गुरुवार, 15 सितंबर 2016

व्यंग्य टूटने का समय

व्यंग्य
टूटने का समय 
दर्शक
बशीर बद्र ने कहा है-
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में
जहाँ से देखो वहाँ से टूटने की खबरें आ रही हैं। टूटना इस दौर की प्रमुख घटना बन गई है। किसी फिल्मी गीत में कहा गया है कि -
शीशा हो या दिल हो आखिर ..... टूट जा...ता है, टूट जाता है।
पहली खबर राहुल गाँधी की खाट सभा से आयी थी जहाँ सभा के बाद खाटें लुट ही नहीं रही थीं लुटने में टूट भी रही थीं। जिसको जो मिला वो उसी को ले भागा। काँग्रेस के टूटने का तो पुराना सिलसिला है जिसमें कभी नई काँग्रेस, पुरानी काँग्रेस, जन काँग्रेस, नैशनल काँग्रेस, केरल काँग्रेस, और न जाने कितनी कितनी काँग्रेसें टूट टूट कर गिरती पड़ती रही हैं। इस काँग्रेस के टुकड़े हजार हुए कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा। जिन्होंने काँग्रेस नाम नहीं भी रखा पर वो काँग्रेस होते गये जिसका ताजा उदाहरण पिछले दिनों अटल बिहारी सरकार के विनिवेश मंत्री रहे अरुण शौरी के बयान से मिला जिन्होंने मोदी सरकार को गाय प्लस काँग्रेस बताया है। काँग्रेस टूट कर भी काँग्रेस रहती है जैसे किसी कवि के पास खाट का केवल एक पाया बचा था और जब वह उसे बेचने निकला तो उसने आवाज़ लगायी-
खाट लो खाट
सियरा [सिरा] नहिं है, पाटी नहिं है
बीच का झकझोल नहिं है
चार में से तीन नहिं है
खाट लो खाट
राहुल गाँधी इसी तरह से काँग्रेस की खाट यूपी में लुटा रहे हैं।
भाजपा ने जब देखा कि खाट तुड़वा कर काँग्रेस मीडिया के माध्यम से पूरे देश में छायी जा रही है तो उसके अध्यक्ष को बहुत बुरा लगा। उन्होंने हर सूरत में अपनी पार्टी को काँग्रेस के मुकाबले में कड़ा करना चाहा और गुजरात के सूरत में अपनी आमसभा में कुर्सियां तुड़वा लीं। इस सभा में दो साल से कुर्सी तोड़ रही आनन्दी बेन भी थीं और नये मुख्यमंत्री भी थे। कुर्सियां टूटती ही नहीं उछलती भी हैं इसलिए उन्होंने सावधानी यह बरती कि कुर्सियों की उछाल को जनता के बीच तक सीमित रखने के लिए मंच की तरफ जाली लगवा कर रखी थी। शायद अगली आमसभा में नेता बुरका पहिन कर आयेंगे और भाषण देने से पहिले ही बुरका उतारेंगे, व भाषण देने के बाद फिर पहिन लेंगे।
टूटन हर गठबन्धन सरकार को धोखा देने वाले मुलायम की पार्टी में भी चल निकली है। चाचा भतीजा आमने सामने हैं। मुख्यमंत्री भतीजा चाचा से मंत्रालय छीन रहा है तो चाचा ने यूपी समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद छीन लिया। जहाँ अमर सिंह पहुँच गये हों वहाँ परिवार वाले भी एक कैसे रह सकते हैं। उसने सबकी नसें दाब रखी हैं। लगता है कि अखिलेश और मौनी बाबा बने आज़म खान अच्छे लड़के राहुल से गले मिल जायेंगे और अमर सिंह बाकी की समाजवादी भैंसों को अपने वकील अरुण जैटली के खटाले में बाँध देंगे।   
उत्तर प्रदेश में टूटन शुरू हो गयी हो तो बिहार कैसे बचा रह सकता है जहाँ पहले से टूटे हुए ही जोड़ लगा कर बैठे हों। परिस्तिथिजन्य मुख्यमंत्री नीतिश कुमार कब तक पूंछ से पूंछ बाँधे बैठे रह सकते हैं। रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय / जोड़े से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय। वहाँ बहाना शहाबुद्दीन बन गये। अगर ऐसी दशा में ही नहीं टूटे तो कब टूटेंगे जब एक जाना माना आरोपी चुनौती दे रहा हो।
मायावती की पार्टी का नाम बहुजन समाज पार्टी है पर उससे क्या होता है, आखिरकर तो वह मायावती पार्टी ही है। उसके विधायक प्रतिदिन के हिसाब से भाजपा के शो रूम में बिकने के लिए तोड़े जा रहे हैं। 
अधूरे राज्य दिल्ली की सरकार में बैठी आप पार्टी तिल तिल कर के टूट रही है। केन्द्र की सरकार शिकारी की तरह एक एक विधायक को टपका रही है। चुनाव में जीत का गणित बिठा लेने वाले मोदी का विरोध तो अलोकतांत्रिक है किंतु चुनाव में जीते केजरीवाल की पार्टी को सामदाम दण्ड भेद से तोड़ना लोकतांत्रिक है।
कश्मीर टूटने के कगार पर पहुँचा दिया गया है किंतु सत्तालोभी भाजपा और पीडीपी का गठबन्धन अब टूटे कि तब टूटे के चरम बिन्दु पर है।

टूटन का डर इतना है कि बकौल दुष्य़ंत कुमार -
सिर से सीने में कभी, पेट से पाँवों में कभी
एक जगह हो तो कहें दर इधर होता है 

व्यंग्य लाश प्रधान देश

व्यंग्य
लाश प्रधान देश
दर्शक
कभी हमारा देश कृषि प्रधान देश कहलाता था, जो आज कृषकों की पेड़ से लटकती हुयी लाशों के लिए मशहूर हो रहा है। किसी प्रदेश का कोई जिला ऐसा नहीं बचा जहाँ किसानों ने आत्महत्या न की हो। मुनव्वर राना का शेंर है-
हजारों कुर्सिया इस मुल्क में लाशों पै रक्खी हैं
ये वो सच है जिसे झूठे से झूठा बोल सकता है
टीवी समाचारों के प्राइम टाइम ने डिनर टाइम बदल दिया है। आम तौर पर लोग दोनों काम एक साथ करते थे। मुँह से खाना खाते जाते थे और आँख कान से समाचार हजम करते जाते थे, पर अब मुँह के स्वाद में मनुष्य की मृत देह घुसी चली आती है, क्योंकि मुँह में निवाला और सामने अपनी पत्नी की लाश को कन्धे पर ढो कर लाने वाला। वह अपनी रोती हुयी किशोर बेटी के साथ चला जा रहा है, चैनल दर चैनल। उसकी यात्रा खत्म होती नजर नहीं आती। कितने भी चैनल बदल कर देख लो पर उसकी गति जारी है। सोशल मीडिया पर भी प्रत्येक पोस्ट में वह विद्यमान है। जहाँ नहीं है वहाँ और भी भयानक है। एक लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाना है और सरकारी वाहन नहीं है क्योंकि सरकारी वाहन तो विशिष्ट लोगों की शोभायात्रा में लगे होते हैं जहाँ मंत्री, अफसर और उनके कुत्ते सवार होकर निकलते हैं। आम आदमी के लिए तो केवल वे टेलीफोन नम्बर हैं जिनके लगाने पर उन्हें कोई उठाता नहीं है। आटो वाला 3500 रुपये मांगता है और प्रावधान केवल सौ रुपये का है। कर्मचारी विवश हैं सो वे लाश की कमर पर लात रख कर कमर से उसके पैर तोड़ते हैं और गठरी बाँध कर बाँस से लटका कर ट्रेन में पटक आते हैं। इस पूरी कार्यवाही का वीडियो आपके डिनर टाइम पर आता रहता है। सब कुछ इतना भयानक है कि माँसाहारी व्यक्ति भी अपनी प्लेट की मुर्गी की टांग ऐसे नहीं तोड़ पाता। दुष्यंत ने शायद ऐसे ही दृश्य देख कर कहा होगा-
कैसे मंजर सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
आप खाना नहीं खा पाते पर कहानियां खत्म नहीं होतीं। भोपाल के अस्पताल के शव गृह में चूहे लाश कुतर जाते हैं और एक के परिवारजन की लाश दूसरे को दे देते है। कहते हैं लाश लाश सब बराबर।  पर ऐसा है नहीं। मर जाने के बाद भी दलित की देह दलित रहती है। जिस प्रदेश में अगर सवर्ण का कुत्ता दलित की रोटी खा लेता है तो कुत्ते को गोली मार दी जाती हो, उस प्रदेश में कोई सवर्ण किसी दलित की शव यात्रा को अपने खेत में से कैसे निकलने दे सकता है भले ही गाँव के शमशान का रास्ता पानी में डूब गया हो। कन्धे कन्धे पानी में डूबे लोग शव को ऊपर उठाये चले जा रहे हैं। उनमें से कोई ‘राम नाम सत्य है’ कहता सुनाई नहीं देता। सन्देह होता है कि उनके लिए अभी भी वही सत्य है या बदल गया है।
लाश को देख कर आदमी संवेदनशील हो जाता है, क्योंकि उसे अपनी मौत याद हो आती है जिसके बारे में चचा गालिब कह ही गये हैं कि ‘मौत का एक दिन मुअइयन है’। टीवी देखने वाले को भी लगता है कि कहीं हमारा भी वह तयशुदा दिन ही तो आसपास नहीं है। यह संवेदनशीलता केवल अपने लिए सीमित होती जा रही है। दिल्ली में सुबह सुबह चौकीदारी करके लौट रहे एक आदमी को एक वाहन कुचल कर चला जाता है पर आसपास से गुजरने वालों में केवल एक आदमी रुकता है। पहले वह भी निकल गया था पर कुछ कदम चलने के बाद उसे अपना कर्तव्य याद आता है और वह लौटता है तथा पास में पड़ा हुआ मृतक का मोबाइल उठा कर अपने रास्ते चला जाता है।
रमानाथ अवस्थी बहुत पहले कह गये हैं-
यह् एक मुर्दों का शहर
किसके लिए लाऊँ नदी, किसके लिए खोदूं नहर
यह एक मुर्दों का शहर
कैसी अज़ब ये भीड़ है, हँसती नहीं रोती नहीं
क्या हो गया है चोट को, तकलीफ तक होती नहीं
जिसकी फिकर में दोस्तो, जागा किया मैं उम्र भर
ये एक मुर्दों का शहर
भोजपुरी में एक लोकोक्ति है-
भला भया पिऊ मर गये, इन बच्चन के भाग
सोलह ठो रोटीं बचीं, एक कटोरा साग  

वैसे सब के भाग्य में मौत का संतोष भी नहीं होता। चेन्नई में एक निर्माणाधीन भवन मध्य प्रदेश के पुलों की तरह गिर गया जिसमें कई मजदूर दब गये। उन मजदूरों में से एक      

व्यंग्य प्रतिशत का कमाल

व्यंग्य
प्रतिशत का कमाल
दर्शक
प्रतिशत अर्थात प्रत्येक सौ में इतने। कुल कितने इसका हिसाब आप लगा लो, जो इस बात पर निर्भर करेगा कि कुल सौ कितने हैं। प्रतिशत निकालने के लिए गणित में कमजोरी नहीं चलेगी।
सबसे पहले शून्य खोजने का दावा करने वाले गणित विशेषज्ञ हमारे पावन देश की राजनीति में भी प्रतिशत का बड़ा महत्व है। संघ परिवार को बेतरतीब जनसंख्या बढने से कोई परेशानी नहीं होती। उसमें वे शिक्षा या गरीबी का प्रतिशत नहीं देखते, उन्हें परेशानी इससे होती है कि उसमें मुसलमानों का प्रतिशत कितना है। इस प्रतिशत को दुरुस्त रखने के लिए वे आवाहन करते रहते हैं कि प्रत्येक हिन्दू वीर चार या उससे अधिक संतानें पैदा करे। ऐसा आवाहन करते समय वे उन पौराणिक ग्रंथों की कथाओं को भी भुला देते हैं जिनमें कौरवों के सौ पुत्रों के आगे पाँच पाण्डव भारी पड़े थे या इक लख पूत सवा लख नाती वाले रावण के घर में दो वनवासी युवाओं ने दिया बाती करने वाला भी कोई नहीं छोड़ा था। प्रतिशत की खोज में टकराव छुपा रहता है।
नौकरियों में आरक्षण के सवाल पर यह नहीं देखा जाता कि पदों की संख्या कितनी घटती जा रही है, पर यह जरूर देखा जाता है कि उसमें किस वर्ग का कितना आरक्षण है। हमारी अदालतें भी ध्यान रखती हैं कि नौकरियां चाहे जितनी घट जायें पर उनमें आरक्षण का प्रतिशत नहीं बढना चाहिए।
इकतीस प्रतिशत वोट लेकर वनस्पति शास्त्र वाले कमल के फूल ने 380 सीटें जीत कर देश पर अधिकार कर लिया किंतु चार प्रतिशत वोट लेकर भी हाथी ने अंडा देकर प्राणी विज्ञान के नियम को बदल दिया। यह सब गणित का खेल है।
पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गौरक्षकों का प्रतिशत निकाला। वे आमसभाओं के बहादुर हैं इसलिए जो बातें सदन में बोलना चाहिए उसे आमसभाओं में बोलते हैं। उन्होंने कहा कि बीस प्रतिशत गौ रक्षक ही असली हैं बाकी के अस्सी प्रतिशत गौरक्षक नकली हैं। ये अस्सी प्रतिशत रात में काले धन्धे करते हैं और दिन में गौरक्षक बन कर आ जाते हैं। वे प्रधानमंत्री हैं इसलिए उनकी बातों का वज़न होता है, भले ही वे कितनी भी हल्की बात करें। वे सदन में बोलते तो सदस्य सवाल पूछ सकते थे कि
·         देश में कुल कितनी गायें हैं?
·         इन गायों में देशी कितनी हैं और जर्सी कितनी हैं? [ वे उन्हें देश की एक नेता के लिए प्रयुक्त उनके बयान की याद भी दिला सकते थे जिसमें उन्होंने विदेशी मूल के लिए जर्सी गाय और उसके बछड़े को प्रतीक बनाया था]
·         क्या जर्सी गाय की पूंछ पकड़ कर भी वैतरणी पार की जा सकती है?
·         क्या नील गाय भी गाय है, यदि है तो उसके शिकार की अनुमति क्यों?
·         प्रतिशत बिना कुल संख्या के नहीं निकाला जा सकता इसलिए देश में कुल कितने गौरक्षक हैं?
·         इनमें से कितनों ने शपथ ली हुयी है कि वे केवल गाय के ही घी दूध का प्रयोग करेंगे?
·         इनके असली नकली होने की पहचान कैसे स्थापित की गयी है?
·         जब देश के प्रधानमंत्री को अस्सी प्रतिशत गौसेवकों के रात के काले धन्धे का पता है तो क्या उनकी सरकार केवल गिनती कर रही है?
·         असली गौरक्षकों का धन्धा क्या है?
·         क्या ऐसा असली नकली का छ्द्म रामभक्तों में भी नहीं है?
·         क्या दादरी में अखलाख की हत्या करने वाले असली गौ भक्त थे या नकली?
·         राजस्थान की गौशालाओं वाले असली हैं या नकली?
सदन के बाहर किसी अध्यक्ष को सम्बोधित करके नहीं बोलना पड़ता अपितु भीड़ को सम्बोधित करना होता है। और वैसे भी हमारे देश में सवाल पूछने वाले नचिकेताओं की गरदन उड़ा दी जाती है।  
 

   

व्यंग्य भूतप्रेतों की दुनिया

व्यंग्य नवोन्मेष


नवोन्मेष
दर्शक
पुराने जमाने के गौरव में जीने वाली पार्टी जब नवोन्मेष में उतरती है तो नई नई चीजें बटोर कर लाती है। जिन खोजा तिन पाइयाँ की तलाश में वह जब डूबा लगाती है तो पाइयाँ के नाम पर सिद्धू पाजी को ले आती है और सबसे सम्मानित सदन में मनोनीत कर देती है। आखिर देश में चल रही कामेडी पर नकली ठहाका लगाना वाला भी तो चाहिए। किसी शायर ने अपने हालात पर कहा है-
या तो दीवाना हँसे, या जिस पर हो रब का करम
बरना इस दुनिया में रह कर, मुस्करा सकता है कौन
पर मेरा मतलब कुछ अलग सा है। मध्य प्रदेश की सरकार चाहती है कि साम्प्रदायिकता के बीज बचपन से ही बो दिये जायें नहीं तो बकौल निदा फाज़ली-
चार किताबें पढ कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे
सो उन्होंने कहा कि स्कूल में छात्रों का स्वागत तिलक लगा कर किया जायेगा। जाहिर है कि जब यह बात राम मन्दिर वाली सरकार कहती है तो गैर हिन्दुओं के कान खड़े हो जाते क्योंकि लाड़ली लक्ष्मी के विवाह को कन्यादान योजना और तालाब को बलराम तालाब बना देने वाले कुछ भी यूं ही नहीं करते। जब थोड़ी कुनर मुनर हुई तो उन्होंने तुरंत कह दिया कि जिसे तिलक नहीं लगवाना हो वह नहीं लगवाये। वे यही तो चाहते थे सो सारे बच्चों को पता लग गया कि कौन किस धर्म का है। इससे पहले स्कूल में सूर्य नमस्कार के नाम पर भी वे ऐसे ही विभाजन के बीज बो चुके थे। अपने स्कूलों का नाम वे पहले ही मन्दिर के नाम से जोड़ चुके हैं- सरस्वती शिशु मन्दिर – सो मस्जिद में जाने वालों को सोचना ही पड़ता है कि मन्दिर जायें या नहीं। अंततः उन्हें सरकारी स्कूलों में ही जगह मिलती थी सो वहाँ भी तिलक और सूर्य नमस्कार आ गया।
अब एक नया विचार सामने आ रहा है कि म.प्र. के अध्यापक एप्रिन पहिन कर पढायेंगे। जो सरकार बसों, टैक्सी ड्राइवरों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को वर्दी पहिनने का अनुशासन नहीं ला सकी वह अध्यापकों को एप्रिन पहिनायेगी। एक तरह से ठीक भी है कि जब अध्यापकों का काम मध्यान्ह भोजन तैयार करवाना हो उसे एप्रिन पहिनना अच्छा ही लगना चाहिए। घर में शौचालय बनवाने के विज्ञापन में विद्या बालन बताती ही है कि जहाँ सोच वहाँ शौचालय। उसे पता है कि राकेट के दिमाग वाली मुन्नी जब खुले में शौच करेगी तो उस पर मक्खियां मंडरायेंगीं और वही मक्खियां उसके खाने पर बैठेंगी जो उसके खुले में किये गये शौच पर बैठने वाली हैं। इसलिए वह जानती है कि मुन्नी बीमार पड़ेगी, उसे कौन सी बीमारी होगी जिसकी दवाई वह पहले से लिये फिरती है। स्मार्टनैस की यही परिभाषा मोदीजी ने स्मार्ट सिटी के सन्दर्भ में मन की बात में बतायी थी। लिफाफा देख कर खत का मजमूं भाँप लेना ही तो स्मार्टनैस है।
गुजरात में मृत गाय का चमड़ा निकालने पर उदित राज की पार्टी के गौसेवी संगठनों ने चार दलितों को कार से बाँध कर बुरी तरह पीटा, उनका वीडियो बनाया और वायरल कर दिया ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत पर काम आवे। आगे से लगता है कि अपनी गाय माताओं की मृत देह गौ सेवक स्वयं उठाया करेंगे। भला यह भी कोई बात हुयी कि जिन्दा में माता किसी की और मर जाने पर कोई दूसरा उसका अंतिम कर्म करे। गाय की नकल में उत्तराखण्ड में घोड़े की मूर्ति लगाना ठीक नहीं। शक्तिमान को देख कर भाजपा विधायक की याद आती थी। साथ ही उसके पैर में डंडे मारने का वीडियो वायरल होने के बाद भी विधायक का इंकार भी याद आता था। सो मोदीजी के ड्रम बजा कर अफ्रीका से लौट आने के बाद शक्तिमान को एक बार फिर सामने से हटना पड़ा। कबीर ने कहा था-
निर्बल को न सताइए जा की मोटी हाय

मरे खाल की सांस सौं , लोह भस्म हो जाय     

व्यंग्य साधु और शैतान

व्यंग्य
साधु और शैतान
दर्शक                                            
महमूद, किशोर कुमार, ओमप्रकाश, मुकरी और प्राण के सहकार से कभी एक हिन्दी फिल्म आई थी जिसका नाम था ‘साधु और शैतान’ । पुरानी फिल्मों को पसन्द करने वालों ने इस फिल्म को फिर से सिनेमा हालों में लगा दिया है, पर अब उसे लोग स्वामी और शैतान के नाम से पुकार रहे हैं।
जब से  एक स्वामी को भाजपा ने बांहैं फैला कर शामिल किया है तब से हिन्दी मुहावरों, कहावतों के दिन फिर गये हैं। कहावतें, ऐसी फिर फिर कर याद आ रही हैं जैसे कि सावन के मौसम में हिंडोले वाले झूले में बार बार पालकी नीचे ऊपर होती है और हर बार पेट में एक मीठी गुदगुदी सी होती है।
एक कहावत है – आ बैल मुझे मार। बाजार में छुट्टे घूमते बैल को इसलिए बुला लिया जाता है कि शायद बाड़े में बँध कर चुपचाप घास खाने लगे, पर मरखने बैल को दस पाँच लोगों को सींग घुसाये बिना चैन कहाँ मिलता है। कृष्ण बिहारी नूर का एक शे’र है –
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो \ आइना झूठ बोलता ही नहीं
वही हाल मरखने बैल का है, उसे चाहे जितनी घास खिला दो पर वह अपने माथे की ताकत और उसमें उगे सींगों का उपयोग नहीं छोड़ सकता। बूढा मरे चाहे जवान \ हत्या से काम । बचपन में गाँव के लड़के धागे में पत्थर बाँध के घुमाते थे और यह कहते हुए अचानक छोड़ देते थे- लगै बचै तो हम नहिं जानत, हमाए कान में नील कौ डोरा।  
नशाबन्दी के लिए प्रसिद्ध मोरारजी भाई देसाई की जनता पार्टी सरकार, जिसमें संघ से निकले अटल बिहारी, अडवाणी समेत अनेक गाँधीवादी भी मंत्री थे तब स्वामी ने कहा था कि मोरारजी  मंत्रिमण्डल में केवल तीन मंत्री ऐसे हैं जो शराब नहीं पीते।
कभी जय ललिता से मिल कर अटलबिहारी की सरकार गिरवा देने वाले स्वामी ने जय ललिता के पीछे ऐसा पुछल्ला लगाया कि हाथी दान करने के बाद भी उन्हें स्तीफा देना पड़ा और जेल यात्रा करना पड़ी। ऐसा कोई सगा नहीं \ जिसको मैंने ठगा नहीं ।
कभी राजीव गाँधी के सहयोगी होने का दम भरने वाले स्वामी ने बफादारी की बेबकूफी नहीं सीखी। नेशनल हेरल्ड मामले में सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को जमानत ही लेना पड़ी। जब भाजपा सांसद कीर्ति आज़ाद को जेटली का विरोध करने के कारण पार्टी ने नोटिस दिया तो स्वामी आगे बढ कर के उसका जबाब देने के लिए खुद को प्रस्तुत कर रहे थे। मोदी की नाराजी के कारण जिन आसाराम का नाम लेने से लोग बच रहे थे उनकी वकालत करने के लिए स्वामी आगे आये। दुनिया में नहीं जिसका कोई उसका खुदा है की तर्ज पर स्वामी किसी भी उठापटक के लिए तैयार हैं। मोदी सरकार की पूंछ में फुलझड़ी बाँधने में जेठमलानी और स्वामी में प्रतियोगिता सी चल रही है।
मोदी ने फ्रांस में वार्ता कक्ष में कदम ही रखा था कि स्वामी का बयान आ गया कि राफेल विमान पूरी दुनिया से बहिष्कृत विमान है उसके साथ सौदा ठीक नहीं है। सिर मुड़ाते ही ओले झेलने वाले मोदी की दशा भई गति साँप छंछूदर केरी हो गई थी, वे सोच रहे थे कि –
जिधर की सिम्त मेरे दोस्तों की बैठक थी \ उसी तरफ से मेरे सेहन में पत्थर आये ।
और तो और उन्होंने सूटबूट ख्यात मोदी मंत्रिमण्डल के मंत्रियों के सूट पहिनने को वेटर जैसे नजर आने की संज्ञा दे दी। ऐसा तब जब कि मोदी खुद को चाय बेचने वाला बताते हैं। उनकी मानव संसाधन विकास मंत्री ने कभी मैक्नाल्ड में वेट्रैस का काम किया था और पंजाब के एक मंत्री सांपला भी कभी अरब देशों में ऐसा ही काम करते थे। रोचक तो यह है राबर्ट वाड्रा का भी पहली बार मुँह खुला कि वेटर भी सम्मानित लोग होते हैं। शायद वाड्रा को नहीं पता कि सम्मानित तो नागा साधु भी होते हैं।
रिजर्व बैंक के गवर्नर ने जब अपना दूसरा टर्म लेने से मना कर दिया तो खुद की पीठ थपथापाते मुंगेरी स्वामी ने कहा कि अभी एक विकेट गिरा है उनकी सूची में सत्ताइस नाम हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने दुनिया में इसी के लिए अवतार लिया है कि इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कर दें।
सुनन्दा पुष्कर की मृत्यु से लेकर दुनिया भर के राज उन्हें पता हैं और भाजपा को ‘उगलत निगलत पीर घनेरी’ की स्थिति में पहुँचा दिया है। मोदी की भक्त मंडली यह तय नहीं कर पाती कि उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाये। चिठिया हो तो हर कोई बाँचे, भाग न बाँचे कोय, करमवा बैरी हो गय हमार ।



व्यंग्य तौल के मोल विधायक

व्यंग्य बड़ी सर्जरी की जरूरत

व्यंग्य
बड़ी सर्जरी की जरूरत
दर्शक
पंचतंत्र में एक कहानी आती है। और जैसा कि होता आया है कि पंचतंत्र की कहानियों में नायक या तो पशु पक्षी होते हैं या ब्राम्हण, पर इस कहानी में दोनों हैं। इस कहानी में भी एक गरीब ब्राम्हण था जिसे किसी दूर दराज के गाँव में कथा वाचन के लिए बुलाया गया था। कथा के बाद उसे भरपेट भोजन कराया गया और दक्षिणा में एक बछिया भी भेंट की गयी। बछिया को लेकर जब वह ब्राम्हण अपने गाँव की ओर लौटने लगा तो चार ठगों के गिरोह ने उसे देख कर सोचा कि इसकी बछिया हथिया ली जाये। ठग हमेशा से ही ब्राम्हणों से चतुर होते आये हैं। चारों आगे जाकर एक दो मील के फासले पर पड़ने वाले मोड़ों पर खड़े हो गये। पहले मोड़ पर पहुंचते ही पहला ठग मिला और प्रणाम करते हुए पूछा कि महाराज क्या ये कुत्ता पालतू है?
“ मूर्ख ये कुत्ता नहीं बछिया है” ब्राम्हण देवता ने कहा। ठग ठठा कर हँस दिया और बोला महाराज क्यों मजाक करते हो! अच्छा राम राम।
उस ठग के जाने के बाद उसने चारों तरफ से घूम घूम कर देखा और पाया कि वह बिल्कुल से बछिया थी। आगे जब दूसरा मोड़ आया तो दूसरे ठग ने पूछा कि महाराज यह कुत्ता क्या आपके साथ लग गया है। अब तो ब्राम्हण भी कुत्ता पालने लगे। ब्राम्हण ने उस ठग के विदा होते ही दुबारा से बछिया को पूरे सन्देह से देखा और पाया कि वह बछिया ही थी। वह तेजी से आगे बढ चला। तीसरे मोड़ पर तीसरे ठग ने रास्ते पर ठिठक कर पूछा- पंडितजी यह कुत्ता काटता तो नहीं है? गुस्से से ब्राम्हण ने ‘नहीं’ कहा और आगे बढ गया। जल्दी घर पहुँचने के इरादे से उसने बछिया को उठा कर कन्धे पर रख ली और तेजी से चलने लगा। आगे चौथा ठग मिला जिसने पूछा – क्या महाराज भ्रष्ट हो गये हो कुत्ते को कँधे पर उठाये घूम रहे हो। वैसे कुत्ता है बहुत प्यारा। घबरा कर ब्राम्हण ने तेजी से अपना रस्ता पकड़ा और जंगल आते ही उस बछिया को फेंक कर दौड़ लगा दी। पीछे आ रहे ठगों ने बछिया को उठा लिया और घर ले गये।
पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित होते ही काँग्रेस की बछिया का भी यही हाल हो गया है। पहले वाले ठग ने तो काँग्रेस मुक्त भारत का नारा उछाल दिया था। फिर ठग और ठग के मीडिया सहयोगी श्रद्धांजलि लेख लिख कर कहने लगे कि काँग्रेस तो गई। काँग्रेसियों ने ऊपर से नकारते हुए भी इसे स्वीकार कर लिया कि वह मरणासन्न हो गयी है। कुछ को तो लगने लगा कि उन्हें अब मुँह में गंगाजल डाल कर ब्राम्हणों को बछिया दान कर देना चाहिए। कुछ थोड़े आशावादी थे सो उन्होंने उम्मीद रखी कि शायद बच जाये। यही कारण रहा कि वे डाक्टर पी के को तलाशने लगे और कुछ दवाई बदलने व कुछ बड़ी सर्जरी की सलाहें देने लगे।
बीपी, सुगर की जाँच करने वालों ने जब जाँच रिपोर्ट देखी तो मामला उल्टा ही निकला। राज्यों के विधानसभा चुनावों व उ,प्र, झारखण्ड, गुजरात, तेलंगाना जैसे राज्यों में हुए उपचुनावों में शामिल प्रमुख दलों को प्राप्त कुल मतों का क्रम निम्नानुसार था।
1- तृणमूल काँग्रेस     24564253 
2-
काँग्रेस           19931627 
3-
एआईडीएमके      17617060 
4-
सीपीएम            16586893 
5-
बीजेपी            14252549
6-डीएमके           13670511
इन्हीं चुनावों में जीती हुयी सीटों की संख्या का सम्मलित चार्ट भी देख कर समझने लायक है।
1- तृणमूल काँग्रेस          211
2- एआईडीएमके           138
3- काँग्रेस                 116
4- डीएमके                91
5- सीपीएम                84
6- भाजपा                 66
7- सीपीआई               20
कई बार गलत सलाहकार, गलत अस्पताल और गलत डाक्टर मिल कर मरीज को आपरेशन टेबिल पर पकड़ पटकते हैं जिससे कभी उसकी किडनी चोरी हो जाती है और कभी फेफड़ा। कोई कह रहा है कि कौआ कान ले गया तो दौड़ लगाने से पहले अपना कान तो देख लो।
कफन बेचने वाले शातिर व्यापारी हैं इसलिए आर्डर देने से पहले अपनी नब्ज तो देख लो काँग्रेसियो! पाकिस्तान की मशहूर शायरा परवीन शाकिर का शे’र है-
मैं सच कहूंगी मगर फिर भी हार जाऊंगी
वो झूठ बोलेगा और लाजबाब कर देगा