दोष नहीं देता। वे तो
नसीब वाले प्रधान मंत्री हैं जो हावर्ड से हार्ड वर्क की तुकें मिलाते रहते हैं और
धमकाते रहते हैं कि झोला उठायेंगे और चल देंगे।
बहरहाल एक दो बातें आप में और
प्रधानमंत्री जी में समान हैं। आप अपने को योगी कहते हैं और वे अपने आप को फकीर
बतलाते हैं। आपने भी एक बार संसद में रोकर दिखाया था और प्रधानम्ंत्री जी भी भरी
सभा में इसी तरह का अभिनय करते हुए बताते रहे हैं कि नोटबन्दी करके उन्होंने कैसे
कैसे लोगों से दुश्मनी मोल ले ली है, वे उन्हें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। गरीब आदमी
सोचता है कि जब देश का प्रधानमंत्री ही ‘कैसे कैसे’ लोगों से सुरक्षित नहीं है तो
हमारी क्या विसात। क्या दुनिया में दूसरा कोई ऐसा देश होगा जिसके प्रधानमंत्री को
पता हो कि उसे कौन से लोग जिन्दा नहीं छोड़ने वाले हैं और वह उनके खिलाफ कुछ भी न
करे। या हो सकता है कि समझौता हो गया हो। शायद यही कारण है कि नोटबन्दी की बन्दी
भी हो गयी कई लाख करोड़ बर्बाद भी हो गये और कुछ भी हासिल नहीं हुआ। भोपाल जैसे शहर
में नाबालिग बच्चे तक नोट छाप रहे हैं।
बहरहाल आपके कहे अनुसार खुले आम हो रही
हत्याओं पर भी तूल न दें तो क्या तेल दें। तेल की बिक्री बढेगी तो प्रधानमंत्री से
जुड़े तेल उत्पादक अडानी आदि को फायदा पहुँचेगा। वैसे भी हमारे यहाँ शनिवार को तेल
चढाने की परम्परा है। पर आपसे विनम्र अनुरोध है कि या तो तेल लगाना बन्द कर दो या
योगी के कपड़े उतार कर फेंक दो। बेचारे भोले भाले लोग अभी भी इनका सम्मान करते हैं।
हमारे मित्र भवानी शंकर ने इमरजैंसी के
दौरान लिखा था-
रात आती है जब मुहल्ले में / लोग कपड़े उतार देते
हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें