मंगलवार, 2 जनवरी 2018

व्यंग्य समय को शीर्षासन कराने वाले योगी

व्यंग्य
समय को शीर्षासन कराने वाले योगी  
दर्शक
       लाल बुझक्कड़ बहुत ही तार्किक पात्र है। उसके पास हर मर्ज की दवा है और हर दवा का कारण और मर्ज मौजूद है। कहते हैं कि एक शिशु के सिर में कुछ असामान्य धड़कन महसूस की जा रही थी तो उसके परिवार के लोग उपचार के लिए लाल बुझक्कड़ के पास लेकर पहुँचे। लाल बुझक्कड़ ने सलाह दी कि इसके सिर में एक कीला ठोक दो। परिवारीजन शिशु को घर ले गये और सलाह अनुसार कार्य किया। परिणाम स्वरूप बच्चा मर गया। वे भागे भागे लाल बुझक्कड़ के पास पहुँचे और स्थिति बयान की। लाल बुझक्कड़ बोले कि तुम हमारे पास तलुवे की धड़कन बन्द कराने के लिए लाये थे, वह धड़कन बन्द हुयी कि नहीं?
वह तो बन्द हुयी। परिवारीजन बोले।
बस, ठीक है। बच्चा ज़िन्दा है या नहीं, उससे कोई मतलब नहीं, बस धड़कन बन्द होना चाहिए थी, जिसके लिए तुम आये थे।  
मोदी मंत्रिमण्डल के रत्नों में से कोई न कोई अपने मुखारबिन्द से ऐसे फूल उचकाता है कि लाल बुझक्कड़ की याद आती रहती है। अभी हम आदरणीय रवि शंकर प्रसाद की बात भूल ही नहीं पाये थे कि उनके मंत्रिमण्डल के एक और रतन अनंत कुमार हेगड़े ने नई थ्योरी पेश कर दी है। उनका कहना है कि धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील होने का दावा वे लोग करते हैं जिन्हें अपने माँ बाप का पता नहीं होता। उनके अनुसार आदमी हिन्दू हो सकता है, मुसलमान, हो सकता है, ईसाई हो सकता है, ब्राम्हण हो सकता है, लिंगायत हो सकता है पर धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता। अर्थात पैदा होते ही उसकी जाति और धर्म तय हो जाता है। जिस जाति भेद को मिटाने का वादा हमारा संविधान करता है व जाति धर्म के चुनाव के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए अम्बेडकर ने पाँच लाख लोगों के साथ हिन्दू धर्म को छोड़ कर बौद्ध धर्म अपनाया था, उसे पुनर्स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। 
बड़ी मुसीबत है भाई, सम्बित पात्रा के पिता तुल्य नेता कहते हैं कि हम असली धर्मनिरपेक्ष हैं, और दूसरी पार्टियों के नेता छद्म धर्म निरपेक्ष हैं- स्यूडो सेक्युलर, अर्थात हैं वे भी सेक्युलर। भागवत जी बांचते हैं कि हिन्दू तो पैदाइशी धर्म निरपेक्ष होता है और भारत में पैदा हुए सभी हिन्दू हैं। इन्द्रेश कुमार भाजपा में अल्पसंख्यक मोर्चा अलग से चलाते हैं। समझ में नहीं आता कि जब सभी हिन्दू हैं तो अलग से मोर्चे की क्या जरूरत।
गीता में कहा गया है-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥
 जब नया अवतार नष्ट हो चुके धर्म को उबारने के लिए आयेगा तो पुराने धर्म के लोगों को अपनी पिछली मान्यताएं त्यागना होंगी और नये में भरोसा करना होगा। ऐसा करते भी रहे हैं। इसी को धर्म परिवर्तन कहते रहे हैं और यह व्यापक पैमाने पर होता रहा है। सनातन के बाद लोकायत, जैन, बौद्ध, सिख, मुस्लिम, ईसाई, आदि आदि धर्म परिवर्तन होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। भाजपा नेताओं की सुपुत्रियों के दूसरे धर्मों के सुपुत्रों से विवाह के दर्जनों किस्सों का हवाला मीडिया में दर्ज होता रहता है, उनकी संतानों का क्या होगा हेगड़े जी!
एक फिल्म आयी थी धर्मपुत्र और उसकी थीम ही उसके गाने में निहित थी कि – तू हिन्दू बनेगा, न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा। और हुजूर महाभारत के पात्रों का क्या करेंगे जिनमें से कोई भी प्रमुख पात्र आपके दर्शनानुसार पैदा नहीं हुआ। चाहो तो अपने ग्रंथों को दुबारा पढने की कृपा कर लो। पर आप क्यों पढेंगे जबकि आपके नेताओं को स्वर्ग सा सुख तो आसाराम के साथ नृत्य करने, राम रहीम को ढोक देने, और वीरेन्द्र देव के आश्रम में नेताओं को भेजने से चल जाता है।
हिन्दी फिल्मों में नायक से लड़ने के लिए खलनायक के दल के लोग एक एक करके आते हैं, जैसे सार्वजनिक नल से बाल्टी भरने आये हों। समाज के मूल मुद्दों को भटकाने और वादे भुलाने के लिए आपके नेता भी क्रमशः कोई न कोई फुल्झड़ी छोड़ते रहते हैं और आपकी गोदी में बैठा हुआ मीडिया जोर जोर से चिल्ला कर प्राइम टाइम करता रहता है। इस बार हेगड़े की बारी थी।

जाने भी दो यारो! ये ऐसे नहीं सुधरेंगे।     

व्यंग्य ऊंच नीच की भाषा

व्यंग्य
ऊंच नीच की भाषा  
दर्शक
भाषा बड़ी समस्या है। मणिशंकर जी को ये बात बहुत बाद में समझ में आयी। राहुल गाँधी को शायद पहले समझ में आ गयी होगी कि हिन्दी वालों में गलतफहमी पैदा हो सकती है इसलिए उन्होंने गुजराती में ‘विकास गांडो थै गयो छे’ की जगह विकास पागल हो गया है कहा।
 हिन्दी वालों को खुश होना चाहिए कि उनकी भाषा के बिना अब बात नहीं बनती। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को जब एक पत्रकार ने उनकी वरिष्ठता के बाद भी प्रधानमंत्री न बन पाने को कुरेदा तो उन्होंने बड़ी शालीनता से उत्तर दिया था कि मुझे हिन्दी नहीं आती थी इसलिए मैं उस पद के उपयुक्त नहीं था। उनके इस कथन से यह भी स्पष्ट हो गया था कि हिन्दी न आने पर राष्ट्रपति तो बना जा सकता है, पर प्रधानमंत्री नहीं बना जा सकता क्योंकि राष्ट्रपति को साल में दो एक बार लिखा हुआ भाषण बांचना पड़ता है। हिम्मत की दाद तो सोनिया गाँधी की देना चाहिए जिन्होंने हिन्दी न आते हुए भी प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की थी और एक बार तो चुन ही ली गयी थीं। वो तो सिर घुटा लेने की धमकी के आगे उन्होंने हार मान ली थी और अपनी टोपी मनमोहन सिंह की पगड़ी को पहिना दी थी। मनमोहन सिंह ने दस साल बाद ज्यों की त्यों धर दीन चदरिया की तरह ज्यों की त्यों धर दीन टुकरिया की तरह उतार कर धर दी थी। अपनी टोपी दूसरे को पहिनाने की परम्परा पहले से ही थी और जब देश ने ताऊ देवीलाल को प्रधानमंत्री चुन लिया था तब उन्होंने अपनी टोपी व्ही पी सिंह को पहिना दी थी।
पहले तो नहीं लगा था पर अब लगने लगा है कि माननीय मोदीजी ने ताऊ देवी लाल के प्रधानमंत्री न बन पाने की कमी को पूरा कर दिया है। वे शब्दों को विस्तार देकर उनके मनमाने अर्थ निकाल कर शोर मचाने लगते हैं। उन्होंने हिन्दी अज्ञानी के नीच शब्द को नीची जाति बना लिया और कहने लगे कि देखो मुझे नीची जाति का कह रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने न जाने किस फार्मूले से इसे मुगल मानसिकता बता दिया। इस मामले में तो वे असम के स्वास्थ मंत्री हेमंत विस्व शर्मा से भी आगे निकल गये जिन्होंने कैंसर को पिछले जन्मों का पाप बता दिया है। हो सकता है कि मोदीजी भी ऐसे अर्थ हिन्दी की अज्ञानता में लगा रहे हों क्योंकि उन्होंने भी तो हिन्दी चाय बेचते बेचते सीखी थी और इस रहस्य को खुद ही प्रकट किया था। बहरहाल उन्होंने इस बार गुजरात के चुनावों में हिन्दी बोलने की गलती नहीं की अपितु अपने सारे भाषण गुजराती में दिये और गुजरात की जनता को यह बताने की कोशिश की कि देखो राहुल गाँधी बाहरी आदमी है और हूं थारो गुजराती भाई छूं। प्रधानमंत्री पद पर बिराजे किसी अन्य व्यक्ति ने इस तरह की क्षेत्रीयता को कभी नहीं उकसाया।
जब किसी ने कहा होगा कि काँग्रेस के स्टार प्रचारक भले ही गैरगुजराती हैं किंतु जिनके लिए वोट मांग रहे हैं वे तो गुजराती हैं, सो उन्होंने कहानी गढ ली कि वे अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बना रहे हैं। उन्होंने सोचा कि साम्प्रदायिकता के जो बीज उन्होंने बोये हैं उससे लोग उनके पक्ष में आ जायेंगे, पर शत्रु कहाँ नहीं होते जो विभिन्न रूप में घूमते रहते हैं और कुछ तो शत्रुघ्न सिन्हा के रूप में ही घूमते हैं। उन लोगों ने कहा कि क्या अहमद पटेल, विदेशी हैं? पागल हैं? अंडर एज हैं? और जब विधायकी की सारी पात्रताएं रखते हैं तो चुने जाने पर मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकते? अब उनके कल्पनाशील मष्तिष्क ने राष्ट्रीय भावना को भड़काने के लिए बे सिर पैर की अगली कहानी गढी कि गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने के लिए काँग्रेसी नेताओं ने पाकिस्तानी दूतावास के अधिकारियों से बातचीत की।  

राम भरोसे बोला कि उसकी समझ में नहीं आ रहा कि जब अमित शाह ताल ठोक ठोक कर कह रहे थे कि उनके एक सौ पचास विधायक जीत रहे हैं तो अहमद पटेल बिना दल बदले मुख्यमंत्री कैसे बन जायेंगे? 

व्यंग्य लाल बुझक्कड़ों के हाथों में जिन्दगी

व्यंग्य
लाल बुझक्कड़ों के हाथों में जिन्दगी
दर्शक
मोदी जनता पार्टी की सरकार आने के बाद कम से कम एक चमत्कार तो हुआ ही है, जिसके प्रभाव में स्वास्थ विभाग के सारे डाक्टर और कर्मचारी बेकार हो जाने वाले हैं। वह तो गनीमत समझो कि इस रहस्य का पता चलते ही हमारे आर्कमडीज दिगम्बर अवस्था में बाथरूम से यूरेका यूरेका चिल्लाते हुए नहीं भागे, शायद इस का कारण यह रहा हो कि वे बाथरूम में तब ही होते हों जब उनके किसी ऐसे समर्थक का फोन आया हो जिससे वे न “हाँ” कर पा रहे हों और ना “ना”। वे नहाते जरूर हैं किंतु उस दिन नहाते हैं जब सूर्य या चन्द्र ग्रहण पड़ता है और उसके प्रभाव से मुक्त होने के लिए लाखों वोटर नहा रहे होते हैं। वोटरों को पता लगना चाहिए कि उनका नेता पर्व के दिन पवित्र नदी में स्नान भी करता है। चूंकि नदी मैली हो चुकी है इसलिए वे उस दिन वहाँ से लौट कर घर में नहाते हैं।
बहरहाल मुद्दे की बात यह है कि असम राज्य के एक मंत्री, जो दुर्भाग्य से राज्य के स्वास्थमंत्री भी हैं, के ज्ञानचक्षु खुल गये और उनको दिव्यज्ञान हुआ कि कैंसर आदि रोगों की जड़ कहाँ हैं। यह ज्ञान उन्हें गीता पढ कर हुआ बताया गया है। वैसे गीता तो सैकड़ों सालों से हजारों लोग पढ रहे हैं या उस पर हाथ रख कर अदालतों में झूठी कसमें खा रहे हैं, पर किसी को यह दिव्यज्ञान नहीं हुआ इसे ही भाग्य की बात कहते हैं। मंत्रीजी ने बताया कि कैंसर आदि तो पिछले जन्मों के पाप का फल है। जब पिछले जन्मों के पाप का फल है तो उसका कोई उपचार नहीं, क्योंकि आप पिछले जन्म में वापिस जाकर भूल चूक को सुधार कर लेनी देनी भी नहीं कर सकते। गीता में यह भी कहा गया है कि कर्म किये जाओ फल की चिंता मत करो। कच्चा, सड़ा, कीड़ा लगा, कैसा भी फल मिले उसकी चिंता किये बिना आप को खाना ही पड़ेगा।
ऐसे ज्ञान की बात सुन कर राम भरोसे ने फिर से तम्बाखू खाना शुरू कर दिया, सिगरेट धौंकने लगा और हुक्का लौंज में जाने लगा क्योंकि इस जन्म में तो ऐसा कुछ होने से रहा, अगर पिछले जन्म में कुछ उल्टा सीधा किया होगा तब ही इस जन्म में कैंसर जैसी बीमारी होगी, जिसे कोई माई का लाल रोक ही नहीं सकता। उसे छुन्नन गुरू की वह बात याद आ गयी जब वे भाँग घौंटने और छानने के बाद कहा करते थे-
छान छान
किसी की मत मान
जब निकल जायेगी जान
तब कौन कहेगा छान
असम के मंत्री का इसमें कोई दोष नहीं है, वह तो अपनी परम्परा का अनुसरण कर रहा है। जब से वह मोदी की शरण में आया है तब से उसने मोदी में वह स्वरूप देखना शुरू कर दिया है जो कहता है कि ‘ सर्व धर्म परित्याज, मामेकं शरणं ब्रज’। उसने जब देखा कि उसके गुरू असपताल का उद्घाटन करते हुए हिन्दुस्तान की महान शल्य चिकित्सा का उदाहरण गणेशजी के सिर के ट्रांसप्लेंटेशन में पाते हैं तो पिछले जन्म के पापों की सजा इस जन्म में बता देने से सरकार सारी जिम्मेवारियों से मुक्त हो जाती है। सरकार प्राकृतिक न्याय में दखल नहीं दे सकती। जो पाप किये हैं उनकी सजा सबको भुगतना है। डाक्टरों का काम तो केवल झूठ मेडिकल बिलों की पुष्टि करना, फौजदारी में सरकार की सुविधा से प्रमाणपत्र देना व जेल गये नेताओं को बीमारी का प्रमाणपत्र देकर उन्हें विशिष्ट सुविधाएं दिलवाना होता है। बाकी सब तो ऊपर वाले को करना है। वही मेडिकल रिप्रेजंटेटिव्स को भेजता है। मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं सिवाय जिओ की सिम डले मोबाइल के।
अभी तक कैंसर के इलाज का दावा करने वाले लाला रामदेव की प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है जो हनुमान चालीसा की तर्ज पर कहते पाये जाते हैं कि-

और देवता चित्त न धरई/ हनुमतवीर सदा सुख करई।     

व्यंग्य नोटबन्दी और देह व्यापार में कमी

व्यंग्य
नोटबन्दी और देह व्यापार में कमी
दर्शक
सच बोलने का एक फायदा यह भी होता है कि यह याद नहीं रखना पड़ता कि किससे क्या कहा था।
किंतु बेशर्मी इससे भी ऊपर की चीज है वह कहती है कि कहा था सो कहा था। कसमें वादे प्यार बफा सब बातें हैं बातों का क्या। इसमें थोड़ा सा परिवर्तन करके आप जुमले कर सकते हैं, जुमले हैं, जुमलों का क्या। भाजपाइयों की निगाह में अभिव्यक्ति की आज़ादी का यही मतलब है कि चाहे जब चाहे जो कहते रहो। इनके यहाँ जुबान की जबाबदेही नहीं होती। भाजपाई हैं कोई हरिश्चन्द्र थोड़े हैं।
गलती हो जाये तो मान लेना चाहिए, अंग्रेजी में तो कहा गया है मनुष्य ही गलती करता है। अपनी पुराण परम्परा में तो देवता तक गलती करते रहे हैं और कोई सुन्दर मनुष्य का चेहरा मांगने जाये तो बन्दर का मुँह दे देते रहे हैं। काका हाथरसी ने तो कहा है –
गलती तो सबसे होती है
ईश्वर ने क्या भूल नहीं की
हाथी की जो असल पूँछ थी
वो उसके मुँह पर लटका दी
अपनी भूल छुपाने को फिर
एक गधे की पूंछ खींच कर
हाथी के पीछे चिपका दी
मुखमण्डल पर दोनों आँखें
पास पास ही फिट कर दी हैं
एक आँख आगे दे दी, तो
एक आँख पीछे दे देते
तो क्या कुछ घाटा हो जाता!
सिर पर कोई चपत मार कर भाग जाये तो क्या कर लोगे!
चुटकले भी कई बार सटीक चरित्र चित्रण कर देते हैं। और कई बार तो क्या अगर आपको चरित्रों का ज्ञान हो तो अक्सर यह काम करते हैं। एक मास्टर साब ने जो पहली बार पधारे थे, ने छटवीं कक्षा में एक सवाल पूछा- एक हवाई जहाज दिल्ली से मुम्बई की ओर तीन सौ किलोमीटर की रफ्तार से जा रहा है तो बताओ मेरी उम्र क्या है?
पूरी कक्षा सन्न। सुइ पटक सन्नाटा। किसी भी छात्र के पास उत्तर नहीं था। अंत में पीछे की बेंचों पर बैठने वाला एक छात्र उठ खड़ा हुआ और पूछा- मास्साब मैं बताऊं?
हाँ हाँ तुम भी तो इसी कक्षा के छात्र हो बताओ, बताओ, मास्साब ने कहा।
सर आपकी उम्र चालीस साल है।
मास्साब गद्गद। सचमुच उत्तर सही था। मास्साब की उम्र चालीस साल थी। वे पीछे छात्र की ओर बढे। छात्र सहम गया कि अब पिटाई होगी। उसने दोनों हथेलियों से कनपटियों को सुरक्षित करते हुए सिर को एक ओर झुका लिया। मास्साब उसके निकट आये और उसे गले से लगा लिया। पूरी कक्षा एक बार फिर सन्न। उस लड़के के साथ भी यह गौरव के क्षण ऎतिहासिक थे। वे उसके कन्धे पर हाथ रख कर कक्षा में आगे ले आये और अपनी सीट के पास खड़ा करके बोले – शाबाश, अब तुम पूरी कक्षा को समझाओ कि तुमने कैसे हिसाब लगाया और इस सही उत्तर तक पहुँचे। छात्र ने एक बार मास्साब को फिर परखा और आश्वस्त होकर बोला- सर मेरे एक बड़े भाई हैं वे आधे पागल हैं, और उनकी उम्र बीस साल है।
मैं भी अगर जान की अमान पाऊँ तो कहूं कि नोटबन्दी की हैप्पी बर्थडे पर महामना रवि शंकर प्रसाद ने उसके प्रभावों में से एक जो देह व्यापार में कमी महसूस की है वह ऐसी ही है। वे विकास के बड़े पापा की तरह लग रहे हैं। किंतु पार्टी में वे अकेले नहीं हैं उनके मामा भारत माता के मध्य प्रदेश अर्थात गोद में खेलते हुए महसूस कर रहे हैं कि प्रदेश की सड़कें वाशिंग्टन की सड़कों से अच्छी हैं। कुछ लोग गाय के गोबर ही नहीं नथुने से भी आक्सीजन छुड़वा रहे हैं। कुछ लोग राम मन्दिर बना कर राम राज्य लाने की घोषणा कर रहे हैं। ये बात अलग है कि राम बनवास की धरती पर उनके प्रचार का असर केवल इतना हुआ कि उनकी पार्टी हर तरह की झीक [यह एक बुन्देली शब्द है] लगाने के बाद भी पराजित हो गई। पता नहीं मुख्यमंत्री का उखाड़ा गया टायलेट अब कहाँ गाड़ा जायेगा।


व्यंग्य सड़कीले नेता

व्यंग्य
सड़कीले नेता
दर्शक
रामभरोसे प्रार्थना कर रहा था- हे प्रभु मुझे लक्ष्मीजी का उल्लू बना देना, गणेशजी का चूहा बना देना, और चाहे तो गुजरात का गधा बना देना जिसका विज्ञापन सदी का महानायक कहलाने वाला वयोवृद्ध अभिनेता करता है, पर मुझे किसी पार्टी का प्रवक्ता मत बनाना, खास तौर पर फेंकू उस्तादों की राष्ट्रवादी पार्टी का। पहले तो सोचता था कि प्रवक्ता बनना सबसे अच्छा है जिसके सहारे बिना कुछ किये धरे ही प्रतिदिन टीवी पर अपना चौखटा दिखाने का मौका मिलता है, पर जबसे देखा है कि प्रवक्ता को नेता के प्रत्येक बयान का बचाव करते हुए उसे दुनिया का सबसे सही वकव्य सिद्ध करना पड़ता है तब से आत्मा कांप गयी है।
यह प्रार्थना मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के वाशिंग्टन में दिये उस बयान से सम्बन्धित टीवी शो देखने के बाद हो रही थी जिसमें प्रवक्ता ने शिवराज सिंह द्वारा मध्य प्रदेश की सड़कों को अमेरिका की सड़कों से बेहतर बताया था व प्रवक्ता जी सारे पैनलिस्टों और लाखों दर्शकों की उपहासपूर्ण हँसी के बीच बयान का बचाव कर रहे थे। उसी के बाद ही प्रदेश, देश और स्थानीय मीडिया में प्रदेश की टूटी फूटी सड़कों के हजारों फोटोग्राफों के साथ तरह तरह के कार्टून व टिप्पणियां प्रकाश में आने लगीं। रोचक यह है कि जब सारे लोग मजे ले रहे थे तब भी प्रवक्ता अपनी बात ठेल रहे थे जबकि उनके हाव भाव से लग रहा था कि वे खुद भी अपनी बात से मुतमईन नहीं हैं।
भाजपा को जहाँ एक ओर कुर्सी के लिए सारे समझौते करना पसन्द है वहीं अपने किसी नेता का कुर्सी छोड़ना बिल्कुल नहीं भाता। उनकी पार्टी में जिसने भी स्तीफा दिया उसका फजीता हुआ। मदनलाल खुराना हों, उमा भारती हों, बाबूलाल गौर हों, येदुरप्पा हों, कल्याण सिंह हों, केशू भाई पटेल हों, जसवंत सिंह हों, यशवंत सिन्हा हों सभी पछताये। उमर और स्वास्थ के कारणों से भी हटाये गये लोग भी दुखी दिखे। बाबा राम रहीम के साथ बराबर के साझेदार हरियाणा के खट्टरों समेत किसी ने स्तीफा नहीं दिया। राष्ट्रीय पार्टी को बचा खुचा टुकड़ा डालने वाली शिरोमणि अकाली दल के साथ जो मिला उसे भी अपमान की चटनी के साथ चाटते रहे। शिव सेना चाहे जब लतियाती रही पर कुर्सी के लालच में इन्होंने उसे पुचकारना बन्द नहीं किया। मध्य प्रदेश में इतने काण्ड हुये और हर बार लगा कि अब तो सरकार को अपना बोरिया बिस्तर समेट लेना चाहिए किंतु मुख्यमंत्री के चक्कर में काँग्रेसी राज्यपाल को भी तब तक वापिस नहीं बुलाया जब तक कि स्वयं यमराज ने नोटिस नहीं भेज दिया। हाल यह है कि अभी तक भी उस राजभवन में कोई स्थायी राज्यपाल आने की स्थिति नहीं बन सकी है।
मध्य प्रदेश के अनेक केबिनेट मंत्रियों की तरह छत्तीसगढ के मंत्री की सीडी भी सरे बाज़ार नीलाम हुयी और प्रवक्ताजी के सामने फिर संकट खड़ा हो गया। किसी को भी नक्सलवादी कह कर बन्द कर देने वाली छत्तीसगढ की पुलिस नोएडा के पत्रकार के पीछे पड़ गयी जिसने स्टिंग किया था। एक ओर प्रवक्ता जी कह रहे हैं कि सीडी में मंत्री जी नहीं हैं और दूसरी ओर कह रहे हैं कि देश के एक वरिष्ठ पत्रकार को आधी रात गिरफ्तार करके सही किया। भैया जब सीडी ही असली नहीं है तो सामने आने देते। कहा जाता है कि हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री के दुश्मन संजय जोशी की सीडी तो गुजरात से ही जारी हुयी थी जिसकी लीपापोती मध्य प्रदेश में ही हुयी थी।
नैतिकता और भावना को ठेस इत्यादि लगने की बातें तो हाथी के दांत हैं। कुर्सी मिली हो तो सब हजम कर लेती है राष्ट्रवादी पार्टी और उनका मातृ पितृ संगठन । संगठन ने बंगारू लक्षमण से लेकर जूदेव और येदुरप्पा से लेकर व्यापम तक किसी की आलोचना नहीं की।

भाजपा प्रवक्ता होने के लिए कितना बेशर्म होना पड़ता है।                                                                                                                                                                                                                                   

व्यंग्य विकासखाना में एडवांस दिवाली


व्यंग्य
विकासखाना में एडवांस दिवाली
दर्शक
क्या फेसबुक, क्या व्हाट’स एप्प सब के सब हैप्पी दीवाली की फुलझड़ियों, खील बताशों और लक्ष्मीजी के सूंड़ उठाये हाथियों से भर गया था। यह देख कर रामभरोसे खीझ गया। उसने गुस्से में लिखा कि अभी दीवाली को एक साल से ज्यादा पड़ा है और आप लोग हैप्पी दीवाली, हैप्पी दीवाली चिचियाए जा रहे हैं। बन्द करो।
उसके ऐसा लिखने के बाद एक साथ पचासों उत्तर आये- दीवाली तो आज ही है।
रामभरोसे ने गुस्से से उत्तर दिया – विकास हो गये हो क्या! आप लोगों को देश के प्रधानसेवक पर बिल्कुल भरोसा नहीं है जिन्होंने खाकड़ा आदि पर जीएसटी कम करते हुए घोषणा की थी कि देश में पन्द्रह दिन पहले ही दिवाली आ गयी है। पूरा देश खुशी से झूमने लगा है। अब जब दिवाली बीत ही चुकी है तो अब काहे की हैप्पी दिवाली, हैप्पी दिवाली। जो हो ली, सो हो ली। अगली दीवाली तो गुजरात के चुनाव हो जाने के बाद ही आयेगी।
राम भरोसे का दिमाग बहुत तेज चलता है, कई बार तो वह उससे भी आगे निकल जाता है जिसका पीछा करते हुए वह तेज चल रहा होता है। पिछले दिनों विश्व पर्यटन स्थल से बाहर कर दिये गये ताजमहल को देखने आगरा गया था, और वहाँ के प्रसिद्ध पागलखाने को देख कर सलाह दे आया कि इसका नाम विकासखाना रख देना चाहिए, क्योंकि विकास पागल हो गया है।
इसी विकासपंती में मध्य प्रदेश के एक आईपीएस के ज्ञान चक्षु अचानक ऐसे खुल गये, जैसे कलियां चिटक कर फूल बनती हैं। वे शायद किसी विक्रमादित्य की न्यायशिला पर विराजमान हो गये हों जैसे। बोले कि पीएससी की परीक्षा में जो मेरी रैंक से बहुत पीछे था वह आरक्षित वर्ग का होने के कारण आईएएस बन गया और मैं आईपीएस रह गया। उन्हें कर्ण और शम्बूक की कथाएं याद नहीं आयीं जिनके साथ जाति के कारण ही अन्याय हुआ था। सामाजिक न्याय को यही तो शिकायत है कि न्याय की मांग वह बहुत चयनित होती है। पौराणिक इतिहास को तो छोड़िए उन्हें अभी हाल ही में लिब्राहन आयोग की जाँच की तरह खिंच रही व्यापम की याद भी नहीं आयी जिनमें योग्यता के ऊपर पैसा, सम्पर्क और पद ने हजारों प्रतिभाओं की ऐसी की तैसी कर दी थी और न्याय भी नहीं मिला। न्याय न मिलने देने के लिए दर्जनों की जान जरूर चली गयी। पता नहीं तब आईपीएस साहब ने मुँह क्यों नहीं खोला था।
पिछले दिनों दलितों, पिछड़ों की चेतना में जो उभार आया है वह फोड़ा फुंसी नहीं है कि बुजर्गों के आशीर्वाद से फल फूल गये हों। उन्हें समान मानव होने और संविधान में निहित समान अधिकारों का भान हो गया है। उन्हें यह भी समझ में आ गया है कि अधिकार भीख में नहीं मिलते अपितु लड़ कर छीने जाते हैं। इसी भान ने सत्ता की मलाई सड़ोकने वालों को बेचैन कर रखा है कि अब कम्बल साड़ी और दारू की बोतल पर वोट नहीं मिलने वाला सो कम होते रोजगारों के अवसर से जनित गुस्से को आरक्षण की ओर मोड़ दो। कच्ची, जली, सूखी, चुपड़ी का सवाल तो बाद में आयेगा पहले रोटियां तो हों।
एक विकास हरियाणा की जेल में जमानत के लिए छटपटाते हुए पड़ा है तो दूसरा विकास गुजरात में सोलह हजार गुना एक साल में हो जा रहा है क्योंकि वह न खाऊंगा न खाने दूंगा की घोषणा वाली पार्टी के अध्यक्ष का बेटा है। उसे अम्बानी की कम्पनी बिना किसी जमानत के करोड़ों का ऋण दे देती है और उसे अपनी खाता बही में भी नहीं दिखाती।
दिन भर रोजी रोटी की मारामारी में जूझ रहे  मोदी मोदी जपते आम भक्त आदमी को तो पता ही नहीं चलता कि नेपथ्य के पीछे क्या खेल चल रहा है। राहत इन्दौरी ने कहा है-
बन के इक हादसा बाज़ार में आ जायेगा /  जो नहीं होगा वो अखबार में आ जायेगा

चोर उचक्कों की करो कद्र कि मालूम नहीं /  कौन कब कौनसी सरकार में आ जायेगा