बुधवार, 13 सितंबर 2017

व्यंग्य ‘डे’ का दिन और एमपी की झाँकी

व्यंग्य
‘डे’ का दिन और एमपी की झाँकी
दर्शक
कुछ सेवक ऐसे सेवक होते हैं, जो अपनी सेवा शर्तों के अनुसार तय शुदा काम और किये गये अनुबन्ध के काम तो नहीं करते पर इसके अलावा चौबीस घंटों में अठारह घंटे काम करने का दावा करते हैं, व भक्तों से इसके लिए जय जयकार कराते रहते हैं।
एक कहानी इस प्रकार है- एक बार जंगल में एक बन्दर को मंत्री चुन लिया गया। जब उसके पास एक शिकायत लेकर एक खरगोश आया तो उसने इस डाल से उस डाल पर और उस डाल से इस डाल पर लगातार छलांगे लगाना शुरू कर दिया। ऐसा करते करते जब काफी समय हो गया तो खरगोश को शक हुआ। उसने कहा कि हुजूर मेरे काम का क्या हुआ? बन्दर बोला काम हुआ या नहीं, पर मेरे प्रयास में कोई कमी हो तो बताओ! ऐसा कह कर वह बन्दर फिर से इस देश से उस देश........ क्षमा करें, इस डाल से उस डाल पर छलांगे लगाने लगा।
उसे अपने छप्पन इंची सीने के साथ अठारह घंटे काम जो करना था।
विवेकानन्द के दिये हुए ऎतिहासिक भाषण को 125 साल हो गये। यह भाषण इतने ही सालों से वैसे का वैसा ही है, न 124वें साल में बदला था न 160वें साल में बदलेगा भले ही उसके बहाने अपने मन की बात कहने वाले बदल जायें और भाषण की व्याख्याएं बदल जायें। छात्रों के हाकी मैच वाले लेख की तरह के एक लेख याद कर लो, जब भी किसी विषय पर लेख लिखने को कहा जाये तो कोई सन्दर्भ निकाल कर उसमें हाकी मैच पिरो दिया जाये क्योंकि हमें तो वही याद है। चाहे पिकनिक हो या ताजमहल की यात्रा हाकी मैच की जगह निकल ही आती है। विवेकानन्द के भाषण की जयंती पर भी प्रधानसेवक को सफाई की याद आ गयी और जेएनयू में हुये छात्रसंघ चुनाव में उनकी छात्र इकाई की पराजय के कारण कैम्पस की याद भी आ गई। यह याद नहीं आया कि पिछले सौ दिनों में सीवर की सफाई करते हुए देश में 39 लोग अकाल मौत मर गये। ये ऐसे सैनिक हैं जो बिना हथियारों, अर्थात सुरक्षा उपकरणों के सबसे बुरी मानी जाने वाली गन्दगी को अपने हाथों से साफ करते हैं। इन बहादुरों को शहीद का दर्जा भी नहीं दिया जा सकता।
हमारे प्रधानसेवक ने इसी अवसर पर कहा कि हम हर रोज कोई न कोई डे मनाते हैं, तो इसी तर्ज पर पंजाब डे, केरल डे, आदि क्यों नहीं मनाते। इस दिन हम उसी प्रदेश की तरह के कपड़े पहिनें, खाना खायें, सांस्कृतिक कार्यक्रम करें आदि।
उनकी इस बात को सुन कर राम भरोसे बहुत उत्साहित हो गया और भागा भागा मेरे पास आया। बोला हम एमपी डे मनायेंगे। उत्तर में मैंने अपनी औकात के अनुसार प्रतिक्रिया दी कि पहले एमएलए डे से शुरू करो। उसने माथा ठोक कर कहा कि एमपी यानि कि मध्य प्रदेश। मैंने कहा ठीक है प्रारूप बताओ। बोला कि दशहरा मैदान में एक मेला लगायेंगे जिसमें कई झांकिया होंगीं। पहली झाँकी व्यापम की होगी जिसमें पीएमटी से लेकर विभिन्न परीक्षाओं में इम्पोर्टेड बच्चे दूसरे के नाम से परीक्षा दे रहे होंगे। नेताओं के निजी सचिव और रिश्तेदार नोट गिन रहे होंगे, कुछ आत्महत्या कर रहे होंगे, कुछ को मार दिया जा रहा होगा। वगैरह। दूसरी झाँकी किसानों पर गोली चलाती बहादुर पुलिस की होगी तो तीसरी झाँकी जेल से भाग कर आत्मसमर्पण करने की कोशिश में मारे जा रहे कैदियों की होगी। तीसरी झाँकी अस्पताल में मोतियाबिन्द के आपरेशन के लिए आये मरीजों के अन्धे होकर जाने की होगी, तो चौथी झाँकी पेटलाबाद की होगी, पांचवीं झाँकी खाली पड़ी मानवाधिकार आयोग और लोकायुक्त की कुर्सियों की होगी। छठवीं झाँकी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की गौशाला की होगी, सातवी झाँकी ..................
अरे बस भी करो भाई कितनी झाँकियां निकालोगे! एमपी अजब है सबसे गज़ब है।