बुधवार, 2 जनवरी 2019

व्यंग्य पितर पक्ष में अपराधियों से अनुरोध



व्यंग्य  पितर पक्ष में अपराधियों से अनुरोध
दर्शक

हे अपराधियो, परनाम!
मैं बिहार का उपमुख्यमंत्री अपने मन की बात बोलता हूं। सेवा में विनम्र निवेदन है कि परमपिता परमात्मा की असीम अनुकंपा से प्रति  वर्ष की भांति इस वर्ष भी पितरों के पधारने का पक्ष अर्थात पन्द्रह दिन का समय आ चुका है। आप तो जानते ही हो कि जब से लालूजी का जंगल राज बिहार में खतम हुआ है, तब से अपना शुरू हो चुका है। और इस काम में हमारा रिकार्ड उनसे कम नहीं है। वो तो क्या है कि इस सन्दर्भ में अखबारों में विज्ञापन देने की परम्परा नहीं है बरना हम तुलनात्मक चार्ट बनवा कर छपवा दिये होते जिससे मीडिया की जेब में पैसा जाकर उसका मुँह बन्द हो जाता और हमारी क्षमताओं पर भरोसा बना रहता। वैसे तो अपराध और अखबार अब एक ही फर्म की दो शाखाओं की तरह चल रहे हैं, जैसा कि मुज़फ्फरपुर में उजागर हो चुका है। इससे हमारी ओर से एक ओर तो मीडिया की मदद हो जाती थी और दूसरी ओर उनका धन्धा चलता रहता था।
महोदय, हमने आप से इसलिए अपील की है कि अभी अभी हमने अपने बिहार की पवित्र नदियों में बप्पा का विसर्जन किया है और उनके विसर्जन के साथ ही पितरों ने रवानगी डाल दी है। वे यहाँ वह माल खाने आते हैं जो उन्हें सुरग में नसीब नहीं होता। कहा गया है कि – दैरो हरम में चैन जो मिलता, क्यों आते मयखाने लोग। अब आप किरपा करके इन पन्द्रह दिनों के लिए आराम कर लीजिए, ताकि उन्हें लगे कि हमरे बिहार में सब अमन चैनवा है न...। हम आपकी इतनी बात मानते हैं तो आप हमरी भी एकाध बात मान लो। अब वैसे तो यह अपील अपने मुख्यमंत्री जी को करना था, पर उनको क्या चिंता। वो जो अगले महीने तीन राज्यों में चुनाव होने हैं उसमें उनकी पार्टी थोड़े ही दाँव पर है। उधर विरोधी पक्ष कह रहा है कि जो 19 राज्य भाजपा की सरकार के गिनाये जाते हैं उनमें बिहार भी शामिल है और उसमें अब हमारी मदद से ही आप लोग फल फूल रहे हो। जो ऎके 47 राइफलें आप लोग स्तेमाल कर रहे हो वे मध्यप्रदेश के जबलपुर की आर्डीनेंस फैक्टरी से ही तो चोरी की गयी हैं। चुनाव मध्य प्रदेश में भी हो रहे हैं और वहां कांटे के संघर्ष में प्रतिष्ठा दाँव पर लगी हुयी है, सर की टोपी पाँव पर लगी हुयी है। सोचो अगर सरकार बदल गई तो न हम कहीं के रहेंगे और न ही आप रहेंगे। अब ये क्या बात हुयी कि पिछले ही दिनों आप लोगों ने उसी मुजफ्फरपुर के पूर्व मेयर की दिन दहाड़े हत्या कर दी। भैय्या थोड़ा तो लिहाज किया कीजिए, आजकल सब जगह सीसी टीवी कैमरे ठुके हुये हैं सो जल्दी ही पहचान हो जाती है।
एक बात और कि जिन प्रदेशों में चुनाव हो रहे हैं उनमें अपनी पार्टी भाजपा ने कई परतों वाली सर्वे की टीमें भेजी हुयी हैं। इनमें से एक टीम ने भाजपा के टिकिटार्थियों से एक सवाल यह भी पूछा है कि आपके क्षेत्र के ऐसे गुंडे का नाम बताओ जो कम से कम दो हजार वोटों पर प्रभाव डालने की क्षमता रखता हो। अब लोग परेशान हैं कि दूसरे के गुंडों का नाम कैसे लिखा दें। अगर उन गुंडों से ही पूछ लिया तो टिकिट मिलने की जगह टिकिट कट सकता है। विधानसभा का भी और ऊपर का भी। एक बात और है कि दूसरे धर्म वालों के तो पितर इस मौसम में आते नहीं हैं सो इस दौरान हुये अपराधों के ग्राफ से पता भी चल जायेगा कि वे कितने हैं और कितने पानी में हैं।            

व्यंग्य नये साल का नया जाल


व्यंग्य
नये साल का नया जाल
दर्शक
मुझे इस साल नये साल की शुभकामनाएं देने की जरूरत कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही है, वैसे इससे कुछ होने जाने वाला नहीं है। जरूरत ज्यादा इसलिए महसूस हो रही है क्योंकि पिछला इतना गया गुजरा बीता कि निकट के अनेक लोगों को खोया। और जब डर लगने लगता है तो आदमी या तो प्रार्थना करने लगता है या दुआएं देने लगता है। परसाई जी कह गये हैं कि आदमी इतना चतुर है कि रास्ते में लुट जाने पर दान का मंत्र पढने लगता है। एक कहावत में कहा गया है कि फिसल पड़े तो हर हर गंगे। पर क्या करें – रस्मे दुनिया भी है मौका भी है दस्तूर भी है।
पिछला साल कुछ इस तरह गुजरा कि बकौल एक शायर –
जिन जिन को था ये इश्क का आज़ार, मर गये
अक्सर हमारे साथ के बीमार मर गये
या किसी ने कहा है कि –
मरने वाले तो खैर बेवश हैं, जीने वाले कमाल करते हैं
वैसे तो कबीरदास काशी को छोड़, जिद के साथ मगहर में जाकर मरे थे, पर कह गये थे कि
हम न मरिहें, मरिहै संसारा। हमको मिला जियावन हारा
अगर जीने का कोई सार्थक कारण मिल जाये या जियावन हारा लक्ष्य मिल जाये तो मौत का डर खत्म हो जाता है। उसी काशी में ही धूमिल ने कहा है-
अगर जिन्दा रहने के पीछे
कोई सही तर्क नहीं है
तो रामनामी ओढने और रंडियों की दलाली में
कोई फर्क नहीं है
मुकुट बिहारी सरोज कहते थे-
जिसने चाहा पी डाले सागर के सागर
जिसने चाहा घर बुलवाये चाँद सितारे
कहने वाले तो कहते हैं बात यहाँ तक
मौत मर गयी थी जीवन के डर के मारे ।
इस वर्ष ऐसे बहुत सारे लोगों को खोया है जिनकी पहचान से अपनी पहचान बनाने का सुख मिलता रहा। बहरहाल जिन नीरज जी का इस साल निधन हुआ, उन्होंने ही लिखा था-
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
इस नये साल के कई जाल हैं जो फैलाये जायेंगे क्योंकि इस साल हमारे स्वातांत्रोत्तर काल का सबसे खतरनाक शासक अपनी सत्ता बचाने के लिए जाल फैला रहा है। उस जाल में चारा भी भरपूर डाला जायेगा। हालात राजेश जोशी की कविता की पंक्ति में पहले ही संभावना के रूप में आ चुकी है कि “जो असहमत हैं, मारे जायेंगे” । किंतु ‘एक चिड़िया, अनेक चिड़िया’ वाले गीत की तरह अनेक चिड़ियां जाल लेकर भी उड़ सकती हैं। आमीन।
हम तो अपनी औकात के अनुसार यही कामना करते हैं कि –
पैट्रोल डीजल की दर भी और ना चढे
नये वर्ष में अनियोजित परिवार ना बढे
नये वर्ष में कम मच्छर हों कम खटमल हों
नये वर्ष में रोज आपके नल में जल हो
नये वर्ष में रोज नियम से बिजली आये
घी में पाचों उंगली हों घी असली आये
नये वर्ष में अधिक पेट पर वेट न आये
नये वर्ष में ट्रेन आपकी लेट न आये
शेयरवालों के शेयर के रेट ना गिरें
बातचीत में मोबाइल का नेट ना गिरे
बीमारी में अस्पताल पर ताला न हो
और डाक्टर नोट बनाने वाला न हो
नये वर्ष में जमे जगत में धाक आपकी
नये वर्ष में रहे सलामत साख आपकी
नये वर्ष में संवादों की धार न टूटे
नये वर्ष में मिले नियम से डाक आपकी


 

व्यंग्य सुप्रीम कोर्ट हाजिए हो


व्यंग्य
सुप्रीम कोर्ट हाजिए हो
दर्शक
पादरियों जैसा सफेद चोगा, चोगे के ऊपर लाल पट्टा जिस पर पीतल का बिल्ला, सिर पर साफा और हाथ में दण्ड लिये चोबदार जोर से हांक लगाता है-
“सुप्रीम कोर्ट हाजिर हो”
हांक सुनते ही काला कोट पहिने टाई लगाये एक न्यायमूर्ति भागते हुए आते हैं। उनके हाथ में कानून और धर्म ग्रंथों की अनेक मोटी मोटी पुस्तके थीं।

यह एक ऐसे व्यक्ति की अदालत थी जो कभी न्यायालय के आदेश पर तड़ी पार रहा था और अब एक ऐसी पार्टी का अध्यक्ष बना हुआ था जिसका देश पर शासन था। उसने न्यायाधीश को कटघरे में खड़े होने के लिए कहा और आदेश दिया कि शपथ लो कि तुम कुछ भी नहीं कहोगे। तुम्हारे कहने के दिन खतम हो गये। अब तुम केवल सुनोगे।
“ पर न्यायपालिका स्वतंत्र है और वह विधायिका के आदेश को मानने के लिए विवश नहीं है” काले कोट वाले से बोले बिना नहीं रहा गया।
तड़ीपार रह चुके व्यक्ति ने अपने गोल फ्रेम वाले चश्मे के कांच से घूरा और कहा कि “ तुम्हारी सत्तर साल से पड़ी हुयी आदत जल्दी नहीं जायेगी। पहली बात तो यह कि मैं न मैं विधायिका हूं और न ही कार्यपालिका, बल्कि इन सबसे ऊपर हूं जिसके नीचे तुम्हारे समेत ये दोनों भी काम करेंगे। एक और चौथा है जो खुद अपने आप को लोकतंत्र का एक खम्भा बतलाता है, उसे तो मैंने अपने कुत्तों के बराबर टुकड़े डालना शुरू किया तो वह तब ही से अपनी पूंछ हिला रहा है और वह क्रमशः दाँएं- बांयें होती रहती है। जब जितना बड़ा लुक्मा गिराता हूं तब उसकी पूंछ उतनी ज्यादा तेजी से हिलती है। मुनव्वरराना पहले ही कह गये हैं –
सियासत मुँह भराई के हुनर से खूब वाकिफ है
वो हर कुत्ते के आगे एक टुकड़ा डाल देती है
कार्यपालिका तो पहले से ही हुक्म की गुलाम होती है। परसाई जी कह गये हैं कि डूबते सूर्य को दिखाते हुए एक लेखक ने समुद्र किनारे खड़े एक व्यक्ति से कहा कि देखो सूरज डूब रहा है।
उस व्यक्ति ने सहमति में सिर हिलाया।
तो तुमने देखा कि सूरज डूब रहा है?
उसने फिर सहमति में सिर हिलाया।
क्या तुम जाँच आयोग के सामने इस बात की गवाही दे सकते हो कि शाम को तुमने सूरज को डूबते हुए देखा?
“ हैं हैं हैं, मैं ऐसा कैसे कह सकता हूं, मैं तो सरकारी कर्मचारी हूं” इतना कह कर वह व्यक्ति वहाँ से गायब हो गया।
मुख्य विपक्षी दल का तो वंश मिटा देने के लिए ही मैंने चोटी में गांठ बाँधी है। और जब जितना चाहते हैं आर्डर देकर अपनी पार्टी में बुलवा लेते हैं। अभी पिछले दिनों ही गोवा में बड़े दल का राग अलापने लगे थे सो हमने उनके दो विधायकों से स्तीफा ही दिलवा दिया। अरे जब बिना मेहनत किये ही उससे ज्यादा मिल रहा है जिसके लिए पालटिक्स के धन्धे में आये थे तो कौन रोज रोज की मेहनत करता फिरेगा। लोकसभा चुनाव से पहले उनके कैबिनेट मंत्रियों तक को भर्ती कर लिया था सांसदों से मिला हुआ उनका टिकिट वापिस करा के अपना टिकिट दे दिया था। लोगों के लिए टिकिट खरीदवा के वापिसी की तिथि को नाम वापिस लेने को विवश कर दिया था। सो विधायिका के जरूरत भर सदस्य तो पैसे के हंटर पर नाचेंगे।
“ इसलिए आपको भी नेक सलाह है कि जो भी फैसला दें उससे पहले हम से पूछ लें कि हम उसे लागू करवायेंगे कि नहीं। जो हम लागू नहीं करवायेंगे उस  से सम्बन्धित फैसला ही नहीं लिखें, भले ही वह चाहे जितना न्याय सम्मत हो और मौलिक अधिकारों के हित में हो। हम लोग इमरजैंसी घोषित करके इन्दिरा गाँधी जैसी भूल नहीं करना चाहते इसलिए बिना घोषित किये हुए ही इमरजैंसी लागू कर देते हैं। अब आप जा सकते हैं, अभी मुझे मतदाताओं को मूर्ख बनाने के लिए कई चुनाव सभाओं में जाना है। फिर याद दिला रहा हूं कि फैसले विधायिका की मर्जी पर कार्यपालिका ही लागू कराती है, इसलिए केवल खानापूर्ति के लिए न दें।“   

व्यंग्य राफेल और याददाश्त फेल


व्यंग्य
राफेल और याददाश्त फेल  
दर्शक
मशहूर शायर पद्मश्री बशीर बद्र आजकल अस्वस्थ हैं। कभी उन्होंने अति भावुकता में भाजपा में शामिल होते हुए कहा था  कि मैं भाजपा दफ्तर में झाडू लगाने के लिए भी तैयार हूं। बस तभी से भाजपा दफ्तर गन्दा पड़ा हुआ है। बहरहाल उनकी याद उनके एक शे’र के याद आने के कारण आयी। मोहतरम ने कभी लिखा था-
किसने जलायीं बस्तियां, बाज़ार क्यों लुटे
मैं चाँद पर गया था मुझे कुछ पता नहीं
अगर यह बात किसी डाक्टर को बतायी जाये तो वह कहेगा कि यह अल्जाइमर जैसी भूल जाने की बीमारी है। यही बीमारी आजकल भारत सरकार को हो गयी है जिसे बहुत सारी बातें याद नहीं रहतीं या बहुत याद दिलाने के बाद याद आती हैं। अब रफाल या राफेल डील को ही लें। महीने भर से मामला मचा हुआ है। राहुल गाँधी खुद को पप्पू कहे जाने का बदला उचित समय पर ले रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारा प्रधानमंत्री चोर है। मामला इतने जोर शोर से अधिकारपूर्वक उठाया जा रहा है कि मोदी जी दाढी कटा लेने की सोचने लगे है कि कहीं दाढी के सफेद बालों को तिनका न समझ लिया जाये। आरोप है कि राफेल कम्पनी ने अनिल अम्बानी को भारत में बिजनैस पार्टनर इसलिए बनाया ताकि छह सौ करोड़ के विमान को सोलह सौ करोड़ में खरीदने से जनित आय का तिया पाँचा किया जा सके। अनिल अम्बानी मोदीजी के साथ व्यापार प्रतिनिधि मण्डल में शामिल होकर गये थे। आरोप लगते रहे पर मासूम सरकार में किसी को यह याद नहीं आया कि विमान बनाने वाली कम्पनी दसाल्ट से रिलायंस की डील की सरकार को भनक ही नहीं थी। एक रात अचानक निर्मला सीतारमन ने कोई डरावना सपना देखा और वे जिस अवस्था में थीं उसी अवस्था में फ्रांस के लिए रवाना हो गयीं और सौदे से जुड़े सारे लोगों के द्वार पर ऐसे दस्तक देने लगीं जैसे कभी एक फिल्मी गीत में चमेली नाम की मालिन ने दरोगा बाबू का दरवज्जा खुलवाने के लिए दस्तक दी थी। तब सरकार को याद आया कि उसे तो पता ही नहीं कि किसका कौन पार्टनर है।
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति कह चुके थे कि हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं था, हमें तो भारत सरकार ने जिसको पार्टनर बनाने के लिए कहा हमने भारत के गाँव की गउ जैसी लड़की की तरह विवाह मंजूर कर लिया था। पर अब भारत सरकार कह रही है, कौन अम्बानी! मैं तो इसे जानता ही नहीं। कैसा है, गोरा है कि सांवला है, लम्बा है कि नाटा है।
पर भाजपा में ही एक आदमी है जिसे सब कुछ याद रहता है। वह बता सकता है कि राफेल क्या है और अम्बानी क्या है। जब प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर पहुँच गये थे तब तक दुनिया को पता ही नहीं था कि माजरा क्या है किंतु उनके हवाई जहाज के वहाँ उतरते ही उस व्यक्ति ने कह दिया था कि राफेल विमान का सौदा ठीक नहीं है। तब तो मोदी लौट के घर को आ गये थे पर कुछ ही दिन में उस व्यक्ति को समझ में आ गया था कि राफेल का सौदा ही ठीक है। ज्ञान के आदान प्रदान के कई मार्ग होते हैं पता नहीं किस मार्ग से आ जाये। उन महानुभाव का शुभ नाम है श्री सुब्रम्यम स्वामी। वे जिसके भी दोस्त बने उसे फिर दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ी। उन्हें सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु से लेकर सुनन्दा पुष्कर तक की मृत्यु के रहस्य मालूम हैं। स्वामी के साथ अंतर्यामी की तुक अक्सर ही मिलायी जाती है।  
आजकल वे मोदी के दोस्त हैं।   

व्यंग्य मामा तो गियो


व्यंग्य
मामा तो गियो  
दर्शक
हमारे भक्त कवि कह गये हैं –
आया है सो जायेगा, राजा, रंक, फकीर
एक कथित सूटबूटधारी फकीर ने तो पहले ही कह दिया था कि मेरा क्या है, मैं तो फकीर आदमी हूं जब चाहूंगा तब थैला उठा कर चल दूंगा। नये फकीर चल देने के मामले में भले ही खुद को फकीर बताते हों किंतु जायेंगे तो थैला लेकर जायेंगे ! वे थैला नहीं छोड़ना चाहते। परसाई जी ने कहा है कि शंकर भगवान जहर तो पचा गये थे पर उसका रंग नहीं पचाया ताकि उसे कण्ठ में नीले रंग के माध्यम से दिखाते रहें कि देखो जहर मैंने ही पिया है।
वैसे तो राहत इन्दौरी साहब फर्माते हैं कि
आज जो साहबे मसनद हैं, कल नहीं होंगे
किरायेदार हैं जाती मकान थोड़ी है
सो सब ठाठ धरा रह गया और बंजारे को लाद कर जाना पड़ा। विधानसभा चुनाव शांति पूर्वक निबट गये और उसी तरह भाजपा भी बीकानेर से कांकेर तक शांतिपूर्वक निबट गयी। अब लोगों की टकटकी दिल्ली की ओर लग गयी है। अखबारों से टीवी चैनलों तक और सिनेमा हाल से सोशल मीडिया तक किये गये सरकारी और गैरसरकारी प्रचार का कोई असर नहीं हुआ। सीटें घट गयीं, पदवी खिसक गयी।
नाम बदलने का काम केवल योगी ही नहीं करते शिवराज ने भी खुद का नाम मामा रख लिया था। पहले खुद का नाम रखने का काम केवल कवि किया करते थे पर अब जिसको जो अच्छा लगता है वह अपना नाम रख लेता है। शेक्सपियर ने भले ही कहा हो कि नाम में क्या रखा है, पर यह उस समय की बात थी जब बाज़ार ने अपनी सत्ता स्थापित नहीं कर ली थी। अब तो चाय वाले तक अपने ब्रांड का नाम बाघ बकरी चाय रख लेते हैं। मेरी मर्जी!
वैसे तो रिश्ते में बाप लगना अच्छा लगता है, किंतु मोहनदास करमचन्द गान्धी ने पहले ही वह नाम हथिया लिया था। नेहरू जी चाचा बन गये थे तो मायावती बहिनजी बनी घूमती हैं, ममता बनर्जी दीदी बन चुकी हैं तो देवीलाल कभी ताऊ हुआ करते थे। ले दे के एक अकेला नाम मामा का बचा था सो शिवराज जी ने समय रहते लपक लिया। देर हो जाती तो हो सकता है अमित शाह हथिया लेते। सरकारी मामा बनने का फायदा यह है कि भांजे भांजियों को चाहे जो कुछ बांट दो, जायेगा तो सरकारी खजाने से जायेगा। और आयेगा तो अपने हिस्से में आयेगा।
“ गाड़ी बैल पटेल के, बन्दे की ललकार”
मामा तो हर जगह होते हैं किंतु जगत मामा कहीं कहीं ही मिलते हैं। पहले के मामाओं में अव्वल दर्जे का कांइयांपन भी देखने को मिला है। एक मामा तो शिवराज मामा के बच्चों के भी थे जो ठीक चुनाव से पहले दुश्मन के घर जा के बैठ गये। पर चुनावों में वे भी शांतिपूर्वक निबट गये। कंस और शकुनि की कहानियों के बीच भी मामाओं का सुन्दर संसार रहता है। मालवा वालों ने बहुत पहले ही कह दिया था कि मामा तो गियो ।
टाटा बाय-बाय ।
 


व्यंग्य धैर्य का मजबूत बाँध


 व्यंग्य
धैर्य का मजबूत बाँध
दर्शक
रामभरोसे ने जिन्हें अभी तक हाफ पैंट में देखा था वे फुल पैंट चढाये हुये आये, और कोहनी तक हाथ जोड़ते हुए उससे उसका धर्म पूछा।
“ सारस्वत ब्राम्हण “ कहते हुये राम भरोसे का सिर गर्व से ऊंचा हो गया था।
“ हाँ मुझे लग रहा था “
“ तुम्हें कैसे लग रहा था, क्या मेरे आगे पीछे कोई ठप्पा लगा हुआ है जो तुम्हें देखते ही लगने लगा” राम भरोसे के कुढ कर कहा।
“ वो भाई साहब बात ये है कि आप ब्राम्हण हो तो हिन्दू हुये, और सभी हिन्दुओं की तरह तुम्हारे धैर्य की परीक्षा हो रही है जिससे तुम्हारे धैर्य का बाँध टूट रहा है, और ऐसा आदमी अलग से पहचान में आ जाता है। अब ये कोई व्यापम फ्यापम की परीक्षा तो है नहीं कि नोट फेंके और किसी से भी परीक्षा दिलवा ली, धैर्य की परीक्षा तो खुद ही देना पड़ती है”
“ अबे कैसी परीक्षा, कैसा बाँध, आखिर तुम ये कैसी बातें कर रहे हो? “ राम भरोसे को गुस्सा आने लगा था।
“ हैं,  हैं,  हैं. भाई साहब आप तो बड़े मजाकिया हो “
“ अबे काहे का मजाकिया, सच सच और साफ साफ बोलना कब सीखोगे तुम लोग” राम भरोसे का गुस्सा बढता ही जा रहा था।“
“ अरे आपको नहीं पता कि अयोध्या में भव्य राम मन्दिर का निर्माण खटाई में पड़ा हुआ है और जबसे विवादित धर्मस्थल टूटा है तब से लोग कहने लगे हैं कि भाजपाई ठाठ में और रामलला टाट में। आखिर हम आप जैसे हिन्दू कब तक सहेंगे यह अपमान”
“ इसमें अपमान सम्मान कहाँ से आ गया? अयोध्या में हजारों मन्दिर हैं उनके निर्माण को किसी बाबर या उनकी औलादों ने नहीं रोका। इसलिए मामला मन्दिर निर्माण का नहीं जमीन के मालिकाना अधिकार है और उसी का मुकदमा अदालत में चल रहा है। अदालतें इसी मामले में नहीं, सभी मामलों में अपनी चाल से चल रही हैं। इसलिए यह अन्याय भी तब तक सहेंगे जब तक कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता,   ... पर आपसे यह किसने कह दिया कि हमारे धैर्य की परीक्षा ली जा रही है। मैं तो रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पी रहा हूं और हमारे प्रदेश का आनन्द मंत्रालय कह रहा है कि हम परम आनन्द में हैं।“
“ पर अपने प्रभु के जन्मस्थान पर मन्दिर निर्माण में हो रही देरी पर आपका खून नहीं खौलता, आप कैसे हिन्दू हैं?
“ खून जब खौलता है तो फिर खौल खौल कर जलने लगता है पर खून किसके खिलाफ खौलायें? सरकार के खिलाफ? न्याय व्यवस्था के खिलाफ ? गैर भाजपा दलों के खिलाफ ? या मुसलमानों के खिलाफ?” आप लोग तो चाहते हो कि मुसलमान हिन्दुओं के बीच तनाव बना रहे जिसे चुनाव के ठीक पहले उभार कर ध्रुवीकरण करा दो और खुद हिन्दुओं के खैरख्वाह बन जाओ सो तुम्हारी पार्टी चुनाव में जीत जाये। पन्द्रह साल से प्रदेश में और चार साल से देश में तुम्हारा एक क्षत्र राज है पर भव्य राम जन्मभूमि मन्दिर के जल्दी निर्माण की बेचैनी तुम्हें चुनाव के पहले ही होने लगती है। इससे पहले व्यापम व्यापम कर रहे थे अब राम राम करने लगे हो। जैसे इतने दिन चुप रहे सो अदालत द्वारा दी गयी तारीख तक और दूसरे राम मन्दिरों में दर्शन पूजा कर लो, उसमें क्या बिगड़ जायेगा? पर तुम्हारा मतलब न राम से है न पूजा से तुम्हारा मतलब तो चुनाव से है। उसमें भी तुम्हारी बहादुरी प्रकट नहीं होती बल्कि तुम दूसरों को उकसाने के लिए भावुक जुमले उछालते हो। कौन सा हिन्दू सर्वेक्षण तुमने किया कि उसका धैर्य टूट रहा है। किस नेता के बेटे ने लाठी गोली खायी? वे तो पिछड़े दलितों के बच्चों को आगे कर के उन्हें बलिदान करा देते हैं जिससे नेताओं के बच्चे विधायक, सांसद, आईएएस, आई पी एस, ठेकेदार और गवर्नमेंट सप्प्लायर बन सकें। जाओ मेरे सामने से हट जाओ बरना मेरा धैर्य सचमुच टूट कर तुम्हारे ऊपर गिर जायेगा”