रविवार, 27 अगस्त 2017

व्यंग्य बाबाओं की पार्टी

व्यंग्य
बाबाओं की पार्टी
दर्शक
बाबा शब्द में ही बहुत धोखा है। मुम्बई गोआ से आयातित बाबा माने बच्चा होता है इसलिए काँग्रेस के विरोधी राहुल के आगे या पीछे बाबा लगा कर खुश हो जाते हैं। पश्चिम से ऊपर उठने पर बाबा माने दादा हो जाता है, और यह दादा मुहल्ले कस्बे के गुंडों वाला दादा नहीं अपितु दादी के जोड़े वाला दादा होता है। जो लोग मार्ग दर्शक मण्डल वालों को उनके नाम से नहीं जानते उन्हें भी बाबा कह देते हैं। भंडारे में बैठे वृद्धाश्रम वाले मार्गदर्शक मण्डल वालों को कहा जाता है कि बाबा उठो अब काहे की टकटकी लगाये बैठे हो, अब कुछ नहीं आने वाला। वे फिर भी अडवाणी बने बैठे रहते हैं, इस उम्मीद में कि कबहुं दीनदयाल के भनक परेगी कान।
पुराने समय में जब आदमी गृहस्थी की जिम्मेवारियां नहीं निभा पाता था तो उम्र से पहले बाबा हो जाता था। तुलसी बाबा कह गये हैं कि ‘मूड़ मुढाये भये सन्यासी’ या कबीर कहते हैं कि ‘मन ना रंगायो, रंगायो जोगी कपड़ा’। यह स्वरूप बदल कर मजबूरी में बाबा भेष धारण करना होता है। चूंकि मजबूरी में होता था इसलिए मन कहीं और रमा होता था। केशवदास ने कहा ही है कि ‘केशव केशन असि करी, सो कछु ही न कहाय, चन्द्र वदन मन मोहिनी, बाबा कहि कहि जाय’। तब गोदरेज का हेयर डाई नहीं चलता था बरना केशव के बाल भी बाबा रामदेव या श्री श्री की तरह काले होते और वे कविता फविता लिखने की जगह रामरहीम की तरह राक स्टार बन गये होते। राम कथा पढने वाले लोग जानते हैं बाबा धोखा देने वाला भेष ही होता है, रावण सीता हरण के लिए इसी भेष में आया था। तब से ही धोखा देने की यह परम्परा चली आ रही है। पहले यह काम रिटेल में होता था पर अब इसके थोक व्यापारी बन गये हैं जिनकी फैक्टरियां चलने लगी हैं जिन्हें श्रद्धा से आश्रम कहते हैं। श्रद्धा समझते हैं न आप अरे वही आस्था वाली जिस पर हरियाणा में धारा 144 नहीं लग सकती। कभी बुद्ध ने समाज के प्रति विनम्रता सिखाने के लिए अपने शिष्यों को भिक्षु बनने का आदेश दिया था जिससे वे नगरी नगरी द्वारे द्वारे भिक्षा मांग कर पेट भरते थे। बाद में हर मांग कर खाने वाला हरामखोर खुद को बाबा बताने लगा।
देश में लोकतंत्र के मन्दिर संसद भवन पर पहला हमला भाजपा ने ही करवाया था पर तब इस दल का नाम जनसंघ था। सबसे पहले इन बाबाओं पर उसकी ही दिव्यदृष्टि पड़ी और उन्होंने इन्हें जोड़कर गौरक्षा के नाम पर हमला करवा दिया। गुलजारी लाल नन्दा तब गृहमंत्री हुआ करते थे जो गुरुओं के प्रति विशेष प्रेम रखते थे। कहा जाता है कि जब चिमटे त्रिशूलों वाले इन कथित बाबाओं ने संसद के गार्डों पर हमला कर के सदन में घुसने की कोशिश की तो गार्डों को मजबूरन गोली चलाना पड़ी थी जिसमें कई भिक्षुक घायल हो गये थे और जो बाद में काल के गाल में भी समा गये थे। तब से इन बाबाओं की पगडंडी के सहारे भाजपा ने संसद की ओर रास्ता बनाना शुरू कर दिया था क्योंकि उनके लिए राजमार्ग बहुत कठिन था।
मैं मैकदे की राह से होकर गुजर गया
बरना सफर हयात का बेहद तबील था
काँग्रेस अगर एक बाबा की पार्टी है तो भाजपा अनेक बाबाओं की पार्टी है, जिसमें से कुछ बाबाओं को तो वे मार्गदर्शक मण्डल में भी भेज चुके हैं। पंचतंत्र में भी एक कथा आती है जिसमें एक गुरु ने चेलों का शोषण करने के लिए उनके बीच में प्रतियोगिता पैदा कर दी थी व दबाने के लिए एक एक पैर आवंटित कर दिया था। वे कभी एक के काम की तारीफ करते थे तो कभी दूसरे की। एक दिन अपनी पूरी सेवा के बाबजूद जब दूसरे शिष्य को उपेक्षा सहनी पड़ी तो उसने सोते हुए गुरू की दूसरी टांग पर पत्थर पटक दिया। जब दूसरे शिष्य ने उसे आवंटित टांग का यह हाल देखा तो उसने अपने प्रतियोगी को आवंटित टांग का भी वही हाल किया। बहरहाल गुरू जी की दोनों टांगें उनकी कूटनीति में चली गयीं। भाजपा के बाबा भी कभी निरंजन ज्योति के रूप में प्रकट होते हैं, तो कभी साक्षी महाराज के रूप में, कभी उमा भारती के रूप में कभी रामदेव, रामरहीम, आशाराम, वगैरह वगैरह के रूप में।
बाबाओं की पार्टी देश को बाबा बना के छोड़ देगी।  



व्यंग्य विधायक बाजार आनलाइन

व्यंग्य
विधायक बाजार आनलाइन
दर्शक

जब से आन लाइन मार्केटिंग शुरू हुयी है तब से आदमी नित्य क्रियाओं के लिए जाने के अलावा अपनी देहरी नहीं लाँघता। वैसे तो विद्या बालान ने मोदी जी के आग्रह पर घर घर शौचालय बनवा दिये हैं, और उनके घर भी शौचालय बनवा दिये जिनके पास घर ही नहीं था, पर क्या करें आदत भी कोई चीज होती है। वे आदत बदलने की भी सोच सकते थे बशर्ते नलों में जरूरत के मुताबिक पानी आता होता, इसलिए पर्यावरण का संतुलन बनाये रखना होता है।
अब हर आर्डर आनलाइन होता है और हर डिलीवरी आन डोर होने लगी है। जो चाहिए वह एक घंटे में हाजिर है जिसके भुगतान के लिए कुत्ता घसीटी की तरह, बस कार्ड घसीटना पड़ता है और खाते से पैसे कट जाते हैं, बशर्ते उसमें हों। हर सुपर बाज़ार ग्राहकों को तरह तरह की छूट देते हैं, विशेष रूप से उन वस्तुओं पर जो उनके यहाँ बिकती नहीं हैं। कभी कभी तो एक की खरीद पर एक फ्री मिलता है।
कुछ ग्राहक दुकानदार को बहुत प्रिय होते हैं, क्योंकि वे मोलभाव नहीं करते। सुपर बाजार में इसीलिए दुकानदार और मालिक के सम्बन्ध खराब नहीं होते क्योंकि मोलभाव कर ही नहीं सकते, सब पर बारकोड का कोढ लगा हुआ होता है। पिछले दिनों रिटेल ट्रेड में विदेशी निवेश का प्रतिशत बढाने वाली भाजपा को समझ में आया कि सुपर बाजार में सब वस्तुएं नहीं मिलतीं, विधायक तो खुद खरीदने जाना पड़ता है। उन्होंने आन लाइन आर्डर करना चाहा पर नहीं मिले। मजबूरन ठेकेदार को ठेका दिया, पर एक विधायक कम रह गया। बड़ी निराशा हुयी। दिगम्बर होकर खेत में हल चलाया, फिर भी बरसात नहीं हुयी। सचेत हो गये, अगली बार से आन लाइन टेंडर निकालने की सोच रहे हैं। डाइरेक्ट डील, नो बिचौलिया।
नये युधिष्टर का नया कुत्ता
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युधिष्टर के कुत्ते की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। वे जब बिना रथ के अपनी अंतिम यात्रा पर पत्नी और भाइयों के साथ निकले तो उनके साथ एक सातवां प्राणी और था और वह था युधिष्टर का कुत्ता। वह सदा की तरह उनके साथ साथ चला। जब स्वर्ग के लिए उन्हें ले जाने देवदूत आये तो उन्होंने कहा कि मेरा कुत्ता भी मेरे साथ जायेगा। देवदूत असमंजस में थे, क्योंकि युधिष्टर कोई बिल क्लिंटन तो थे नहीं कि कुत्ते गाँधीजी की समाधि राजघाट तक चले जायें, और फिर वह तो स्वर्ग था। पर युधिष्टर अड़ गये, बोले जायेंगे तो कुत्ते को साथ लेकर जायेंगे। अंततः स्वर्ग के नियम बदले गये और स्वर्ग में कुत्ते का प्रवेश होने लगा। तब से ऐसी परम्परा पड़ी कि प्रत्येक राजनेता अपने कुत्तों को साथ लेकर चलने लगा।
अब यह परम्परा और सुधर रही है, कुत्तों का प्रभाव इतना बढ गया है कि वह युधिष्टर के बिना ही स्वर्गों के दौरे करने लगा है व उनकी ही तरह गार्ड आफ आनर प्राप्त कर रहा है। जब जब जहाँ जहाँ सफाई दिखने लगे तो समझ लेना कि युधिष्टर का कुत्ता आ रहा होगा।
कुत्ते और युधिष्टर का तो ठीक है पर इन स्वर्ग के देवदूतों को क्या हुआ है?
बलि के लिए पूजा
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जब बड़े जोर शोर से नर्मदा मैय्या का सरकारी पूजा पाठ चल रहा था तब उन्हें भी लगा होगा कि अभी तक तो ये सब हुआ नहीं, पर अब क्यों? जरूर दाल में कुछ काला है। अब जब पुजारी के भेष वाले लोग गाँव के गाँव की बलि देने पर उतर आये हैं तब समझ में आता है कि बलि के लिए पूजा की गयी थी।
सारी बलियां पूजा के बहाने पेट और मुँह के स्वाद से जुड़ी होती हैं। नईम जी की गज़ल का एक शे’र है-
आप झटका, हलाल के कायल

जान तो लोगो मेरी जाना है