व्यंग्य
डिग्री एक खोज –
नरेन्द्र दामोदर दास
दर्शक
राजस्थान सरकार ने स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में से जवाहरलाल नेहरू का पाठ हटा
दिया है।
यह मोदी युग है। जवाहरलाल नेहरू विद्वान थे और लेखक थे, प्रगतिशील लेखक संघ के
पहले अधिवेशन में वे मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाये गये थे। स्वतंत्रता संग्राम के
दौरान जेल में उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी थीं उनमें से एक का नाम था- भारत एक
खोज। नरेन्द्र मोदी को जब इमरजैंसी में जेल जाने का मौका आया तो पहले बताया गया था
कि वे सन्यासी का रूप धर कर हिमालय चले गये थे, पर अब सामने आ रहा है कि उन्होंने
इस दौरान डिग्रियां प्राप्त करने के लिए अध्ययन भी किया जिसके फलस्वरूप दिल्ली
विश्व विद्यालय से तृतीय श्रेणी में बी.ए. किया। शायद अपने प्रधानमंत्री की श्रेणी
की इसी शर्म के कारण विश्व विद्यालय ने उनकी डिग्री के बारे में बताने से इंकार कर
दिया होगा, पर जिन खोजा तिन पाइयां वाले आर टी आई कार्यकर्ताओं ने अंततः उगलवा ही
लिया। मोदीजी अगर लेखक होते तो वे लिखते, ‘डिग्री एक खोज’ ।
पहले डिग्री न
दिखाने का कोई कारण न बताते हुए और उत्तीर्ण होने के वर्ष में नजर आती भूल के बारे
में विश्वविद्यालय ने कहा कि यूनीवर्सिटी से छोटी मोटी गल्तियां हो जाती हैं। उनकी
पूरी शिक्षा से सम्बन्धित अंक सूची के कम्प्यूटराइजेशन, उत्तीर्ण होने के वर्ष, स्नातकोत्तर
डिग्री में विषय आदि के बारे में भक्तों का कहना है कि भगवान पर शंका नहीं करना
चाहिए। उसके सामने आँखें ही नहीं खोलना चाहिए।
माना तुम्हारी दीद के काबिल नहीं हूं मैं [यहाँ दीद की जगह डिग्री पढें]
पर मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख
माना तुम्हारी दीद के काबिल नहीं हूं मैं [यहाँ दीद की जगह डिग्री पढें]
पर मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख
उन्हें पत्नी बच्चों की माया पसन्द नहीं थी, नौकरी करनी नहीं थी, पर डिग्री
चाहिए थी।
देश में एक बड़े व्यंग्य कवि हुए हैं स्व. श्री वासुदेव गोस्वामी, जो मध्य
प्रदेश के दतिया में रहते थे। उन्होंने एक घटना सुनायी थी। एक व्यक्ति पढ नहीं
पाया था पर उसके एक परिचित ने कहा कि अगर तुम्हारे पास बी ए की डिग्री होती तो मैं
तुम्हारी नौकरी लगवा देता। उसे पता था कि राजधानी में कहीं कोई व्यक्ति नकली
डिग्री बेचता है सो वह अपनी जमा पूंजी समेट कर राजधानी चला गया और बिल्कुल असली
नजर आने वाली बी.ए. की डिग्री खरीद कर लाया जिसके सहारे उसकी नौकरी लग गई, आगे
प्रमोशन भी हो गया। कुछ वर्ष बाद अगले प्रमोशन को ध्यान में रख कर उसने सोचा कि
क्यों न एम.ए. कर लिया जाय, सो उसने एम.ए. का फार्म भर दिया। उस फार्म की
स्क्रूटनी में उसकी बी.ए. की नकली डिग्री पकड़ में आ गई। पहले तो वह घबराया, पर
उसकी नौकरी के अनुभव उसके काम आये और उसने ले देकर किसी तरह अपना फार्म वापिस करा
लिया। मामला सुलट जाने के बाद वह राजधानी में नकली डिग्री बनाने वाले के पास गया
और उससे बोला कि तुमने इतने सारे पैसे लेकर कैसी डिग्री दी कि मैं एम.ए. में भी
नहीं बैठ सका व बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचायी है।
आत्मविश्वास से भरा हुआ नकली डिग्री बनाने वाला बोला- तुम तो बेबकूफ हो!
तुम्हें एम.ए. का फार्म भरने की क्या जरूरत थी! जैसे मुझ से बी.ए. की डिग्री लेकर
गये थे वैसे ही एम.ए. की भी ले जाते तो तुम्हारा काम चल जाता।
मोदीजी सीखने के मामले में तो शुरू से ही लगनशील रहे हैं। उन पर उनके किसी
भक्त ने एक चित्र कथा ‘बाल नरेन्द्र’ के नाम से लिखी है जिसमें बताया गया है कि वे
गेंद खेलने के शौकीन थे व नदी किनारे गेंद खेलते समय मगर के बच्चे को पकड़ कर ले
आये थे।
[इसी अभ्यास के कारण शायद बड़े होकर वे अमित शाह को पकड़ कर ले आये होंगे]
चाय बेचते बेचते उन्होंने हिन्दी सीख ली तो सन्यासी रहते हुए बी.ए. करना कौन सी बड़ी बात है। जब नकली लाल किले पर चढ चुनाव लड़ कर असली लाल किले तक पहुँचा जा सकता है तो बी.ए, एम.ए. की डिग्रियों की क्या बात करे हो!
[इसी अभ्यास के कारण शायद बड़े होकर वे अमित शाह को पकड़ कर ले आये होंगे]
चाय बेचते बेचते उन्होंने हिन्दी सीख ली तो सन्यासी रहते हुए बी.ए. करना कौन सी बड़ी बात है। जब नकली लाल किले पर चढ चुनाव लड़ कर असली लाल किले तक पहुँचा जा सकता है तो बी.ए, एम.ए. की डिग्रियों की क्या बात करे हो!
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