नवोन्मेष
दर्शक
पुराने जमाने के गौरव में जीने वाली पार्टी जब नवोन्मेष में उतरती है तो नई नई
चीजें बटोर कर लाती है। जिन खोजा तिन पाइयाँ की तलाश में वह जब डूबा लगाती है तो
पाइयाँ के नाम पर सिद्धू पाजी को ले आती है और सबसे सम्मानित सदन में मनोनीत कर
देती है। आखिर देश में चल रही कामेडी पर नकली ठहाका लगाना वाला भी तो चाहिए। किसी
शायर ने अपने हालात पर कहा है-
या तो दीवाना हँसे,
या जिस पर हो रब का करम
बरना इस दुनिया में
रह कर, मुस्करा सकता है कौन
पर मेरा मतलब कुछ
अलग सा है। मध्य प्रदेश की सरकार चाहती है कि साम्प्रदायिकता के बीज बचपन से ही बो
दिये जायें नहीं तो बकौल निदा फाज़ली-
चार किताबें पढ कर
ये भी हम जैसे हो जायेंगे
सो उन्होंने कहा कि
स्कूल में छात्रों का स्वागत तिलक लगा कर किया जायेगा। जाहिर है कि जब यह बात राम
मन्दिर वाली सरकार कहती है तो गैर हिन्दुओं के कान खड़े हो जाते क्योंकि लाड़ली
लक्ष्मी के विवाह को कन्यादान योजना और तालाब को बलराम तालाब बना देने वाले कुछ भी
यूं ही नहीं करते। जब थोड़ी कुनर मुनर हुई तो उन्होंने तुरंत कह दिया कि जिसे तिलक
नहीं लगवाना हो वह नहीं लगवाये। वे यही तो चाहते थे सो सारे बच्चों को पता लग गया
कि कौन किस धर्म का है। इससे पहले स्कूल में सूर्य नमस्कार के नाम पर भी वे ऐसे ही
विभाजन के बीज बो चुके थे। अपने स्कूलों का नाम वे पहले ही मन्दिर के नाम से जोड़
चुके हैं- सरस्वती शिशु मन्दिर – सो मस्जिद में जाने वालों को सोचना ही पड़ता है कि
मन्दिर जायें या नहीं। अंततः उन्हें सरकारी स्कूलों में ही जगह मिलती थी सो वहाँ
भी तिलक और सूर्य नमस्कार आ गया।
अब एक नया विचार
सामने आ रहा है कि म.प्र. के अध्यापक एप्रिन पहिन कर पढायेंगे। जो सरकार बसों,
टैक्सी ड्राइवरों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को वर्दी पहिनने का अनुशासन नहीं
ला सकी वह अध्यापकों को एप्रिन पहिनायेगी। एक तरह से ठीक भी है कि जब अध्यापकों का
काम मध्यान्ह भोजन तैयार करवाना हो उसे एप्रिन पहिनना अच्छा ही लगना चाहिए। घर में
शौचालय बनवाने के विज्ञापन में विद्या बालन बताती ही है कि जहाँ सोच वहाँ शौचालय।
उसे पता है कि राकेट के दिमाग वाली मुन्नी जब खुले में शौच करेगी तो उस पर
मक्खियां मंडरायेंगीं और वही मक्खियां उसके खाने पर बैठेंगी जो उसके खुले में किये
गये शौच पर बैठने वाली हैं। इसलिए वह जानती है कि मुन्नी बीमार पड़ेगी, उसे कौन सी
बीमारी होगी जिसकी दवाई वह पहले से लिये फिरती है। स्मार्टनैस की यही परिभाषा
मोदीजी ने स्मार्ट सिटी के सन्दर्भ में मन की बात में बतायी थी। लिफाफा देख कर खत
का मजमूं भाँप लेना ही तो स्मार्टनैस है।
गुजरात में मृत गाय का चमड़ा निकालने पर उदित राज की पार्टी के गौसेवी संगठनों
ने चार दलितों को कार से बाँध कर बुरी तरह पीटा, उनका वीडियो बनाया और वायरल कर
दिया ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत पर काम आवे। आगे से लगता है कि अपनी गाय माताओं
की मृत देह गौ सेवक स्वयं उठाया करेंगे। भला यह भी कोई बात हुयी कि जिन्दा में
माता किसी की और मर जाने पर कोई दूसरा उसका अंतिम कर्म करे। गाय की नकल में
उत्तराखण्ड में घोड़े की मूर्ति लगाना ठीक नहीं। शक्तिमान को देख कर भाजपा विधायक
की याद आती थी। साथ ही उसके पैर में डंडे मारने का वीडियो वायरल होने के बाद भी
विधायक का इंकार भी याद आता था। सो मोदीजी के ड्रम बजा कर अफ्रीका से लौट आने के बाद
शक्तिमान को एक बार फिर सामने से हटना पड़ा। कबीर ने कहा था-
निर्बल को न सताइए
जा की मोटी हाय
मरे खाल की सांस सौं
, लोह भस्म हो जाय
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