बुधवार, 12 अप्रैल 2017

व्यंग्य जूता सेना के सैनिक

व्यंग्य
जूता सेना के सैनिक
दर्शक
राम भरोसे ने आकर पूछा कि क्या हमारे देश की संसद में जाने के लिए क्या कोई गूंगा व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है?
टीवी पर भाजपा प्रवक्ताओं की बहस सुनते सुनते दर्शकों, श्रोताओं में भी सवाल को टालने और भटकाने की प्रतिभा विकसित होने लगी है सो मैंने कहा कि संसद में जनता के प्रतिनिधि जनता की आवाज़ बन कर संसद में जाते हैं और वहाँ जनहित के मुद्दे उठाते हैं इसलिए वहाँ बोल सकने वालों की ही जरूरत होती है गूंगों की नहीं। शायद यही कारण रहा होगा कि वहाँ गूंगे लोग नहीं जाते और न ही देश की जनता ऐसे दिव्यागों को भेजती है।
रामभरोसे नाराज होकर कुटिलता से मुस्कराया और बोला- विद्वान महोदय, मैंने आप से एक सीधा सा सवाल पूछा था कि क्या कानूनन कोई गूंगा व्यक्ति चुनाव लड़ने का पात्र हो सकता है या नहीं, अगर तुम्हें उत्तर पता नहीं था सो साफ बता देते। ... पर कैसे बताते, उससे तुम्हारी झूठी विद्वता की हेठी हो जाती, सो तुम उसके दर्शन में घुस गये।
मैंने खीझ कर कहा- हाँ ठीक है, मैं कोई सुब्रम्यम स्वामी तो हूं नहीं कि मुझे जयललिता के धन और थरूर की पत्नी के निधन का रहस्य व सोनिया गाँधी के शेयरों से लेकर जैटली के आईपील के योगदान तक सब कुछ मालूम हो। उन्हें तो शायद यह भी पता होगा कि बाहुबली ने कटप्पा को क्यों मारा। पर तुम यह बताओ कि ऐसे अजीब अजीब तरह के सवाल तुम्हारे दिमाग में कैसे आते हैं, और यह सवाल क्यों आया?  
वह बोला- अब आये न लाइन पर, सवाल यह है कि जब सारे बोलने वाले लोग संसद में जाते हैं जिन्हें शून्य काल में अपनी बात खुल कर रखने की आज़ादी होती है तो ये लोग सदन से गायब रहते हैं और जहाँ उनकी शिकायत पर विशेष अधिकार हनन का मामला बन जाता है वहाँ वे शिकायत की जगह जूतों से बात करते हैं। जिस सामंती काल से बच कर हम लोकतांत्रिक हुए हैं उसे इस लोकतंत्र के प्रतिनिधि फिर से जंगली समय में ले जाने में लगे हुये हैं। बाबरी मस्ज़िद तोड़ कर जो लोग खुद कहते हैं कि हाँ हमने तोड़ी और हमारा कानून नई नवेली दुल्हिन की तरह सकुचाया शर्माया बैठा रहता है तो उस पार्टी के सांसद कह ही सकते हैं कि हाँ मैंने गालियां ही नहीं दीं अपितु सैंडिल से मारा। उनकी याददाश्त और गिनती दोनों ही ठीक हैं इसलिए उन्होंने बताया कि उन्होंने 25 बार मारा।
शायद उसके बाद उनके हाथ थक गये होंगे क्योंकि रामभरोसे ने खुद एक आदमकद मूर्ति पर जूते चला कर देखा और वह भी 25 से ज्यादा नहीं मार सका, भले ही वह गुस्से में कहता रहा है कि सौ जूते मारेंगे, और एक गिनेंगे। कैफ भोपाली ने कहा है-

क्यों न अपने हाथों से आज कत्ल हो जायें
अब तो मेरे कातिल के हाथ थक गये होंगे
रोचक यह है कि न तो सांसद को खेद है और न ही वे क्षमा याचना को तैयार हैं। जब किये को भूल ही नहीं मानते तो क्षमा कैसी?
ये सांसद इतने जूतों तक ही नहीं रुके उन्होंने अपने सहयोगी दल को हिकारत से देखते हुए कहा कि मैं कोई भाजपा का थोड़े ही हूं, शिव सेना का हूं। भाजपा शिवसेना के लिए गोपाल दास नाई की तरह है। बुन्देली में एक कहावत है कि – अरे दरे खों, गुपला नउआ, अर्थात जब भी अबे तबे करने की खुजली हो रही हो तो गोपाल दास नाई को पात्र बना कर ऐसा किया जा सकता है। शिवसेना भी गाहे बगाहे आते जाते, भाजपा के सिर में चपत लगाती जाती है। महाराष्ट्र में सरकार उन्हीं की दम पर चल रही है इसलिए वे दूध देने वाली गाय की लातें खाते रहते हैं। सत्ता के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। अभी बी. एम. सी. के चुनाव में उन्होंने भाजपा को नाकों चने चबवा दिये। झक मार कर उन्हें समर्थन करना पड़ा और चुनावों के दौरान लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों पर होंठ सिल लेना पड़े। बाल ठाकरे तो सुषमा स्वराज को प्रधानमंत्री बनवाना चाहते थे, अब चर्चा है कि मोदी उससे भी बड़ी पोस्ट अर्थात राष्ट्रपति बनाने के प्रयास कर सकते हैं।


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