बुधवार, 12 अप्रैल 2017

व्यंग्य भारतीय बूचड़खाना पार्टी

व्यंग्य
भारतीय बूचड़खाना पार्टी
दर्शक
चुनाव प्रचार के दौरान, सबसे पहले उन्होंने बूचड़ खाने बन्द कराने का वादा किया था, और शपथ ग्रहण करने वाले दिन ही वादे के अनुसार बूचड़ खाने बन्द कराये जिनकी संख्या तीन थी। वैसे भी वे चुनाव में सभी बूचड़खाने बन्द कराने के अपने वादे को चुनाव बाद बदल कर अवैध बूचड़खाने बन्द कराने के स्तर पर ले आये थे व जिन तीन को बन्द कराने का दावा किया वे पहले से ही बन्द थे। कहते हैं कि एक सैनिक दुश्मन का कटा हुआ हाथ लेकर अपने कम्पनी कमांडर के पास पहुँचा और अपनी वीरता का बखान करने लगा। कमांडर ने उसे शाबाशी देते हुए पूछा कि उसने दुश्मन का हाथ ही क्यों काटा सिर क्यों नहीं काटा। वह बोला- श्रीमानजी उसका सिर तो पहले से ही कटा हुआ था।
जिस तरह प्रेम में मजनू को लैला की बिल्ली से भी प्रेम था उसी तरह नफरत में भी होता है। नफरत की पाठशाला मनुष्यों से नफरत करना ही नहीं सिखाती वह दुश्मन की वस्तुओं से भी नफरत करने लगते हैं। पानी की बचत के लिए केतली नुमा लोटा उपयोगी बरतन है किंतु किसी गैर मुस्लिम संत द्वारा नहीं अपनाया गया, न मुसलमानों द्वारा कमंडल अपनाया गया। गैर मुस्लिम मांसाहारियों की संख्या मुस्लिमों से कम नहीं है, किंतु हिन्दू मुहल्ले में मुसलमानों को मकान न देने के पीछे उनके मांसाहारी होने का बहाना बनाया जाता है। कसाई दोनों ही धर्मों के लोगों में पाये जाते हैं और दोनों ही समाजों में कसाई शब्द को गाली की तरह ही प्रयोग किया जाता है। कहीं झटके का खाया जाता है तो कहीं हलाल का खाया जाता है, कहीं गाय नहीं खायी जाती तो कहीं सुअर नहीं खाया जाता। किंतु मुसलमानों के विरुद्ध नफरत पैदा करने वालों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि गैर मुस्लिमों का मांसाहार शाकाहारियों को उतना बुरा नहीं लगता जितना कि मुस्लिमों का मांसाहार लगता है।
पत्रकार अभय दुबे ने सही कहा है कि गाय मारने वाले को फाँसी की सजा घोषित की जाने वाली है पर मनुष्यों को मारने वालों को बड़ी बड़ी कुर्सियां मिल रही हैं। कसाई तो अपने परिवार की रोटी के लिए पशुओं को मारने के लिए विवश है किंतु कुछ लोग तो अपने सिंहासनों के लिए ही पूरे गुजरात को बूचड़खाने में बदल चुके हैं। मुनव्वर राना ने कहा है कि-
बहुत सी कुर्सियां इस मुल्क की लाशों पै रक्खी हैं
ये वो सच है जिसे झूठे से झूठा बोल सकता
वैसे बूचड़खाने की सारी आवाजें भारतीय जनता पार्टी से आती सुनाई देती हैं। हैदराबाद के भाजपा विधायक जो अपने शिखर के नेताओं के बहुत प्रिय हैं कहते हैं कि जो राम मन्दिर निर्माण का विरोध करेगा उसका सिर काट देंगे। छत्तीसगढ में ईसाइयों पर इसलिए हमला कर दिया जाता है कि वे बाइबिल और क्रास बांट रहे थे जो ‘आपत्तिजनक सामग्री’ उनसे बरामद की गई। नाम दिया गया कि वे धर्म परिवर्तन करा रहे थे, जबकि दबाव या लालच से धर्म परिवर्तन के खिलाफ देश में कानून है और किसी ने ऐसी कोई शिकायत नहीं की थी। यही काम योगी के मुख्यमंत्री बनते ही महाराज गंज में किया गया और बहाना वही धर्म परिवर्तन का। अलवर में विधिवत खरीद कर ले जायी जा रही गाय के सच्चे गौ सेवक को इसलिए मार दिया जाता है, क्योंकि कथित गौ सेवकों को जिन मे से 80% को कभी प्रधान सेवक मोदी गौ गुंडे बतला चुके हैं, को गौकुशी की आशंका थी।
 छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को तो जल्लाद का काम दे देना चाहिए जो कहते हैं कि अगर कोई गाय को मारेगा तो उसे लटका देंगे। वे शायद नहीं जानते कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के काम बँटे हुये हैं। राँची में एक मुस्लिम युवक को हिन्दू लड़की से प्रेम के ‘अपराध’ में, जिसे संघी भाषा में लव जेहाद कहा जाता है,  मार डाला गया। यूपी में मुख्यमंत्री तो क्या स्टार प्रचारक तक न बन पाये वरुण गाँधी ने तो मुसलमानों के हाथ काटने वाला बयान देकर अपने नम्बर बढवाने की कोशिश की थी, पर कारनामा कारगर नहीं रहा।
उज्जैन में संघ के प्रचारक केरल के मुख्यमंत्री का सिर काट कर लाने के लिए एक करोड़ की घोषणा करते हैं, जिन्हें जेल ले जाने में शिवराज की पुलिस यह जानते हुए भी देर कर देती है कि शाम के बाद प्रवेश नहीं मिलता व शासकीय सहानिभूति के कारण अगले दिन उनकी जमानत हो जाती है। इसी उज्जैन में प्रोफेसर सव्वरवाल की हत्या के चश्मदीद होने व वीडियो प्रमाण होने पर भी आरोपी छूट चुके हैं। न्यायालय भले अलग हो पर अभियोजन तो अपना है।
उमा भारती हर मामले को संवेदनशील बनाने की कूटनीति को इतना आत्मसात कर चुकी हैं कि बाबरी मस्जिद तोड़ने के मामले में फाँसी की सजा से कम पर राजी ही नहीं हैं।
मारो, काटो, हाथ काट दो, सिर काट दो, जबान काट दो, लटका दो, फाँसी दे दो, धाँय धाँय, खचा खच मचा हुआ है। जब इतना कुछ पार्टी में ही हो रहा है तो आप ही बताइए कि बूचड़खानों की जरूरत क्या है! बन्द करो सबको।  



व्यंग्य जन्मकुंडली रखने वाले

व्यंग्य
जन्मकुंडली रखने वाले
दर्शक
वह तो अच्छा हुआ कि रामभरोसे के पूज्य पिताजी [सादर चरण स्पर्श] का भरोसा जन्म कुंडली इत्यादि में नहीं था बरना उसका ससुरा उसे रोज रोज धमका रहा होता कि बेटे कायदे से चलना, तेरी जन्म कुंडली मेरे पास है।
जन्म कुंडली भी क्या चीज होती है, इसे अब इस तरह समझा जा सकता है कि किसी की फेसबुक डिटेल किसी के पास हो कि वह किस किस को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजा करता है, किस को लाइक करता है, किससे चैट करता है, कितने झूठे सच्चे एकाउंट बना रखे हैं, और भी बहुत कुछ। जन्म कुंडली में थोड़ी भाषा भिन्न होती है और उसमें शनि, बुध, सूर्य आदि के स्थान और प्रभाव के परिणामों का मनमाना और कपोल कल्पित परिणाम बता कर डराया जाता है। भयादोहन शब्द इसके लिए सबसे उपयुक्त होता है। आदमी डर कर ही जेब खाली करता है। पंडित कहता है कि कुंडली बता रही है कि मार्केश लगा है साले अनुष्ठान करा नहीं तो टें बोल जायेगा। मरने का डर सबसे बड़ा डर होता है सो वो अपनी झोली खाली करके पंडित की झोली भर देता है।
भयादोहन से लूटने वाले हमेशा पंडित, फकीर, साधु, आदि का भेष बना कर ही रहते हैं। डरे हुए आदमी को लगता है कि यह किसी ऊपरी शक्ति का खास आदमी है, और यही हमारा बिगड़ा काम बना सकता है। लुटाई नोट की हो या वोट की हो उसमें साधु भेष बड़ा काम आता है। जब आदमी प्रधानमंत्री के रूप में अपने काम में सफल नहीं हो पाता तो सीधे फकीर के भेष में जाने की घोषणा कर देता है, इस तरह नहीं तो उस तरह डरोगे। धर्म उपदेशकों ने आदमी को पहले ही इतना डराया हुआ होता है कि वह किसी भी बाबा भेषधारी के, गिली गिली छू, कहने भर से डर जाता है। इसलिए फकीर सब कुछ छोड़ दें, पर झोला नहीं छोड़ते।
हमारे वर्तमान प्रधानमंत्रीजी भी जब इमरजैंसी में गिरफ्तारी के डर से भाग गये थे तो कहाँ गये थे यह बहुत दिनों तक किसी को पता नहीं था किंतु प्रधानमंत्री बनते ही उनके सन्यासी भेष के रंगीन फोटो, जो हिमालय में किसी अज्ञात फोटोग्राफर ने खींचे होंगे, प्रकाश में आ गये। जो बाबा भेष में आ गया वह तो समय से परे हो जाता है, उसके लिए दिन, महीने, वर्ष कुछ भी माने नहीं रखते।
वे बार बार कहते हैं कि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का मौका नहीं मिला, पर इमरजैंसी जिसे उनकी पार्टी दूसरी आज़ादी कहती है में जब मौका आता है तो वे बाबा बन जाते हैं, उनके मंत्रिमण्डल की विदेश मंत्री उसी इमरजैंसी के दौरान शादी करती हैं, और पकड़ में आ जाने पर जेल जाने वाले उनके बहुत सारे नेता माफीनामे लिख कर वापिस आ जाते हैं। अगर आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने का मौका भी मिल होता तो ये लोग क्या करते इसका अनुमान लगाया जा सकता है। हाँ मध्य प्रदेश में सरकार बनते ही ये लोग मोटी मोटी पेंशनें जरूर फटकार रहे हैं।
जो नेता सरकार में है उसका कर्तव्य होता है कि आरोपी को न्याय के सामने खड़ा करे और दोषी होने पर दण्ड दिलवाये। पर वही नेता अपने विपक्षियों को यदि यह कह कर डराता हुआ पाया जाये कि तुम्हारी जन्मकुण्डली हमारे पास है, इसलिए चुनाव में हमारा सामना नहीं करो, तो वह अपनी जन्मकुण्डली तो खुद ही खोल रहा होता है। सबसे पहले तो उसे ही कटघरे में होना चाहिए। जिस पार्टी को अध्यक्ष के रूप में ऐसे व्यक्ति को चुनना पड़ा हो जिसके ऊपर सबसे खतरनाक धाराओं पर मुकदमा चल चुका हो , वह दूसरों की जन्मकुण्डली होने की धमकी दे तो कैसा लगता है।

अगर हिम्मत है तो खोल दे जन्मपत्री। या डर है कि सामने वाले के पास भी तुम्हारी जन्मपत्री रखी हुयी है। 

व्यंग्य जूता सेना के सैनिक

व्यंग्य
जूता सेना के सैनिक
दर्शक
राम भरोसे ने आकर पूछा कि क्या हमारे देश की संसद में जाने के लिए क्या कोई गूंगा व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है?
टीवी पर भाजपा प्रवक्ताओं की बहस सुनते सुनते दर्शकों, श्रोताओं में भी सवाल को टालने और भटकाने की प्रतिभा विकसित होने लगी है सो मैंने कहा कि संसद में जनता के प्रतिनिधि जनता की आवाज़ बन कर संसद में जाते हैं और वहाँ जनहित के मुद्दे उठाते हैं इसलिए वहाँ बोल सकने वालों की ही जरूरत होती है गूंगों की नहीं। शायद यही कारण रहा होगा कि वहाँ गूंगे लोग नहीं जाते और न ही देश की जनता ऐसे दिव्यागों को भेजती है।
रामभरोसे नाराज होकर कुटिलता से मुस्कराया और बोला- विद्वान महोदय, मैंने आप से एक सीधा सा सवाल पूछा था कि क्या कानूनन कोई गूंगा व्यक्ति चुनाव लड़ने का पात्र हो सकता है या नहीं, अगर तुम्हें उत्तर पता नहीं था सो साफ बता देते। ... पर कैसे बताते, उससे तुम्हारी झूठी विद्वता की हेठी हो जाती, सो तुम उसके दर्शन में घुस गये।
मैंने खीझ कर कहा- हाँ ठीक है, मैं कोई सुब्रम्यम स्वामी तो हूं नहीं कि मुझे जयललिता के धन और थरूर की पत्नी के निधन का रहस्य व सोनिया गाँधी के शेयरों से लेकर जैटली के आईपील के योगदान तक सब कुछ मालूम हो। उन्हें तो शायद यह भी पता होगा कि बाहुबली ने कटप्पा को क्यों मारा। पर तुम यह बताओ कि ऐसे अजीब अजीब तरह के सवाल तुम्हारे दिमाग में कैसे आते हैं, और यह सवाल क्यों आया?  
वह बोला- अब आये न लाइन पर, सवाल यह है कि जब सारे बोलने वाले लोग संसद में जाते हैं जिन्हें शून्य काल में अपनी बात खुल कर रखने की आज़ादी होती है तो ये लोग सदन से गायब रहते हैं और जहाँ उनकी शिकायत पर विशेष अधिकार हनन का मामला बन जाता है वहाँ वे शिकायत की जगह जूतों से बात करते हैं। जिस सामंती काल से बच कर हम लोकतांत्रिक हुए हैं उसे इस लोकतंत्र के प्रतिनिधि फिर से जंगली समय में ले जाने में लगे हुये हैं। बाबरी मस्ज़िद तोड़ कर जो लोग खुद कहते हैं कि हाँ हमने तोड़ी और हमारा कानून नई नवेली दुल्हिन की तरह सकुचाया शर्माया बैठा रहता है तो उस पार्टी के सांसद कह ही सकते हैं कि हाँ मैंने गालियां ही नहीं दीं अपितु सैंडिल से मारा। उनकी याददाश्त और गिनती दोनों ही ठीक हैं इसलिए उन्होंने बताया कि उन्होंने 25 बार मारा।
शायद उसके बाद उनके हाथ थक गये होंगे क्योंकि रामभरोसे ने खुद एक आदमकद मूर्ति पर जूते चला कर देखा और वह भी 25 से ज्यादा नहीं मार सका, भले ही वह गुस्से में कहता रहा है कि सौ जूते मारेंगे, और एक गिनेंगे। कैफ भोपाली ने कहा है-

क्यों न अपने हाथों से आज कत्ल हो जायें
अब तो मेरे कातिल के हाथ थक गये होंगे
रोचक यह है कि न तो सांसद को खेद है और न ही वे क्षमा याचना को तैयार हैं। जब किये को भूल ही नहीं मानते तो क्षमा कैसी?
ये सांसद इतने जूतों तक ही नहीं रुके उन्होंने अपने सहयोगी दल को हिकारत से देखते हुए कहा कि मैं कोई भाजपा का थोड़े ही हूं, शिव सेना का हूं। भाजपा शिवसेना के लिए गोपाल दास नाई की तरह है। बुन्देली में एक कहावत है कि – अरे दरे खों, गुपला नउआ, अर्थात जब भी अबे तबे करने की खुजली हो रही हो तो गोपाल दास नाई को पात्र बना कर ऐसा किया जा सकता है। शिवसेना भी गाहे बगाहे आते जाते, भाजपा के सिर में चपत लगाती जाती है। महाराष्ट्र में सरकार उन्हीं की दम पर चल रही है इसलिए वे दूध देने वाली गाय की लातें खाते रहते हैं। सत्ता के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। अभी बी. एम. सी. के चुनाव में उन्होंने भाजपा को नाकों चने चबवा दिये। झक मार कर उन्हें समर्थन करना पड़ा और चुनावों के दौरान लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों पर होंठ सिल लेना पड़े। बाल ठाकरे तो सुषमा स्वराज को प्रधानमंत्री बनवाना चाहते थे, अब चर्चा है कि मोदी उससे भी बड़ी पोस्ट अर्थात राष्ट्रपति बनाने के प्रयास कर सकते हैं।


व्यंग्य बुरा न मानने वाली होली के अवसर पर गधों की दुनिया

व्यंग्य
बुरा न मानने वाली होली के अवसर पर गधों की दुनिया
दर्शक
मैं इतना भी गधा नहीं हूं कि गधों पर कुछ लिखूं । मैंने तय किया है कि मैं गधों पर कुछ नहीं लिखूंगा क्योंकि इतने सारे लोग केवल और केवल गधों पर ही बोले और लिखे जा रहे हैं तो गधों के इस नक्कारखाने में मैं भी अपनी गधी जैसी तूती गुंजाऊं यह मुझे मंजूर नहीं। कुछ प्रतीक इतने सुनिश्चित हो चुके हैं कि केवल गधा कह देने से भी लोग हँसने लगते हैं। उल्लुओं ने इनकी बराबरी करने की बहुत कोशिश की किंतु वहाँ तक नहीं पहुँच सके जहाँ तक गधे पहुँच गये, और मैं हमेशा पिछड़ों, वंचितों के साथ रहा हूं। असल में उल्लू को देख सकने में ही एक उमर निकल जाती है तब वह दिखाई देता है क्योंकि वह रात्रि कालीन पक्षी होता है तथा अखबार में काम करने वालों से होड़ लेता रहता है। वह आदमियों से इतना भिन्न होता है कि आदमियों को रात्रि में दिखाई नहीं देता और उल्लुओं को दिन में दिखाई नहीं देता। गधा इसी बात में बाजी मार लेता है क्योंकि बाज़ार की भाषा में कहा गया है कि जो दिखता है, वह बिकता है। असमंजस ऐसा ही है जैसा कि एक गज़ल में कहा गया है
तुझको देखा है मेरी नज़रों ने, तेरी तारीफ हो मगर कैसे,
न जुबाँ को दिखाई देता है, और ना नज़रों से बात होती है 
       गुजरात के गधों की लोकप्रियता से पहले वे धोबियों तक सीमित रहे हैं। किसी देवता ने उन्हें वाहन नहीं बनाया। उल्लू थोड़ा इलीट क्लास का पक्षी है, वह धन की देवी का वाहन है। दुनिया की सारी लक्ष्मियां उल्लुओं को ही वाहन बनाती हैं, चाहे वे गृहलक्ष्मियां ही क्यों न हों। उल्लुओं का महत्व वही समझ सकता है जिसने कलेक्टरों, या मंत्रियों के वाहन चालकों से बातचीत की हो। उन्हें वह बात तक पता होती है जो पुरुष मंत्रियों की गृहलक्ष्मियों तक को पता नहीं होती। हिन्दी के कवि अब्दुल रहीम खानखाना ने कहा है कि  
लक्ष्मी थिर न रहीम कहि, यह जानत सब कोय
पुरुष पुरातन की वधू, क्यों न चंचला होय !
मोदीजी के प्रिय कवि काका हाथरसी ने राम सीता, राधा कृष्ण, आदि की पूजा की परम्परा में दीवाली पर लक्ष्मी गणेश की पूजा होते देख जिज्ञासा व्यक्त की थी –
पति हैं उनके विष्णुजी, धार्मिक अपना देश
लक्ष्मीजी की बगल में क्यों अड़ रहे गणेश
गधा तो रेंक कर अपना राज खोल देता है किंतु उल्लुओं को कभी किसी ने कोई चुगली करते नहीं देखा। अगर ऐसा होता तो मोदी को काला धन निकालने के लिए विमुद्रीकरण की असफल योजना लागू करके देश का पैसा नहीं फूंकना पड़ता। आयकर अधिकारी उल्लू को ही मुखबिर बना कर पता लगा लेते।
भले ही गुजरात के गधे अमिताभ बच्चन के सहारे अंतर्राष्ट्रीय महत्व पा रहे हों किंतु जातिवाद के इस युग में मैं केवल और केवल उल्लुओं की बात करूंगा।
उल्लू दो तरह के होते हैं। एक सचमुच के उल्लू, और दूसरे काठ के उल्लू। सचमुच के उल्लुओं में सभी उल्लू, उस्ताद उल्लू नहीं होते अपितु कुछ प्रशिक्षु भी होते हैं, जिन्हें उल्लू के पट्ठे कहा जाता है। पट्ठों के बारे में यह गारंटी नहीं होती कि पक्के उल्लू बन भी जायेंगे या नहीं, इसलिए उनके उस्ताद को ही पहचाना जाता है। यह वैसा ही है जैसा कि उर्दू गज़ल लिखने वालों में होता है। ऐसे उल्लू अधूरे प्रशिक्षण से कभी कभी उल्लू की दुम होकर रह जाते हैं।
उल्लुओं में अपने पराये का भेद भी होता है। जो अपना उल्लू होता है वह हमेशा टेढा ही रहता है इसलिए हर कोई हर समय अपना उल्लू सीधा करने में लगा रहता है। जो लोग अपना उल्लू सीधा नहीं करते उन्हें लोग विनयपूर्वक उल्लू ही मानते हैं।
वैसे तो उल्लू पुरानी इमारतों, उजड़े महलों के स्थानों को आबाद करते हैं किंतु कई तो उस पेड़ के कोटर में भी रहते हैं जिसकी डाल पर बैठ कर विवाह के पूर्व कालिदास उसी डाल को काट रहे थे और उनकी प्रतिभा को विद्योतमा से पराजित पंडितों ने पहचाना था।
उल्लुओं की प्रतिभा को उर्दू के शायर ने ठीक तरह से पहचाना है और वह कहता है कि अकेला एक उल्लू ही गुलिस्तां को बर्बाद करने के लिए काफी होता है किंतु जब हर डाल पर भाई बन्द बैठे हों तो फिर गुलिस्तां की बरबादी के नज़ारों का क्या कहना। यह शोध का विषय हो सकता है कि यह गुलिस्तां इकबाल वाला गुलिस्तां है जिसकी वे बुलबुल हैं या जली कट्टू वाले बुल बुल का गुलिस्तां है।

गधों की दुनिया में मैं उल्लूपना का इसलिए भी पक्षधर हूं क्योंकि उल्लू पक्षी होता है और गधा विपक्षी।