गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

व्यंग्य वीर- वीरांगनाएं मैदान छोड़ छोड़ कर भाग रहे हैं



व्यंग्य
वीर- वीरांगनाएं मैदान छोड़ छोड़ कर भाग रहे हैं
दर्शक
दिनकर जी ने कहा था कि ‘ सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ‘। पर क्या करें कि सिंहासनारूढों से ये सिंहासन छोड़ा ही नहीं जाता। मन मार के खाली करना पड़ता है। जो खाली कर देते हैं या कहें कि जिन्हें खाली कर देना पड़ता है, वे भी अपने त्याग की गाथाएं गाने लगते हैं। जिसने सोच लिया कि अब जाना ही पड़ेगा तो वह त्यागी के नाम से बचा रहना चाहता है। देखो, मुझे देखो, यह मैं ही हूं कि जिसने सिंहासन खाली कर दिया। कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश के मामा ने कहा था कि वे मध्य प्रदेश को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाले वे यहीं रह कर नर्मदा मैय्या की सेवा में अपना पूरा जीवन गुजार देंगे। उनके कथन का आशय यह था कि विधानसभा चुनाव में अगर भाजपा जीती तो मुख्यमंत्री मैं ही बनूंगा। इस पद के लिए ही तो उमा भारती को छिटकाया था, बाबूलाल गौर को उचटाया था, कैलाश विजयवर्गीय को हटाया था, प्रभात झा और अरविन्द मेनन को झटकाया था, अपने ‘अमितशाह’ नन्दू भैय्या को बैठाया था, सो क्या सौ सौ चूहे खाने वाली बिल्ली बन के दिल्ली जाने के लिए किया था। रानी झांसी ने जिस जोश से नहीं कहा होगा कि अपनी झांसी नहीं दूंगी, उससे ज्यादा तेजी से उन्होंने कहा कि अपनी कुर्सी नहीं दूंगा। पर बकौल राहत इन्दौरी- किरायेदार हैं जाती मकान थोड़ी है! सो खाली करना पड़ा।  
हिन्दुस्तान की आज़ादी से पहले जब जब सत्ता परिवर्तन हुआ, तब तब या तो राजाओं का सिर काट दिया गया या उन्हें जेल में डाल दिया गया पर जिस गाँधी की इन दिनों 150वीं जन्मशताब्दी मनायी जा रही है उनके बारे में कवियों ने कहा है कि –
धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह रे फ़कीर खूब करामात दिखाई
चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
यही कमाल दुहराया जाने वाला है और सूंघने वालों ने सूंघ भी लिया है सो पहले से ही वैराग्य दिखाने लगे हैं। साध्वी की वेषभूषा में रह कर गाली बारूद के गोले छोड़ने वाली ने सबसे पहले चुनाव न लड़ने की घोषणा उसी तरह से की जैसे कि उन्होंने झांसी से सांसद बनते ही तीन महीन के अन्दर अलग बुन्देलखण्ड प्रांत बनवाने की घोषणा की थी। उसके बाद उनके प्रतियोगी सुषमा स्वराज जिन्होंने सोनिया गाँधी के विधिवत प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में उमा जी के साथ साथ सिर मुंडाने, चने खा कर रहने, जमीन पर सोने आदि की घोषणा की थी, कह दिया कि वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगी। हो सकता है कि वे बेटी और पति के साथ ललित मोदी जैसे मुवक्किल की मदद के लिए उतरना चाहती हों। एक और भगवाधारी सांसद सावित्री बाई फुले ने तो एक जग जाहिर ज्ञान का इलहाम होने की बात बतायी कि मोदी सरकार को आरएसएस चला रहा है व मन की बात नहीं बोलने दी जाती। इसी बहाने पर उन्होंने पार्टी के साथ साथ सांसद पद से भी स्तीफा फेंक मारा। शत्रु तो पहले से ही शत्रु बन गये थे और यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसों का हाथ अपनी पीठ पर पा रहे थे। सुब्रम्यम स्वामी तो जब भी मौका देखते तो एकाध चपत लगा ही देते हैं और वादे के अनुसार वित्तमंत्री न बनाये जाने का बदला ले लेते हैं। अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार आदि तो मन ही मन कहते रहते हैं कि बुड्ढा होगा तेरा बाप। शिवसेना तो तीसरा तलाक भी बोल चुकी है और मुआवजे की लड़ाई लड़ रही है। बिहार के उपेन्द्र कुशवाहा तो पूर्ण तलाक दे ही चुके हैं। उत्तर प्रदेश में राजभर की पार्टी ने द्रोपदी की तरह केश खोल ही लिये है। उत्तरपूर्व की उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं। नवीन पटनायक की बहिन ने पद्मश्री ठुकरा दी है। दिल्ली में सूपड़ा साफ होने जा रहा है और हरियाणा में रामरहीम का आशीर्वाद तो जेलरों को मिल रहा है। उत्तर प्रदेश के तीनों उपचुनाव हर गये। राजस्थान, छत्तीसगढ, और मध्य प्रदेश में सरकारें बदल गयी हैं। तेलंगाना में विधायकों की संख्या आधी बची है। जम्मू कश्मीर की बहिन जी तो अब मायावती की तरह व्यवहार कर रही हैं।
संघ पहले दिन सिखाता है कि हिन्दू बड़े वीर थे और दूसरे दिन सिखाता है कि मुसलमान उन पर बहुत अत्याचार करते थे। स्वयंसेवकों को हँसाने के लिए वे और भी कई बातें बताते रहते हैं। लगता है चुनाव आते आते अमितशाह मोदी को बशीर बद्र का वह शेर पढते मिल सकते हैं-
शान के लोग कम रह गये
एक तुम एक हम रह गये    




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