मंगलवार, 19 जनवरी 2016

व्यंग्य अदालत में भगवान भरोसे न्याय

व्यंग्य
अदालत में भगवान भरोसे न्याय
दर्शक
हमारे सैकेंडरी क्लासिज में अंग्रेजी में एक पाठ पढाया जाता था- गाड इज – एम के गाँधी। पाठ पढने के बाद में पता चला था कि ये तो अपने मोहनदास करम चन्द गाँधी अर्थात महात्मा गाँधी थे। इस पाठ में गाँधीजी कहते हैं कि ‘भगवान है’। उसके होने के तर्क के रूप में वे कहते हैं कि मैं एक गाँव में गया और गाँव वालों से पूछा कि उन पर कौन शासन करता है तो उन्होंने उत्तर में बतलाया था कि यद्यपि उन्होंने उसे नहीं देखा है पर कोई तो है जो उन पर शासन करता है। गाँधीजी कहते हैं कि इसी तरह दुनिया वालों ने ईश्वर को नहीं देखा है पर कोई तो है जो उन पर शासन करता है।
इस दस दिसम्बर को मुझे भरोसा हो गया कि 2002 में जिस रात फुटपाथ पर सोते हुए लोगों पर सलमान की गाडी चढी थी उस दिन भगवान गाड़ी चला रहा था। बहुत सम्भव है कि भगवान ही बार में गया हो। जिस किये गये काम का आपको पता न हो वे सब भगवान के मत्थे मढे जा सकते हैं। पिछले वर्षों में बाबरी मस्जिद टूटने के आरोप में जब आरोपियों में से एक उमा भारती से लिब्राहन आयोग ने पूछा था कि मस्ज़िद किसने तोड़ी तो उन्होंने कहा था कि भगवान ने तोड़ी। हो सकता है कि उन्होंने गलत नहीं कहा हो। इससे पहले उन्होंने कहा था कि उन्हें याद नहीं कि बाबरी मस्ज़्ज़िद किसने तोड़ी। याद्दाश्त भी क्या चीज होती है, जिन उमा भारती को बचपन में पूरी रामायण याद थी वे 1992 की घटना भूल गयीं थीं। वे आज केन्द्र में मंत्री हैं और फायर ब्रांड नेता होने की उपाधि उन्होंने किराये पर उठा रखी है।
धर्मग्रंथों पर हाथ रखवा कर शपथ दिलाने वाले हमारे न्यायालय भगवान में पूरा भरोसा रखते हैं। यही कारण है कि वे सभी शपथ लेने वालों के बयानों को सत्य मानते हैं और जिस अपराध में कोई जिम्मेवारी नहीं लेता और न अभियोजन किसी पर आरोप सिद्ध कर पाता है तो वे उसे भगवान के खाते में डाल देते हैं। पीड़ितों के अलावा सर्वे भवंतु सुखिना, सर्वे संतु निरामयः। किसी शायर ने कहा है कि दुनिया में नहीं जिसका कोई उसका खुदा है। उसी तरह जिस प्रकरण में कोई आरोपी अपराधी सिद्ध न हो तो भगवान को सौंप दो। उसे फाँसी नहीं हो सकती क्योंकि वो अजर अमर है उसका क्या बिगड़ता है। भक्तो कुछ भी करो जिम्मेवारी लेने के लिए वह तो बैठा है।  
फुटपाथ पर सोने वालों को कुचलने के फैसले पर एक मित्र ने कहा कि इस बात को छोड़ो कि गाड़ी कौन चला रहा था, हमें तो यह बताओ कि कोर्ट कौन चला रहा है! एक मंत्री दलितों को कुत्ते का पिल्ला मानते हैं तो दूसरे लेखकों को लिखना छोड़ देने की सलाह देते हैं। गाँधीजी अगर हम से भी पूछते तो हम भी यही जबाब देते कि हमने अपने शासकों को तो नहीं देखा है पर कोई तो ऐसा शासन कर रहा है जिसे नहीं करना चाहिए।      

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