मंगलवार, 19 जनवरी 2016

व्यंग्य दिव्यांग दिमाग वाले लोग

व्यंग्य
दिव्यांग दिमाग वाले लोग

दर्शक
कुछ लोग इतने पुरातनवादी होते हैं कि संस्कृत में अगर गाली भी दी जाये तो उन्हें स्तुति जैसी लगती है। वे इस भ्रम में भी रहते हैं कि दूसरों को भी ऐसा ही लगता होगा। उनका दूध ‘दुग्ध’ कह देने पर अधिक पवित्र हो जाता है और उसके गुण बढ जाते हैं। क्रोध में तो उन्हें लगता है कि जूते मारने की जगह पादुका प्रहार किया जाये।
ऐसे लोग अगर प्रभुता प्राप्त कर लें तो परिस्तिथि बदलने की जगह नाम बदलते रहते हैं। जोश उनका ऐसा रहता है जैसे दुनिया बदलने जा रहे हों। मैंने जोश के प्रवाह में ऐसी पंक्तियों पर भी वाह वाह होते सुनी है-
मैं पत्थर को पाषाण बना सकता हूं
मैं मानव को इंसान बना सकता हूं
मत पूछो कि मैं क्या क्या कर सकता हूं
मैं ईश्वर को भगवान बना सकता हूं
यही लोग स्कूलों को शिशु मन्दिर बना कर अच्छा धन्धा कर रहे हैं। मन्दिर में चढावा तो चढता ही है और परसाद महंतों के घर पहुँचता रहता है।
मोदी जी की कृपा से अब विकलांगों को दिव्यांग कह कर पुकारा जायेगा। पता नहीं कि सामने वाला अगर इसे अमिधा की जगह व्यंजना में ले गया तो अपनी बैसाखी से पुकारने वाले की टांगें भी तोड़ सकता है। सामान्यतः सहारे के लिए लाठी तो प्रत्येक दिव्यांग के पास होती ही है। वह इस तरह अपना गोत्र बढा सकता है। मैं कल्पना करता हूं कि अगर किसी दुर्घटना में राम भरोसे की टांग टूट जाये और आप भले ही पूरे सम्मान से कहें कि आइए दिव्यांगजी आपका स्वागत है तो वो आपके साथ क्या व्यवहार करेगा।
हम जिन पुराणों के सहारे अपनी संस्कृति की खोज करते रहते हैं उसमें कभी किसी को दिव्यांग का दर्जा नहीं मिला। मंथरा राम कथा में खलनायिका की तरह उभरती है जो आज की शब्दावली में दिव्यांग थी जिसकी वाक्पटुता ने ही रामकथा को आगे बढाया। वहीं दूसरे ग्रंथ महाभारत में भी असली खलनायक शकुनि था जो दिव्यांग था। 
कबीरदास ने ऐसे ही नामकरण करने वाले लोगों के लिए कहा है- मन न रंगायो, रंगायो जोगी कपड़ा। जिन्हें करुणा छू कर भी नहीं जाती वे करुणानिधान बनने की कोशिशें करते रहते हैं। कोठियों के नाम कुटियों पर रखते हैं- पर्ण कुटी। वचने किं दरिद्रताम। नाम ही तो रखना है।
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कहते हैं कि जब मुगलों की सेना ने भारतीय राजाओं की सेना के जाति के अनुसार अलग अलग चूल्हे जलते देखे थे तो उनकी समझ में आ गया था कि जो सैनिक एक ही चूल्हे पर पकी रोटी नहीं खा सकते वे एक हो कर कैसे लड़ेंगे। पठानकोट हमले में भी मोदी मंत्रिमण्डल के सदस्य यही संकेत दे रहे हैं। गृहमंत्री कुछ और कह रहे हैं, तो रक्षा मंत्री कुछ और कह रहे हैं। विदेश मंत्री का कुछ और विचार है तो नवाज शरीफ को हैप्पी बर्थडे कहने के लिए बिना वीजा के पूरी टीम ले जाने वाले प्रधानमंत्री का कुछ और विचार है।
कभी हम्पी डम्पी और एलिस इन वंडरलेंड की उपाधि से नवाजे गये गृह मंत्री ने कहा  कि पाकिस्तान को कुछ और समय दिया जाना चाहिए। राम भरोसे की समझ में नहीं आया कि उनका मतलब क्या है सो पूछने लगा कि क्या सात सैनिकों के मरने से वे संतुष्ट नहीं हैं। वैसे भी कम मौतों से इन्हें संतोष कहाँ मिलता है। इनके फोटो साध्वी की भूषा में रहने वाली जिस युवती के साथ देखे गये थे उसने तो समझौता एक्सप्रैस में मृतकों की सूचना मिलने के बाद पूछा था कि इतने कम लोग क्यों मरे?

भैयाजी आप भले ही कितना भी समय दे दो, पर जनता आपको टाइम नहीं देने वाली। महाराष्ट्र, हिमाचल आदि के पंचायत चुनावों में ही नहीं, गुजरात के नगर निकाय चुनावों में भी खतरे की घंटियां, घण्टों की तरह बजने लगी हैं।   

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