गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

व्यंग्य चैनल और नल


व्यंग्य
चैनल और नल
दर्शक
मेरे घर नल नहीं आ रहे थे।
अब यही बात मैंने संघी राम भरोसे से कही तो वह आदतन बहस को दूसरी दिशा में मोड़ देता हुआ बोला। “ भाई नल तो अपनी जगह स्थिर है, वह ना तो कहीं से आता है और ना ही कहीं जाता है। हाँ यह बात अलग है कि उसमें से कभी कभी जल आता है और ज्यादातर नहीं आता। अब तुम, जो अपने आप को बुद्धिजीवी कहते हो, से तो यह उम्मीद कर सकता हूं कि तुम सही भाषा बोलोगे।“
मुझे गुस्सा आ गया। वैसे ही आज नल में जल न आने का तीसरा दिन था और बकौल किसी अनुभवी शायर के-
पानी आने की बात करते हो
दिल जलाने की बात करते हो
हमने दो दिन से मुँह नहीं धोया
तुम नहाने की बात करते हो
सो मैं तो पानी के बिना ‘जल बिन मीन’ की तरह छटपटा रहा था, और वह भाजपा के प्रवक्ता की तरह व्याकरण की ओर बात को मोड़ ले गये। वश में होता तो मैं राम भरोसे को पाकिस्तान भिजवाने लगता।
“तुम्हें कोई काम धाम है या ऐसे ही दूसरे की तकलीफों का मजाक बनाते रहते हो। जाके पांव न फटी बिंवाई, वो क्या जाने पीर पराई। तुम्हें कोई तकलीफ तो हैं नहीं इसलिए तुम क्या जानो हमारी तकलीफ!” मैंने कहा  
अब राम भरोसे गम्भीर मुद्रा धारण कर के बोला- तुम कैसे कह रहे हो कि मुझे कोई तकलीफ नहीं है। मैं भी तकलीफ में हूं और मेरी तकलीफ तुम से कम नहीं है।
“क्या तकलीफ है तुम्हें?” मैंने गुस्से से पूछा
       “तुम से ज्यादा! .....तुम्हारे यहाँ नल नहीं आ रहे तो हमारे घर पर चैनल नहीं आ रहे। बीबी बच्चे सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और हम तो हाथ पर लात धरे बैठे रहते हैं। जानते हो आजकल नल के बिना तो चल सकता है पर चैनल के बिना जीवन नहीं चल सकता। सब जानते हैं कि न्यूज चैनल नंगा झूठ बोलते हैं, पर मजाल है कि कोई न्यूज देखना छोड़ दे। चिल्ला चिल्ला कर बोलने वाले एंकर एंकरनियों ने तो नोटबन्दी के बाद दो हजार के नोटॉं में जाने कौन सी चिप लगवा दी थी और जमीन में गाड़ देने के बाद भी उसका पता चल जाने की घोषणा करवा दी थी। रोज जाने कहाँ कहाँ के भूत प्रेत, झाड़फूंक वालों के अड्डे दिखाते रहते हैं। मंत्र तंत्र ज्योतिष भविष्य फल आदि बखानते रहते हैं। ऐसे ऐसे धार्मिक चैनल कि जिन्हें देख कर उल्टी आती है, सब झेल लेते हैं पर फिर भी घर में चैनल तो चाहिए ही चाहिए, क्योंकि सास बहू में परम्परागत कटुता वे ही कायम रखे हुए हैं। सरकार और सेना तक को नहीं पता होता कि कहाँ क्या हुआ पर टीवी पर युद्ध छिड़ जाता है। वीडियो गेम्स के सहारे जाने कहाँ कहाँ बम गिरा आते हैं और दुश्मन देश को नेस्तनाबूद करवा देते हैं। जितनी संख्या से देश के लोगों की आत्मा को ठंडक पहुंचती है उतने पाकिस्तानी मरवा दिये जाते हैं। एंकर जितनी जोर जोर से चीखता है उतना ही टीआरपी बढा हुआ मान लेता है। चूंकि गीता के अनुसार आत्मा तो अजर अमर अविनासी होती है, और जिन्दा भी मरा हुआ ही होता है, इसीलिए तो समझदार साधुओं ने आत्मा की चिंता करना छोड़ दिया है, उसे तो तुम्हारा बाप भी नहीं मार सकता। अब सारे साधु  केवल शरीर की ही चिंता करते हैं। आत्मा अपनी चिंता खुद कर लेती है। पर यह तभी सम्भव है जब चैनल आते रहें।
मैं उसके भाषण के प्रभाव में नल न आने की चिंता भूल गया था।  
  

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