शनिवार, 30 जनवरी 2016

व्यंग्य बिना इमरजैंसी अमितशाह

व्यंग्य
बिना इमरजैंसी अमितशाह
दर्शक

अमित शाह फिर से भाजपा अध्यक्ष बना दिये गये हैं। उनके नाम के पीछे तो फिर भी शाह लगा हुआ है, पर यदि मोदी किसी घोषित चोर की पीठ पर भी वैसे ही हाथ रख देते जैसे कि मुकेश अम्बानी ने उनकी पीठ पर रख दिया था तो भाजपा वाले उसे भी अध्यक्ष के रूप में स्वीकार कर लेते। जंग खाये हुए लौहपुरुष अडवाणी जी ने इमरजैंसी का खतरा ऐसे ही थोड़े सूंघ लिया था। इमरजैसी के बाद किसी ने लिखा था कि उस दौर में जब झुकने के लिए कहा गया तो लोग लेट गये थे। अब हाल यह है कि बिना झुकने को कहे हुये ही भाजपाजन दण्डवत प्रणाम की मुद्रा में हो गये हैं।
हमारे लोकतंत्र में खानदानी राज्य को गाली देने की आज़ादी तो सबको होती है, किंतु बिना जन समर्थन के खानदान की तरह अपनों अपनों को पद पर थोप देने पर केवल घुटा जा सकता है, जिससे घुटने का दर्द पैदा होता है। भरोसा न हो तो अटल बिहारी जी से पूछ सकते हैं।
       मुकुट बिहारी सरोज के शब्दों को याद करें तो –
जैसे कोई खुशी किसी मातम के साथ हुयी,
क्योंजी ये क्या बात हुयी?
सूचना माध्यम कह रहे हैं कि अमित शाह के पद ग्रहण का समारोह बिहार की जबरिया शादी की तरह था जहाँ सबके मुखड़े पर मायूसी थी पर रस्में पूरी की जा रही थीं। बिहार से याद आया कि बिहार विधानसभा के चुनाव परिणामों में जब पहले राउंड के चुनावों में भाजपा को बढत मिल गयी थी तो ढोल और भांगड़ा नाचने वाले बुलवा लिये गये थे पर बाद के राउंड में ग्राफ गिरता गया तो उन्हें जाने के लिए कह दिया गया था। उसी पुराने एडवांस की भरपाई के रूप में वे ही ढोल नगाड़े वाले बुलवा लिये गये थे। किसी ने गणतंत्र दिवस की निकटता महसूस कर के – ओ मेरे वतन के लोगो- गाना बजवा दिया था, जिसे – जो लौट के घर न आये- तक आते आते बन्द करवा दिया गया था क्योंकि इस समारोह में शहीद जैसे हो चुके बुजुर्ग नेता तो झांके भी नही थे। उनकी कुर्बानी को कौन याद करता। 
अमित शाह मोदी के साथ ऐसे ही आये हैं जैसे पुराने राजस्थान में रानियों के साथ गोली आया करती थीं जो रानी की विश्वस्त सेविका होती थीं। रनिवास से बाहर तक संवाद का माध्यम वे ही बनती थीं। प्रसिद्ध उपन्यासकार आचार्य चतुर सेन शास्त्री जो राजा महराजाओं के विश्वसनीय वैद्य भी थे और अंतःपुर की सारी कहानियां जानते थे, ने ‘गोली’ नाम से एक उपन्यास लिखा है। उम्मीद की जाना चाहिए कि किसी दिन प्रधानमंत्री कार्यालय की कहानियां भी बाहर आयेंगी, और बहुत रुचि के साथ पढी जायेंगीं। मोदी मंत्रिमण्डल में पुराने राज परिवारों जैसी प्रतिद्वन्दिताएं चरम पर हैं। जैटली को हजम नहीं हो रहा कि राजनाथ सिंह नम्बर दो पर हैं जिन्हें कभी अरुण शौरी ने हम्फी डम्फी और एलिस इन वंडरलेंड के रूप में याद किया था। अब उन्हीं अरुण शौरी ने मोदी सरकार को काऊ प्लस मनमोहन सिंह सरकार बताया है। कभी अटल सरकार में डिसइनवेस्टमेंट मंत्री रहे शौरी जी पूरी मोदी सरकार का डिसइनवेस्टमेंट करने पर उतारू नजर आते हैं। ये अरुण जैटली ही थे जिनके कथन पर राजनाथ के सुपुत्र की शिकायत पाकर प्रधानमंत्री कार्यालय को सफाई देना पड़ी थी। 2005 में प्रैस को जानकारी लीक करने का आरोप लगाते हुए उमा भारती ने जब अटल अडवाणी को खुले आम कार्यवाही की चुनौती दी थी, तब भी संकेत अरुण जैटली की ओर ही माना गया था। सुषमा स्वराज के ललित मोदी प्रकरण ने भी जिस आस्तीन के सांप की चर्चा की थी उसके शक की सुई भी जैटली की ओर गई थी। उधर सुषमा स्वराज और उमा भारती की प्रतिद्वन्दिता जग जाहिर है। जब सुषमाजी ने सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री बनने की दशा में सिर घुटाने, जमीन पर सोने और चने खाकर रहने की चेतावनी दी थी तो उमा भारती भी उनकी प्रतिद्वन्दिता में उतर आयी थीं। अब दोनों एक ही मंत्रिमण्डल में मंत्री हैं। कीर्ति आज़ाद, शत्रुघ्न सिन्हा के साथ सदाबहार सुब्रम्यम स्वामी तो मोदी जी के समर्थन का जाप करते करते भी उनके मंत्रिमण्डल के फैसलों की ऐसी छीछालेदर कर रहे हैं कि न निगलते बन रहा है और न ही उगलते।
ऐसी पार्टी के अनचाहे अध्यक्ष बने अमितशाह आखिर कब तक टिक पायेंगे? कहीं वे खुद के साथ सनम को लेकर भी तो नहीं डूबेंगे। केदारनाथ अग्रवाल की कविता है-

कागज की नावें हैं
तैरेंगीं, तैरेंगीं
लेकिन वे डूबेंगीं, डूबेंगीं, डूबेंगीं 


मंगलवार, 19 जनवरी 2016

व्यंग्य अदालत में भगवान भरोसे न्याय

व्यंग्य
अदालत में भगवान भरोसे न्याय
दर्शक
हमारे सैकेंडरी क्लासिज में अंग्रेजी में एक पाठ पढाया जाता था- गाड इज – एम के गाँधी। पाठ पढने के बाद में पता चला था कि ये तो अपने मोहनदास करम चन्द गाँधी अर्थात महात्मा गाँधी थे। इस पाठ में गाँधीजी कहते हैं कि ‘भगवान है’। उसके होने के तर्क के रूप में वे कहते हैं कि मैं एक गाँव में गया और गाँव वालों से पूछा कि उन पर कौन शासन करता है तो उन्होंने उत्तर में बतलाया था कि यद्यपि उन्होंने उसे नहीं देखा है पर कोई तो है जो उन पर शासन करता है। गाँधीजी कहते हैं कि इसी तरह दुनिया वालों ने ईश्वर को नहीं देखा है पर कोई तो है जो उन पर शासन करता है।
इस दस दिसम्बर को मुझे भरोसा हो गया कि 2002 में जिस रात फुटपाथ पर सोते हुए लोगों पर सलमान की गाडी चढी थी उस दिन भगवान गाड़ी चला रहा था। बहुत सम्भव है कि भगवान ही बार में गया हो। जिस किये गये काम का आपको पता न हो वे सब भगवान के मत्थे मढे जा सकते हैं। पिछले वर्षों में बाबरी मस्जिद टूटने के आरोप में जब आरोपियों में से एक उमा भारती से लिब्राहन आयोग ने पूछा था कि मस्ज़िद किसने तोड़ी तो उन्होंने कहा था कि भगवान ने तोड़ी। हो सकता है कि उन्होंने गलत नहीं कहा हो। इससे पहले उन्होंने कहा था कि उन्हें याद नहीं कि बाबरी मस्ज़्ज़िद किसने तोड़ी। याद्दाश्त भी क्या चीज होती है, जिन उमा भारती को बचपन में पूरी रामायण याद थी वे 1992 की घटना भूल गयीं थीं। वे आज केन्द्र में मंत्री हैं और फायर ब्रांड नेता होने की उपाधि उन्होंने किराये पर उठा रखी है।
धर्मग्रंथों पर हाथ रखवा कर शपथ दिलाने वाले हमारे न्यायालय भगवान में पूरा भरोसा रखते हैं। यही कारण है कि वे सभी शपथ लेने वालों के बयानों को सत्य मानते हैं और जिस अपराध में कोई जिम्मेवारी नहीं लेता और न अभियोजन किसी पर आरोप सिद्ध कर पाता है तो वे उसे भगवान के खाते में डाल देते हैं। पीड़ितों के अलावा सर्वे भवंतु सुखिना, सर्वे संतु निरामयः। किसी शायर ने कहा है कि दुनिया में नहीं जिसका कोई उसका खुदा है। उसी तरह जिस प्रकरण में कोई आरोपी अपराधी सिद्ध न हो तो भगवान को सौंप दो। उसे फाँसी नहीं हो सकती क्योंकि वो अजर अमर है उसका क्या बिगड़ता है। भक्तो कुछ भी करो जिम्मेवारी लेने के लिए वह तो बैठा है।  
फुटपाथ पर सोने वालों को कुचलने के फैसले पर एक मित्र ने कहा कि इस बात को छोड़ो कि गाड़ी कौन चला रहा था, हमें तो यह बताओ कि कोर्ट कौन चला रहा है! एक मंत्री दलितों को कुत्ते का पिल्ला मानते हैं तो दूसरे लेखकों को लिखना छोड़ देने की सलाह देते हैं। गाँधीजी अगर हम से भी पूछते तो हम भी यही जबाब देते कि हमने अपने शासकों को तो नहीं देखा है पर कोई तो ऐसा शासन कर रहा है जिसे नहीं करना चाहिए।      

व्यंग्य हम बोलेगा तो बोलेगा कि बोलता है

व्यंग्य
हम बोलेगा तो बोलेगा कि बोलता है
दर्शक
बयानों के बीच बिहार में जो दो तिहाई बहुमत से जीत रहे थे वे लोकसभा चुनाव परिणामों के हिसाब से एक चौथाई और पिछली विधान सभा के चुनाव परिणामों के हिसाब से आधे रह गये। पर ढीठ तो ढीठ होते हैं, सौ सौ जूते खाँये तमाशा घुस के देखेंगे। बेशर्मी के चरम शिखर पर बैठ कर वे झाबुआ-रतलाम लोकसभा चुनावों के उपचुनाव के बारे में भी ऐसी ही घोषणाएं कर रहे थे। बुन्देलखण्ड में ऐसे लोगों को मुँह का जबर कहा जाता है। सच कुछ भी हो, कहने में क्या जाता है!
आइए थोड़ा सा दार्शनिक हो लिया जाये। जीवन है तो मृत्यु भी है। कहा जाता है कि 
- आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर। जीवन पानी केरा बुलबुला है। बाल्टी में झाग उठा कर भरी बाल्टी दिखाने वाले उसे कब तक भरी दिखा सकते है। झाग कब तक उठा रह सकता है, उसे तो बैठ ही जाना है। जितना घूम सकते हो सो घूम लो और हरे लाल पीले नीले जितने भी सूट सिलवा रखे हैं सब पहिन डालो।

सैर कर दुनिया की ग़ालिब ज़िन्दगानी फिर कहाँ
ज़िन्दगानी भी रही तो ये जवानी फिर कहाँ

अध्यक्ष महोदय कह ही चुके हैं कि साठ साल में रिटायर हो जाना चाहिए। आगे तो फिर मार्गदर्शक मण्डल का रास्ता है जो ब्रेन डैडों के मुहल्ले में खुलता है। इस मुहल्ले में अभिव्यक्ति की केवल इतनी आज़ादी है कि परदानशीन औरतों की तरह छोटी सी खिड़की का एक पल्ला खोल कर बयान दे दो और फिर झट से खिड़की बन्द कर लो। इतने से दुस्साहस में ही तो ब्लड प्रैसर बढ जाता है। जानते नहीं हो मदनलाल खुराना कहाँ हैं, जसवंत सिंह कहाँ हैं, अटल बिहारी कहाँ हैं। ट्विटर का जमाना है, बस चहकना ही हो सकता है। भोला सिंह जैसे छोटे बाजपेयी जैसे लोग तक छुप छुप कर बोल रहे हैं। गोबिन्दाचार्य के स्वर तो ऐसे निकलते हैं जैसे भूमिगत नेता हों। जो कुछ बोल बाल कर चुप हो जा रहे हैं वे भी जानते हैं कि विज्ञापनों की मार में मीडिया आर के सिंह और शत्रुघ्न सिन्हा को कितनी जगह देगा। उमा भारती ने खूब बोल कर देख लिया अब मौन साधना में लीन हैं। बीच बीच में उन्हें आसाराम जरूर याद आ जाते हैं, जिन्हें उनके अनुसार ईसाई सोनिया गाँधी ने झूठा फँसा दिया है। अब भाजपा नेता सुब्रम्यम स्वामी उनका केस लड़ेंगे। कुछ दिनों पहले उन्होंने फ्रांस से राफेल विमान खरीदने को गलत फैसला बताया था, पर एक सप्ताह बाद रात में लक्ष्मी मैया ने उन्हें दर्शन दे कर कहा कि राफेल विमान खरीदने का फैसला गलत नहीं है, सो उन्होंने चुप लगा ली।
रहिमन चुप ह्वै बैठिए देख दिनन के फेर
जब नीके दिन आयेंगे बनत न लग है देर

शांता कुमार शांत बैठ गये हैं, येदुरप्पा हाथों को केवल गले मिलने के लिए ही खोलते हैं, मुरली मनोहर मुरली बजा रहे हैं सब चुप हैं और कह रहे हैं कि अभी इमरजैंसी नहीं लगी है।
ये साक्षी महाराजों, निरंजन ज्योतियों, गिरिराज सिंहों, आदित्यनाथों के बोलने का समय है।कभी कभी संघ प्रमुख सुर्री छोड़ देते हैं, तो कभी राज्यपालों के श्री मुखों से उद्गार फूट पड़्ते हैं। सुषमा स्वराज तक को जब विदेश जाना चाहिए तब वे विदिशा जा रही हैं।  पार्टी का वातावरण बहुत सहिष्णु है, सब सह रहे हैं। जो फिल्मों में दूसरों के लिखे हुए डायलोग बोलते रहे हैं वे परेश रावल, हेमामालिनी, अनुपम खेर बोल सकते हैं।
    

व्यंग्य मान न मान मैं तेरा मेहमान

व्यंग्य
मान न मान मैं तेरा मेहमान
दर्शक

भाजपा कहती रही है कि वे चाहते हैं कि मुसलमान हों तो रहीम और रसखान जैसे हों। भाजपा के लोग हिन्दुत्व को त्रिपुंड की तरह पोतने का काम तो लेते हैं पर न तो हिन्दुत्व के बारे में जानते हैं और न ही जानने की कोशिश ही करते हैं। यही हाल रहीम रसखान आदि के बारे में है। मोदीजी ने रहीम का वह दोहा याद नहीं रखा जिसमें वे कहते हैं-
आवत ही हर्षै नहीं, नैनन नहीं सनेह
रहिमन वहाँ न जाइए, कंचन बरसै मेह
मोदी जी भी आजकल जबरदस्ती मेहमान बनने के मामले में अमर सिंह हुये जा रहे हैं। आपको याद होगा कि किस तरह अमर सिंह कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ बिना बुलाये सोनिया गाँधी के यहाँ डिनर पर पहुँच गये थे। मोदी जी भी यही कर रहे हैं।
हुज़ूर आप का भी एहतेराम करता चलूं 
इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूं..
कोई तो देश की सीमा में रह कर ही यह करता है पर मोदी जी देश में रहते ही कहाँ हैं! सुना है उनके उतरते समय हवाई जहाज का पायलट पूछता है कि साब इंजन बन्द कर दूं कि चालू रखूं?
दतिया के एक पहलवान का किस्सा है कि वे स्टेशन पर बैठे हुए ट्रैन का इंतजार कर रहे थे। किसी परिचित ने सद्भाव में पूछ लिया कि पहलवान साब कहाँ जा रहे हैं?
‘दिल्ली’ उनका उत्तर था।
थोड़ी देर में बम्बई की ओर जाने वाली गाड़ी आयी तो वे उसमें सवार हो गये। प्रश्नकर्ता को भी उसी ओर जाना था और वह गाड़ी में बैठते हुए कहने लगा कि आप तो कह रहे थे कि दिल्ली जा रहे हैं!
‘परदेस, परदेस सब बराबर. चाहे दिल्ली जाओ या बम्बई’ पहलवान ने ठंडी साँस भर कर कहा।
मोदीजी नवाज शरीफ के यहाँ बिन बुलाये मेहमान बन कर पहुँच गये। बहर हाल शरीफ ने शराफत दिखायी और उन्हें ‘ जैसी तुम्हारी माताजी, वैसी हमारी माताजी’ कहते हुए पाँव छूने का अवसर दिया। गनीमत रही कि किसी ने टोपी लगाने को नहीं बोला बरना बड़ा धर्म संकट खड़ा हो जाता। गनीमत यह भी रही कि अम्मीजान ने यह भी नहीं पूछा कि बेटे बहू कैसी है!
बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह। राम माधव जी तो ऐसा बताने लगे जैसे कि मोदी बिना वीजा के पाकिस्तान हो कर नहीं जीत कर आये हों। वे तो भारत, पाकिस्तान और बाँगलादेश को एक करने का सपना देखने लगे। मुँगेरी लालों की कमी थोड़ी है।
असली संकट वीर रस के कवियों पर आ गया। एक ऐसे ही चारों ओर सहिष्णुता फैली देखने वाले कवि के सिर पर पट्टी बँधी देख कर मैंने पूछ लिया कि क्या हुआ, तो उनके बोलने से पहले ही उनकी पोती बोल उठी कि दादाजी ने अपना सिर दीवार पर मार लिया था। मोदीजी के पकिस्तान में अम्मीजान के पाँव छूने की खबर आने के बाद वे कह रहे थे कि मैं तो लुट गया, बरबाद हो गया। अब किसकी ईंट से ईंट बजायेंगे! किसकी छाती पर तिरंगा गाड़ेंगे। 

दूसरी तरफ मोदी भक्त सोशल मीडिया वालों ने अपने कम्प्यूटर तोड़ डाले। फिर वही रूस वही अफगानिस्तान और पाकिस्तान। अब नकली नकली नामों से किसको गाली बकेंगे! जिस नफरत पर ज़िन्दा थे उसी को पलीता लगा दिया। कुछ तो पूछ रहे थे कि सरयू में कहाँ कितना गहरा पानी है। ऐसे लोगों के लिए चुल्लू भर काफी नहीं होता।         

व्यंग्य दिव्यांग दिमाग वाले लोग

व्यंग्य
दिव्यांग दिमाग वाले लोग

दर्शक
कुछ लोग इतने पुरातनवादी होते हैं कि संस्कृत में अगर गाली भी दी जाये तो उन्हें स्तुति जैसी लगती है। वे इस भ्रम में भी रहते हैं कि दूसरों को भी ऐसा ही लगता होगा। उनका दूध ‘दुग्ध’ कह देने पर अधिक पवित्र हो जाता है और उसके गुण बढ जाते हैं। क्रोध में तो उन्हें लगता है कि जूते मारने की जगह पादुका प्रहार किया जाये।
ऐसे लोग अगर प्रभुता प्राप्त कर लें तो परिस्तिथि बदलने की जगह नाम बदलते रहते हैं। जोश उनका ऐसा रहता है जैसे दुनिया बदलने जा रहे हों। मैंने जोश के प्रवाह में ऐसी पंक्तियों पर भी वाह वाह होते सुनी है-
मैं पत्थर को पाषाण बना सकता हूं
मैं मानव को इंसान बना सकता हूं
मत पूछो कि मैं क्या क्या कर सकता हूं
मैं ईश्वर को भगवान बना सकता हूं
यही लोग स्कूलों को शिशु मन्दिर बना कर अच्छा धन्धा कर रहे हैं। मन्दिर में चढावा तो चढता ही है और परसाद महंतों के घर पहुँचता रहता है।
मोदी जी की कृपा से अब विकलांगों को दिव्यांग कह कर पुकारा जायेगा। पता नहीं कि सामने वाला अगर इसे अमिधा की जगह व्यंजना में ले गया तो अपनी बैसाखी से पुकारने वाले की टांगें भी तोड़ सकता है। सामान्यतः सहारे के लिए लाठी तो प्रत्येक दिव्यांग के पास होती ही है। वह इस तरह अपना गोत्र बढा सकता है। मैं कल्पना करता हूं कि अगर किसी दुर्घटना में राम भरोसे की टांग टूट जाये और आप भले ही पूरे सम्मान से कहें कि आइए दिव्यांगजी आपका स्वागत है तो वो आपके साथ क्या व्यवहार करेगा।
हम जिन पुराणों के सहारे अपनी संस्कृति की खोज करते रहते हैं उसमें कभी किसी को दिव्यांग का दर्जा नहीं मिला। मंथरा राम कथा में खलनायिका की तरह उभरती है जो आज की शब्दावली में दिव्यांग थी जिसकी वाक्पटुता ने ही रामकथा को आगे बढाया। वहीं दूसरे ग्रंथ महाभारत में भी असली खलनायक शकुनि था जो दिव्यांग था। 
कबीरदास ने ऐसे ही नामकरण करने वाले लोगों के लिए कहा है- मन न रंगायो, रंगायो जोगी कपड़ा। जिन्हें करुणा छू कर भी नहीं जाती वे करुणानिधान बनने की कोशिशें करते रहते हैं। कोठियों के नाम कुटियों पर रखते हैं- पर्ण कुटी। वचने किं दरिद्रताम। नाम ही तो रखना है।
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कहते हैं कि जब मुगलों की सेना ने भारतीय राजाओं की सेना के जाति के अनुसार अलग अलग चूल्हे जलते देखे थे तो उनकी समझ में आ गया था कि जो सैनिक एक ही चूल्हे पर पकी रोटी नहीं खा सकते वे एक हो कर कैसे लड़ेंगे। पठानकोट हमले में भी मोदी मंत्रिमण्डल के सदस्य यही संकेत दे रहे हैं। गृहमंत्री कुछ और कह रहे हैं, तो रक्षा मंत्री कुछ और कह रहे हैं। विदेश मंत्री का कुछ और विचार है तो नवाज शरीफ को हैप्पी बर्थडे कहने के लिए बिना वीजा के पूरी टीम ले जाने वाले प्रधानमंत्री का कुछ और विचार है।
कभी हम्पी डम्पी और एलिस इन वंडरलेंड की उपाधि से नवाजे गये गृह मंत्री ने कहा  कि पाकिस्तान को कुछ और समय दिया जाना चाहिए। राम भरोसे की समझ में नहीं आया कि उनका मतलब क्या है सो पूछने लगा कि क्या सात सैनिकों के मरने से वे संतुष्ट नहीं हैं। वैसे भी कम मौतों से इन्हें संतोष कहाँ मिलता है। इनके फोटो साध्वी की भूषा में रहने वाली जिस युवती के साथ देखे गये थे उसने तो समझौता एक्सप्रैस में मृतकों की सूचना मिलने के बाद पूछा था कि इतने कम लोग क्यों मरे?

भैयाजी आप भले ही कितना भी समय दे दो, पर जनता आपको टाइम नहीं देने वाली। महाराष्ट्र, हिमाचल आदि के पंचायत चुनावों में ही नहीं, गुजरात के नगर निकाय चुनावों में भी खतरे की घंटियां, घण्टों की तरह बजने लगी हैं।