रविवार, 28 मई 2017

व्यंग्य लाल बत्ती का हलाल होना

व्यंग्य [लघुकथा] 
लाल बत्ती का हलाल होना

दर्शक
उनका ड्राइवर मैकेनिक के पास गाड़ी में हूटर लगवाने आया था। उसका चेहरा ऐसा उतरा हुआ था जैसे किसी घर में कोई बिना कोई सम्पत्ति छोड़े मर जाता है और अंतिम संस्कार का खर्चा छोड़ जाता है।
पूछा क्या हुआ, तो बोला लाल बत्ती गई। निराशा ऐसी थी जैसे दाग ने कहा है-
होश-ओ, हवास-ओ ताब-ओ तवाँ दाग जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं, सामान तो गया
बात सचमुच ही अफसोस की थी। न तो वे मंत्री थे और न ही आईएएस थे, पर लाल बत्ती वाले थे। लाल बत्ती वाले इसलिए थे क्योंकि उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ था। यह दर्जा बड़ी मुश्किल से मिलता है। इसका हाल वही होता है कि
मुहब्ब्बत रंग दे जाती है, जब दिल, दिल से मिलता है
मगर मुश्किल तो ये है, दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है
उन्होंने जिन्दगी भर फर्श बिछाया था, पोस्टर चिपकाये थे, रिक्शे पर लाउडस्पीकर रख कर भाइयो बहिनो कह कर मीटिंग की घोषणा की, प्रदर्शन किये, नारे लगाये, नारों के उत्तर दिये, बड़े नेता के आने तक भाषण दिये, फिर बड़े नेता के भाषण सुने, छोटे मोटे पदाधिकारी बन कर उसे मोटे मोटे अक्षरों से अपने पुराने स्कूटर पर लिखवाया। विधायकों का जलवा देख कर विधायक बनने के सपने पाले, सोचा जब हमारी पार्टी के दिन आयेंगे तो हम भी चुनाव लड़ेंगे, विधायकों जैसे हाथ जोड़ कर गेन्दे की फूलों की माला पहिनेंगे। हुआ भी वैसा ही। पार्टी के दिन फिरे, वे खुश हुये कि अब बनेंगे विधायक व मौका लग गया तो मंत्री बनेंगे, लाल बत्ती की गाड़ी में फर्राटे मार कर निकल जायेंगे।
पर पार्टी हाईकमान भी कोई चीज होती है। चुनाव आये। क्षेत्र का पुराना खाँटी विधायक तत्कालीन सत्तारूढ पार्टी का था। कुत्ते की तरह उसने सूंघ लिया कि हवा किस तरफ की बह रही है सो वह दिल्ली जाकर इनकी पार्टी के हाई कमान से मिल आया। देवता से मिलने जाने पर प्रसाद तो चढाना ही पड़ता है। हाईकमान नगर में पधारे तो सीधे इनके पास आये, घर के बच्चों को दुलारा और बोले कि आप लोगों की मेहनत की वजह से ही यह दिन आया है कि डूबते जहाज से चूहे कूद कूद कर भाग रहे हैं। यहाँ का विधायक हमारी शरण में आ रहा है, हमारी पार्टी में शामिल हो रहा है। मैं चाहता हूं कि आप ही उसके फार्म पर अनुमोदन दें। मंच पर आप बैठेंगे। वे खुश हुये। विधायक ने बड़ा ताम झाम जोड़ लिया था। वह अपने दो सौ साथियों के साथ शामिल हो रहा था। उसने पूरा मीडिया बुला लिया था जिनके डिनर और और उसके पूर्व का कार्यक्रम भी सबसे बड़े होटल में तय था। मंच पर हाईकमान ने उसका स्वागत किया, माल्यार्पण किया तो उसने उनके पैर छुये। हाईकमान के इशारे पर इनके भी पैर छुये तो ये गद्गद हो गये। अगले दिन अखबारों में उसके और हाईकमान के फोटो भरे हुये थे। इन्होंने सारे कोणों से देखा पर इनके कुर्ते की किनोर तक किसी फोटो में नहीं दिखी। इसके साथ ही सम्भावना व्यक्त की गयी थी कि अगला टिकिट उसी को मिलेगा। इन्हें धक्का लगा। सारा राष्ट्रवाद धरा रह गया। हिन्दू के खून खौलाने का चूल्हा बुझ चुका था। जो हमेशा पार्टी की विचारधारा को गाली देता था, वह अब इसी पार्टी की ओर से विधायक बनेगा और इन्हें जय जय कार करना पड़ेगी। काटो तो खून नहीं।
जो होना था वही हुआ। उसे टिकिट मिला और इनकी शक्ल पर बारह बज रहे थे। इनने तय किया कि ये विरोध करेंगे। जिस पार्टी के पक्ष में ज़िन्दगी भर चिचियाते रहे उसी को हराने के लिए काम करेंगे। फुसफुसाहट हाईकमान तक पहुंची तो उन्होंने बुलावा भेजा। बोले तुम्हारे प्रचार से अभी तक तो हमारी पार्टी का उम्मीदवार जीत नहीं सका था, सो यह भी नहीं मान सकते कि अब हार जायेगा। पहली बार प्रदेश में सरकार बनने की स्थितियां बन रही हैं तो क्यों अपने ज़िन्दगी भर के काम को मिट्टी में मिलाते हो। सरकार बन गई तो केवल विधायक ही तो पद नहीं होता, सैकड़ों दूसरे भी मौके होते हैं। पार्टी का कहा मानोगे तो फायदे में रहोगे।
झक मार कर उन्होंने पार्टी का कहा माना था, सो पार्टी ने उन्हें कोई पद देकर लाल बत्ती की गाड़ी का मौका दिया था। पर उन्हें लाल बत्ती में बैठ कर एक महीना भी नहीं हुआ था कि सबकी लाल बत्तियां गुल कर दी गयीं। वे पुनर्मूसको भव की स्थिति को प्राप्त होने जा रहे थे। लाल बत्ती का ड्राइवर केवल ड्राइवर होने जा रहा था। बंगले पर तो मातम ही छाया हुआ था।

लाल बत्ती हलाल हो गयी थी।  

व्यंग्य ब्रिग्रेडियर साब

व्यंग्य
ब्रिग्रेडियर साब

दर्शक
कल तक राम भरोसे का सपूत, जो नरेन्द्र मोदी को इस बात के लिए कोस रहा था कि उन्होंने दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करके तीन साल में दो लाख को भी हिल्ले से नहीं लगाया, आज खुश दिखायी दिया। मैंने कारण पूछा तो बिना बताये मुस्कराकर निकल गया। मेरी जिज्ञासा शायरी की भाषा में शबनम से शोला हो गयी, अर्थात भड़क गयी। मैं यह भड़की हुयी आग लेकर भागा भागा राम भरोसे के यहाँ पहुँचा तो देखता हूं कि राम भरोसे खुद ही मिठाई का डिब्बा लिये बैठे हैं। राम भरोसे से मिठाई खाना बैल दोने जैसा कठिन काम है, सो जिज्ञासा और भड़क गयी। मुझे देख कर ही उन्होंने मिठाई का डिब्बा मेरी ओर बढाते हुए दूसरी ओर मुँह कर लिया ताकि पीक थूक सकें क्योंकि इस समय उनका मुँह गुटखा से लारायित था। पीक की पिचकारी छोड़ने के बाद उन्होंने उद्गार प्रकट किये। बोले, बधाई हो तुम्हारे भतीजे को काम मिल गया है। मैंने बनन में बागन में बसंत की तरह नकली खुशी बगराते हुए पूछा कब, कहाँ?
उन्होंने शांत रहने का इशारा करते हुए कहा, बताता हूं पहले मिठाई तो खाओ।
मैंने भी खुशी को दुहरी प्रकट करने के लिए बरफी के दो पीस एक साथ उठा लिये और इस तरह खाने लगा जैसे कि शांत रहने के लिए खा रहा होऊँ।
राम भरोसे ने धैर्य के साथ बताया कि उत्तर प्रदेश के फ्री और फेयर चुनावों के बाद योगी जी की सरकार आयी है................
........................... और उन्होंने गुटका छोड़ने के लिए आदेश दिये हैं। मैंने कहा।
.............. अरे वह तो उन्होंने अपने स्टाफ के लिए कहा है। राम भरोसे खीझ कर बोला- योगी जी ने आते ही नये नये काम शुरू किये हैं जिसमें से एक बड़ा काम ऎंटी रोमियो ब्रिग्रेडों का गठन भी है, उसमें अपना श्रवण कुमार भी ब्रिग्रेडियर बन गया है। उसने गले में पीला दुपट्टा डाल कर वर्दी भी बनवा ली है और एक मोटा सा लट्ठ भी ले आया है। ड्यूटी भी बहुत अच्छे पर्यावरण वाले स्थलों में लगती है जहाँ प्रेम पनपने के लिए अनुकूल वातावरण बनता है। । वही स्थल तो ऐसे होते हैं जिसमें उसके दुश्मन पाये जाते हैं। पहले योगी के शपथ लेते ही पुलिस वालों ने यह काम हथिया लिया था, पर अगर वे ही करते तो बच्चों को काम कैसे मिलता, सो उनको रोक दिया। मौका देखते ही हमारा बहादुर दुश्मन पर हमला बोल देता है। पीला दुपट्टा देखते ही दुश्मन को सामने  पूरी योगी सरकार की ताकत दिखने लगती है। डर के मारे थर थर काँपता हुआ दुश्मन गिड़गिड़ाने लगता है और दो चार झापड़ खाने के बाद लड़की को पिज्जा खिलाने के लिए जुटाये पैसे निकाल कर रख देता है। लड़की तो रोने लगती है कि कहीं उसके घर वालों को पता न चल जाये।
देख लेना दर्शक जी अगर अपनी नफरत फैलाने वालों का शासन दस साल चल जाये तो लोग प्यार करना भूल जायेंगे। ऊपर मोदीजी, नीचे योगी जी और दोनों को नियंत्रित करते भागवत जी क्या दृश्य होगा। नफरत नफरत नफरत चारों तरफ नफरत। कहीं मुसलमानों से नफरत, कहीं ईसाइयों से नफरत, कहीं कम्युनिष्टों से नफरत, कहीं प्यार करने वालों से नफरत, कहीं दलितों से नफरत, कहीं दक्षिण के काले लोगों से नफरत, कहीं उत्तरपूर्व के चिंकियों से नफरत, बराबरी करती महिलाओं से नफरत। पूरे देश में कटप्पा और बाहुबली ही मारकाट करते घूमते मिलेंगे। सतियां, देवदासियां, हाथी, घोड़े, तलवार, भाले, त्रिशूल, लाठी, दनादन दनादन, खचाखच खचाखच। जो लोग ब्रिग्रेड में नहीं वे गौरक्षा का काम करते हैं, कुछ मन्दिर बनाने के लिए मस्जिदें गिराने का काम करेंगे। रोजगार ही रोजगार।  

रामभरोसे, जो कभी अपने श्रवण कुमार की नौकरी के लिए चिंतित रहता था, उस संकट को भूल चुका था और अपने ब्रिग्रेडियर बेटे के भविष्य की सुखद कल्पनाओं में खो गया था। मैंने उसकी खुशी की खातिर मिठाई के डिब्बे से एक पीस और उठाया और खिसक लिया।     

गुरुवार, 4 मई 2017

व्यंग्य गंगा, नर्मदा, गाय, मन्दिर, साध्वी, योगी,

व्यंग्य
गंगा, नर्मदा, गाय, मन्दिर, साध्वी, योगी,
दर्शक
भाषा, समाज की आत्मा होती है। हमारे देश में वही भाषा बदल रही है। कहा जाता है कि भूत के पाँव उल्टे होते हैं, और जो भूत काल की ओर मुंडी घुमा कर चलने में ही अपना भविष्य देखते हैं, उनका वर्तमान खराब ही होता है।
संघ परिवार भाषा पर विशेष ध्यान देता है। इसी के माध्यम से वे अपने परिवेश के स्वरूप को बदलने का दम भरते हैं। ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों से शिक्षित लोग जब विज्ञान पढने लगे व वैज्ञानिक दृष्टि से सोचने लगे तो उन्होंने भी समानांतर स्कूल खोले और उनका नाम स्कूल की जगह मन्दिर रखा। जैसे सरस्वती शिशु मन्दिर। अब तय है कि कोई मुसलमान मन्दिर में क्यों जाना चाहेगा, और दलितों का मन्दिर प्रवेश तो वैसे ही वर्जित है। सो हो गया विभाजन। सवर्ण हिन्दू बच्चे मन्दिर में और बाकी सरकारी स्कूलों में।
इस सादगी पै कौन न मर जाये या खुदा
लड़ते भी हैं , और हाथ में तलवार भी नहीं
मन्दिरों में स्कूल ड्रैस या यूनीफार्म नहीं पहिने जा सकते इसलिए उन्हें गणवेश कहते हैं, संघ के गणवेश में अब हाफ पेंट की जगह फुल पेंट आ गया पर नाम गणवेश ही रहा। पेंट पहिना जाता है किंतु ‘गणवेश” धारण किया जाता है। वे सड़क छाप नहीं होते इसलिए चुनाव के दौरान ‘रोड शो’ नहीं करते अपितु ‘पथ संचलन’ करते हैं।
जहाँ आप मोटर, कार, ट्रक, जीप, आटो, आदि आदि विदेशी वस्तुओं का उपयोग करते हैं, वहीं अडवाणी एंड कम्पनी रथ की सवारी करती है और रथ के सहारे ही दो लाख लोगों को हाँक कर अयोध्या में मस्जिद गिराती नहीं अपितु विवादित ढाँचे को ध्वस्त करा देती है, जैसे अगर विवाद हो तो सजा देने का काम उनके अधिकार क्षेत्र में आता हो। इसी अधिकार के अंतर्गत राजस्थान का गृहमंत्री कहता है कि अलवर में मारा गया पहलू खान गौ तस्कर था, और उसकी गुलाम पुलिस उसकी हत्या करने वालों के साथ साथ उस पर भी केस कायम कर लेती है। अखलाख के घर में पाया गये मांस का डीएनए तय करने में प्रयोगशालाओं को महीने लग जाते हैं किंतु भीड़ अपनी आस्था के कारण तुरंत तय कर लेती है और सजा दे देती है। गुजरात में मृत पशु की खाल उतारने वाले जिन्दा लोगों की खाल उतारने वाले किसी सरकारी न्यायाधीश की तुलना में अधिक सुख भोग रहे हैं।
पूरे देश में पुरातन काल छाया हुआ है, इसलिए देश में एजेंडा तय करने के लिए मीडिया को क्रय कर लिया गया है। अब पूरे देश में न किसानों का लागत मूल्य और बाज़ार भाव समस्या है, न बेरोजगारी समस्या है, न शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं में मची लूट समस्या है, न कश्मीर समस्या है, न नक्सलवाद समस्या है, असली समस्या गाय है जिसके बहाने अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक करके बहुसंख्यक भावनाओं को उभारना और उसकी पूंछ पकड़ कर वैतरिणी पार करना, या न कर पाना, ही समस्या है। पिछ्ले दिनों अनियंत्रित सोशल मीडिया पर जितनी गायें कटते हुए देश ने देखीं उतनी तो शायद पौराणिक काल से अब तक नहीं काटी गयी होंगीं। वोट इसी तरह झड़वाये जाते हैं।
गंगा का तो पूरा मंत्रालय बना दिया गया है जिसने तीन साल में गंगा की शुद्धता के लिए तो कुछ नहीं किया, केवल बजट को ठिकाने लगाने के लिए तरीके तलाशे हैं। उस विभाग की भगवा वस्त्रधारी मंत्री कहीं नदी की भावना में बह कर मध्य प्रदेश के घाट पर न लग जायें इसलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सारे कामधाम छोड़ कर नर्मदा मैया की जगह जगह पूजा आरती प्रारम्भ कर दी है और मान रहे हैं कि इन आयोजनों के बाद किनारे पर गन्दगी छोड़ कर नदी शुद्ध हो जायेगी। नर्मदा के विस्थापित अभी भी परेशान हैं, पर पूरी केन्द्र सरकार मैय्या की आरती गाने क्रमशः पधार रही है।
कहीं गंगा, कहीं नर्मदा, कहीं गाय, कहीं मन्दिर से भी पेट नहीं भरा तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी को ले आये और गले गले तक सरकारी विज्ञापनों से भरा मीडिया शेष बचे स्थान पर योगी के कुल्ला करने तक की कहानियां किश्तों में चला रहा है। जहाँ अनुशासन और प्रशासन पूरी तरह गुंडों के हाथों में आ गया हो, जहाँ एसएसपी के घर में भीड़ लेकर एमपी घुसे जा रहे हों, जहाँ थानों में आग लगायी जा रही हो, जहाँ ताजमहल को बाबरी मस्जिद बनाने की तैयारियां शुरू हो गयी हों, उस प्रशासन की गाथाएं गायी जा रही हैं। गुण गाये जा रहे हैं।