बुधवार, 12 अप्रैल 2017

व्यंग्य जन्मकुंडली रखने वाले

व्यंग्य
जन्मकुंडली रखने वाले
दर्शक
वह तो अच्छा हुआ कि रामभरोसे के पूज्य पिताजी [सादर चरण स्पर्श] का भरोसा जन्म कुंडली इत्यादि में नहीं था बरना उसका ससुरा उसे रोज रोज धमका रहा होता कि बेटे कायदे से चलना, तेरी जन्म कुंडली मेरे पास है।
जन्म कुंडली भी क्या चीज होती है, इसे अब इस तरह समझा जा सकता है कि किसी की फेसबुक डिटेल किसी के पास हो कि वह किस किस को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजा करता है, किस को लाइक करता है, किससे चैट करता है, कितने झूठे सच्चे एकाउंट बना रखे हैं, और भी बहुत कुछ। जन्म कुंडली में थोड़ी भाषा भिन्न होती है और उसमें शनि, बुध, सूर्य आदि के स्थान और प्रभाव के परिणामों का मनमाना और कपोल कल्पित परिणाम बता कर डराया जाता है। भयादोहन शब्द इसके लिए सबसे उपयुक्त होता है। आदमी डर कर ही जेब खाली करता है। पंडित कहता है कि कुंडली बता रही है कि मार्केश लगा है साले अनुष्ठान करा नहीं तो टें बोल जायेगा। मरने का डर सबसे बड़ा डर होता है सो वो अपनी झोली खाली करके पंडित की झोली भर देता है।
भयादोहन से लूटने वाले हमेशा पंडित, फकीर, साधु, आदि का भेष बना कर ही रहते हैं। डरे हुए आदमी को लगता है कि यह किसी ऊपरी शक्ति का खास आदमी है, और यही हमारा बिगड़ा काम बना सकता है। लुटाई नोट की हो या वोट की हो उसमें साधु भेष बड़ा काम आता है। जब आदमी प्रधानमंत्री के रूप में अपने काम में सफल नहीं हो पाता तो सीधे फकीर के भेष में जाने की घोषणा कर देता है, इस तरह नहीं तो उस तरह डरोगे। धर्म उपदेशकों ने आदमी को पहले ही इतना डराया हुआ होता है कि वह किसी भी बाबा भेषधारी के, गिली गिली छू, कहने भर से डर जाता है। इसलिए फकीर सब कुछ छोड़ दें, पर झोला नहीं छोड़ते।
हमारे वर्तमान प्रधानमंत्रीजी भी जब इमरजैंसी में गिरफ्तारी के डर से भाग गये थे तो कहाँ गये थे यह बहुत दिनों तक किसी को पता नहीं था किंतु प्रधानमंत्री बनते ही उनके सन्यासी भेष के रंगीन फोटो, जो हिमालय में किसी अज्ञात फोटोग्राफर ने खींचे होंगे, प्रकाश में आ गये। जो बाबा भेष में आ गया वह तो समय से परे हो जाता है, उसके लिए दिन, महीने, वर्ष कुछ भी माने नहीं रखते।
वे बार बार कहते हैं कि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का मौका नहीं मिला, पर इमरजैंसी जिसे उनकी पार्टी दूसरी आज़ादी कहती है में जब मौका आता है तो वे बाबा बन जाते हैं, उनके मंत्रिमण्डल की विदेश मंत्री उसी इमरजैंसी के दौरान शादी करती हैं, और पकड़ में आ जाने पर जेल जाने वाले उनके बहुत सारे नेता माफीनामे लिख कर वापिस आ जाते हैं। अगर आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने का मौका भी मिल होता तो ये लोग क्या करते इसका अनुमान लगाया जा सकता है। हाँ मध्य प्रदेश में सरकार बनते ही ये लोग मोटी मोटी पेंशनें जरूर फटकार रहे हैं।
जो नेता सरकार में है उसका कर्तव्य होता है कि आरोपी को न्याय के सामने खड़ा करे और दोषी होने पर दण्ड दिलवाये। पर वही नेता अपने विपक्षियों को यदि यह कह कर डराता हुआ पाया जाये कि तुम्हारी जन्मकुण्डली हमारे पास है, इसलिए चुनाव में हमारा सामना नहीं करो, तो वह अपनी जन्मकुण्डली तो खुद ही खोल रहा होता है। सबसे पहले तो उसे ही कटघरे में होना चाहिए। जिस पार्टी को अध्यक्ष के रूप में ऐसे व्यक्ति को चुनना पड़ा हो जिसके ऊपर सबसे खतरनाक धाराओं पर मुकदमा चल चुका हो , वह दूसरों की जन्मकुण्डली होने की धमकी दे तो कैसा लगता है।

अगर हिम्मत है तो खोल दे जन्मपत्री। या डर है कि सामने वाले के पास भी तुम्हारी जन्मपत्री रखी हुयी है। 

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