गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

व्यंग्य सपनों की दुनिया में



व्यंग्य

सपनों की दुनिया में

दर्शक
रामभरोसे जब भी गम्भीर होने की कोशिश करता है तो गधे जैसा लगने लगता है। आज वैसा ही मुखौटा धारण कर के प्रकट हुआ और बिना किसी राम-राम दुआ-सलाम के सीधे सवाल किया- ये सपना क्या है?
मुझे लगा कि आज तो राम भरोसे दार्शनिक हुआ जा रहा है सो मैंने भी उसी तरह की थूथर बनाते हुए अपनी छोटी छोटी आँखें और छोटी छोटी कर लीं जिसे मैथिली शरण गुप्त की भाषा में ‘नेत्र निमीलित एक निमेष’ कहा गया है और मीर की भाषा में ‘नीम बाज आँखें’ कहा गया है। जब भी मैं इस दशा को पहुँचता हूं तो मुझे दूसरों की कविताएं याद आने लगती हैं। तुरंत नीरज जी, रामकथा की मंथरा की जिभ्या पर बिराज गयी सरस्वती की तरह आ गये और मैंने सुनाना शुरू किया-
सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों, जागे कच्ची नींद जवानी
सुनते ही रामभरोसे दुर्वासा होगया और किसी विज्ञापित टूथ पेस्ट के माडल की तरह झटके से चेतना में झनझना कर प्रवेश करते हुए चिल्लाया- अबे चुप्प ।
मैं सकते में आ गया।
वह फिर उसी तेज तर्रार स्वर में बोला- मैं सपना चौधरी के बारे में पूछ रहा हूं और तुम दर्शनशास्त्री बनने की कोशिश कर रहे हो। तुम्हारे जैसे लोगों के बारे में ही सरोज जी ने कहा था-
सिर पर लिए वितान फिर रहे हैं
मेघों के मानिन्द घिर रहे हैं
लेकिन ये रीते के रीते हैं
क्योंकि धरा से दूर तिर रहे हैं
मैं एक सकते से निकल ही नहीं पाया था कि दुबारा सकते में आ गया। फिर थोड़ा संयत होकर बोला – अच्छा तो तुम इसी मृत्यु लोक के भरत खण्डे में ही विचर रहे हो! मुझे तुम्हारी सुनिश्चित समय बताने वाली शकल देख कर गलतफहमी हो गयी थी। देखो मुझे महिलाओं में जितनी भी रुचि है, उसे मैं एक भले भारतीय की तरह प्रकट नहीं होने देता। अपनी लम्पटता को छुपा कर रखना ही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है, और यही कारण है किसी ने अभी तक मुझे पाकिस्तान भेजने की बात नहीं की। रही बात सपना चौधरी की सो जितना मैं जानता हूं कि वह हरियाणा की मशहूर डांसर है और नौटंकी के दर्शकों जैसे लोगों के बीच ठुमके लगा कर अपनी युवा देह की लचक को प्रदर्शित करती है। हरियाणा से सटे इलाकों में बेहद लोकप्रिय है।
“इतना तो मुझे भी पता है और मैं भी वे ही अखबार पढता, व वे ही चैनल देखता हूं जिन्हें तुम देखते हो, पर मैं जानना चाह रहा था कि राजनीति में इसका क्या योगदान है या क्या भूमिका है?”
खुद को ज्ञानी मानने की भूमिका में आते ही मैं सकते से बाहर निकला और किसी पढे लिखे बुद्धिजीवी की तरह बोला - “ अभिनय और नृत्य कला से जनित लोकप्रियता को कार्पोरेट पोषित राजनीतिक दलों की जन विरोधी नीतियों के बाबजूद मतदाताओं की भावनाओं को सहला कर वोट झटक लेने की जो भूमिका पिछले अनेक सालों से वैजयंती माला, हेमा मालिनी, जयाप्रदा, रेखा और  जया बच्चन, किरण खेर, दीपिका चिखलिया, स्मृति ईरानी आदि निभाती आ रही हैं, उसी विधा का पेपरबैक संस्करण सपना चौधरी हैं।“ 
“ पर ये महिला बिना चुनाव जीते ही राजनीतिक दल बदल रही है और ये दल कितने दीवालिया हो चुके हैं कि उसे अपना सदस्य बताने और उम्मीदवार बनाने की होड़ लगाये हुए हैं, दूसरी ओर इनके अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार, जैसे लोग टकटकी लगाये टिकिट टपकने की आस में टाप रहे हैं। ये क्या हो रहा है?”
मैं पुनः दार्शनिक सा होते हुए बोला – रामभरोसे तुम्हारा यह लोकतंत्र भी तो एक सपना है, देखते रहो। बहरहाल जयाप्रदा को भाजपा में शामिल होने के पाँच घंटे के अन्दर ही टिकिट देने पर एक शे’र याद आ रहा है –
जब मिली आँख, होश खो बैठे
कितने हाजिरजबाब हैं वे लोग
       

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