शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

व्यंग्य जली कट्‌टू और छुट्टा सांड़

व्यंग्य
जली कट्टू और छुट्टा सांड़
दर्शक
पता नहीं मेनका गांधी इस दृश्य पर खुश होगी या नाराज, किंतु जैसा कि रहीम कह गये हैं कि-
यों रहीम सुख होत है देख बढ़त निज गोत
ज्यों बढरी अंखियां निरख, अंखियन खों सुख होत
(अपना गोत्र बढ़ते हुए देख कर वैसा ही सुख मिलता है जैसा कि बड़ी बड़ी आंखे देख कर आंखों को सुख मिलता है)
                इसलिए जब दलाल सिंह ने कहा कि वे अब छुट्टा सांड़ हैं और जहां मन होगा वहां मुंह मारने के लिए स्वतंत्र हैं तो स्वाभाविक है कि पशुओं को मनुष्यों से ज्यादा प्रेम करने वाली मनेका गांधी खुश ही होंगी। दूसरा सवाल यह है दलाल सिंह अब कहां मुंह मारेंगे? दूसरे शब्दों में पूछा जा सकता है कि उनका मन कहां मुंह मारने का होगा।
                वैसे तो उन्होंने पशु योनि में प्रवेश करने की घोषणा करते हुए खुद ही स्पष्ट कर दिया कि वे बिना किसी सामाजिक लिहाज के कहीं भी मुंह मारने के लिए स्वतंत्र होंगे पर स्वाद और सुविधापूर्ण चर्वण तो पुशओं को भी पसन्द होता है और कोई पशु आग में मुंह नहीं दे देता, सो वे भी हरे चारे और भूसे की सानी में से चुनाव करेंगे, हम बैठे ठाले लोग तो चुनावी भविष्यवाणी करने वाले पत्रकारों की तरह संभावना ही तलाश सकते हैं।
                एक संभावना बनती है कि छुट्टा सांड़ उस पार्टी की ओर ही जायेगा जहां एक गाय का जीवन चार दलितों के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है, बुन्देली में एक कहावत है कि 'जहां मिली दो, वहीं गये सो' वैसे मुंह मारने वाले सांड़ को कभी कभी मुंह की खानी भी पड़ती है, पशुओं के साथ व्यवहार करने वाले लोग जानते हें कि मुंह मारने वाले के मुंह ही मुंह में मारा जाता है, उक्त मनुष्य रूपेण छुट्टा सांड़ ही नहीं कोई भी छुट्टा सांड़ जहां भी जाता है वहीं से मार के भगाया जाता है। क्योंकि छुट्टा होने के कारण किसी का भी सगा नहीं होता है।
                छुट्टा सांड़ों का भविष्य जली कट्टू में भी उज्जवल नजर आता है, जहां सुप्रीम कोर्ट की सलाह को नजर अन्दाज करते हुए विचारहीन भीड़ को वोट की ताकत मानने वाली सरकारें साड़ों की लड़ाई में नादानों को मरने के लिए उकसाती हैं। याद आती है राजा रामामोहन राय की जिन्होंने ताकतवर वर्ग के विरोध का सामना करते हुए भी सती प्रथा को समाप्त करने का साहस दिखाया था। वह तो अच्छा हुआ कि महामना ने खुद को सांड ही बताया। राणाप्रताप का चेतक नहीं बताया बरना वे जिस पार्टी की ओर मुंह करने जा रहे हें उसके विधायक शक्तिमानों की टांगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं यह तो दुनिया ने देखा ही है। चुनाव के वक्त किसी पिल्ले के मर जाने पर भी दु:खी होने की दरियादिली दिखाने वाले उनके भगवान, घोड़े को सरेआम मार दिये जाने से भी दु:खी होने का दिखावा करना भी जरूरी नहीं समझते।
                छुट्टा सांड जिस घर में भी घुस जाता है उसको तहस नहस कर डालता है इसलिए अंग्रेजी में भयावहता की कहावत है- बुल इन चायना शाप- वह पता कर डालता है कि पति कहां सोता है और पत्नी कहां सोती है। भाई भाई में राम लक्ष्मण वाला रिश्ता ही नहीं होता अपितु कौरव-पांडव, रावण-विभीषण, वाली-सुग्रीव, औरंगजेब-दाराशिकोह बाला रिश्ता भी होता है। उसे पता होता है कि बाप को जेल जाने से बचाने की कीमत बेटे को चुकानी चाहिए। पर कभी कभी ऐसा भी होता है कि बेटा चाचा के साथ अंकल की कमजोरियां भी जानता है उसे यह भी पता रहता है कि राक्षस की आत्मा किस तोते में बसती है।
                प्यासा फिल्म के गीत की तर्ज पर कहा जाये तो-
दलालों की दुनियां, ये भांड़ों की दुनियां
हकाले गये छुट्टे सांड़ों की दुनियां
ये नोटों की गरमी में जाड़ों की दुनियां
ये झाड़ों की दुनियां झंखाड़ों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
ये दुनिया अगर मिट भी जाये तो क्या है।