बुधवार, 2 जनवरी 2019

व्यंग्य राफेल और याददाश्त फेल


व्यंग्य
राफेल और याददाश्त फेल  
दर्शक
मशहूर शायर पद्मश्री बशीर बद्र आजकल अस्वस्थ हैं। कभी उन्होंने अति भावुकता में भाजपा में शामिल होते हुए कहा था  कि मैं भाजपा दफ्तर में झाडू लगाने के लिए भी तैयार हूं। बस तभी से भाजपा दफ्तर गन्दा पड़ा हुआ है। बहरहाल उनकी याद उनके एक शे’र के याद आने के कारण आयी। मोहतरम ने कभी लिखा था-
किसने जलायीं बस्तियां, बाज़ार क्यों लुटे
मैं चाँद पर गया था मुझे कुछ पता नहीं
अगर यह बात किसी डाक्टर को बतायी जाये तो वह कहेगा कि यह अल्जाइमर जैसी भूल जाने की बीमारी है। यही बीमारी आजकल भारत सरकार को हो गयी है जिसे बहुत सारी बातें याद नहीं रहतीं या बहुत याद दिलाने के बाद याद आती हैं। अब रफाल या राफेल डील को ही लें। महीने भर से मामला मचा हुआ है। राहुल गाँधी खुद को पप्पू कहे जाने का बदला उचित समय पर ले रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारा प्रधानमंत्री चोर है। मामला इतने जोर शोर से अधिकारपूर्वक उठाया जा रहा है कि मोदी जी दाढी कटा लेने की सोचने लगे है कि कहीं दाढी के सफेद बालों को तिनका न समझ लिया जाये। आरोप है कि राफेल कम्पनी ने अनिल अम्बानी को भारत में बिजनैस पार्टनर इसलिए बनाया ताकि छह सौ करोड़ के विमान को सोलह सौ करोड़ में खरीदने से जनित आय का तिया पाँचा किया जा सके। अनिल अम्बानी मोदीजी के साथ व्यापार प्रतिनिधि मण्डल में शामिल होकर गये थे। आरोप लगते रहे पर मासूम सरकार में किसी को यह याद नहीं आया कि विमान बनाने वाली कम्पनी दसाल्ट से रिलायंस की डील की सरकार को भनक ही नहीं थी। एक रात अचानक निर्मला सीतारमन ने कोई डरावना सपना देखा और वे जिस अवस्था में थीं उसी अवस्था में फ्रांस के लिए रवाना हो गयीं और सौदे से जुड़े सारे लोगों के द्वार पर ऐसे दस्तक देने लगीं जैसे कभी एक फिल्मी गीत में चमेली नाम की मालिन ने दरोगा बाबू का दरवज्जा खुलवाने के लिए दस्तक दी थी। तब सरकार को याद आया कि उसे तो पता ही नहीं कि किसका कौन पार्टनर है।
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति कह चुके थे कि हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं था, हमें तो भारत सरकार ने जिसको पार्टनर बनाने के लिए कहा हमने भारत के गाँव की गउ जैसी लड़की की तरह विवाह मंजूर कर लिया था। पर अब भारत सरकार कह रही है, कौन अम्बानी! मैं तो इसे जानता ही नहीं। कैसा है, गोरा है कि सांवला है, लम्बा है कि नाटा है।
पर भाजपा में ही एक आदमी है जिसे सब कुछ याद रहता है। वह बता सकता है कि राफेल क्या है और अम्बानी क्या है। जब प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर पहुँच गये थे तब तक दुनिया को पता ही नहीं था कि माजरा क्या है किंतु उनके हवाई जहाज के वहाँ उतरते ही उस व्यक्ति ने कह दिया था कि राफेल विमान का सौदा ठीक नहीं है। तब तो मोदी लौट के घर को आ गये थे पर कुछ ही दिन में उस व्यक्ति को समझ में आ गया था कि राफेल का सौदा ही ठीक है। ज्ञान के आदान प्रदान के कई मार्ग होते हैं पता नहीं किस मार्ग से आ जाये। उन महानुभाव का शुभ नाम है श्री सुब्रम्यम स्वामी। वे जिसके भी दोस्त बने उसे फिर दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ी। उन्हें सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु से लेकर सुनन्दा पुष्कर तक की मृत्यु के रहस्य मालूम हैं। स्वामी के साथ अंतर्यामी की तुक अक्सर ही मिलायी जाती है।  
आजकल वे मोदी के दोस्त हैं।   

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