व्यंग्य
भूतप्रेतों की दुनिया
दर्शक
जिस पार्टी का खुदा किसी अस्पताल के उद्घाटन के समय पौराणिक कथा में हाथी के सिर को मनुष्य के धड़ में जोड़ देने को पुरानी शल्य चिकित्सा का सर्वोत्तम उदाहरण मानता हो तो उसके बन्दे देवी देवता, जादू टोना, मंत्र तंत्र, भूत प्रेतों की दुनिया में भरोसा तो करेंगे ही। ‘जय जवान, जय किसान ‘ के आगे ‘जय विज्ञान’ जोड़ने वाले अटल बिहारी की सरकार में मुरली मनोहर जोशी ने मंत्र चिकित्सा विभाग भी खोल दिया था।
क्या आपको याद है कि एक था लिब्राहन आयोग जो बैठा सो बैठा ही रह गया। हजरते दाग जहाँ बैठ गये, बैठ गये। वह आयोग जिन पर बैठा था उनमें से कई लोग दुनिया से उठ गये पर आयोग बैठा ही रहा। उस के सामने जब आज की केन्द्रीय गंगा मंत्री उमा भारती प्रस्तुत हुयीं और उनसे पूछा गया कि बाबरी मस्ज़िद को किसने तोड़ा तो उनका उत्तर था कि उसे तो भगवान ने तोड़ा। जब भगवान की जाँच आयोग को करना हो तो आप समझ सकते हैं कि आयोग की क्या हिम्मत कि वह उठ कर बैठ जाये। इससे पहले भी उनका उत्तर था कि उन्हें उस घटना के बारे में कुछ याद नहीं। जिनकी पहचान ही इस बात से बनी हो कि उन्हें कम उम्र में ही रामायण याद हो गयी हो वे कुछ ही दिन पुरानी घटना को भूल गयी थीं। ऐसी ही स्मृति वाली साध्वी भेषधारी नेता को भाजपा ने मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद प्रत्याशी की तरह चुनाव में उतारा था और जीत के बाद मुख्यमंत्री बनाया भी था अर्थात लिब्राहन आयोग के सामने दिये गये बयानों में वे भी सम्मलित थे।
एक हैं सुषमा स्वराज जिन्हें यदि आप भूल रहे हों तो याद दिला दें कि वही सुषमा स्वराज जिनके पति और बेटी ललित मोदी के वकील रहे हैं और वे खुद इतनी दयावान हैं कि उनकी बीमार पत्नी के इलाज के लिए वीजा दिलवाने में उनके मंत्रालय को कोई आपत्ति नहीं होती भले ही उस व्यक्ति को कानून की कितनी भी तलाश हो। वे वैसे तो राजनीतिक संवाद करती हैं पर जब तर्क नहीं मिलता तो सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए वे सिर मुढाने, ज़मीन पर सोने, और चने खाकर रहने की घोषणा कर देती हैं। उनसे प्रतियोगिता में कुमारी उमा भारती भी जब ऐसे ही असत्याग्रह की घोषणा कर देती हैं तो उन्हें बुरा लगता है। एक ही फिल्म जब दो टाकीजों में लग जाये तो बिजनैस पर फर्क तो पड़ता ही है। फिर सोनिया गाँधी ही पीछे हट गयीं तो दोनों की फिल्म फलाप हो गयी। वैसे तो सुषमा जी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी बनने के लिए बाल ठाकरे का आशीर्वाद मिल चुका था पर संघ की हरी झंडी न मिलने के कारण बिना विभाग की विदेशमंत्री हो कर रह गयीं।
अब मध्य प्रदेश के नये गृह मंत्री कह रहे हैं कि किसानों की मृत्यु भूतों के कारण हुयी है। सच ही कह रहे होंगे क्योंकि प्रशासन तो किसानों की इतनी मदद कर रहा है कि किसान परम प्रसन्न हैं-
दैहिक दैविक भौतिक तापा रामराज नहिं काहहु व्यापा
राम भरोसे भी भूत प्रेत चूड़ैल ज़िन्न सब में भरोसा करता है और इस इक्कीसवीं शताब्दी में सरकार पर हँसने वालों पर बहुत नाराज है। जब सरकार मान रही है कि किसान भूतों से मर रहे हैं तो सरकार सही ही कह रही होगी। लोकतंत्र है, उसे बहुमत मिला है तो उसकी हर बात मानना चाहिए। बड़वानी में डाक्टरों ने जनता को अंधा कर दिया तो वह भी भूतों का कारनामा होगा, पेटलाबाद में विस्फोट भी भूतों करा दिया होगा। उसकी चिंता यह है कि ये इतने भूत अचानक पैदा कैसे हो गये। कहते हैं कि जब अतृप्त रहते हुए मर जाते हैं तो भूत बनते हैं। अगर भूतों की उपस्तिथि मानते हैं तो फिर यह भी मानना पड़ेगा कि व्यापम कांड में जो मौतें हुयी हैं उनकी आत्माएं जरूर आस पास मड़ंरा रही होंगीं। और जब ये परेशान करने पर उतारू होंगीं तो विधानसभा के आसपास ही घूमेंगीं। शंकराचार्य ने कहा ही था कि सिंहस्थ चाण्डाल योग में हो रहा है जिससे राज्य और राजा को नुकसान होता है। भूत को मानोगे तो फिर शंकराचार्य से ही उपाय पूछना पड़ेगा।
ठीक जा रहे हो राम भरोसे, नरेन्द्र दाभोलकर बनने का परिणाम तो पिस्तौल की गोली ही होगा।
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