शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

व्यंग्य मैकेनिक की मुसीबत

व्यंग्य
मैकेनिक की मुसीबत
दर्शक
जब बच्चे खिलौनों के अभाव में छोटी मोटी मशीनों से खेलते दिखते हैं तो बुजुर्ग लोग बहुत शान से - होन हार बिरवान के होत चीकने पात - कहते हुए फर्माते हैं कि देखना बड़ा होकर इंजीनियर बनेगा। पर जब वही बच्चा किसी उपयोग में आने वाली मशीन को खोल कर बैठ जाता है और वह उस मशीन को दुबारा वैसी ही अच्छी या खराब अवस्था में फिर से फिट करने में असमर्थ हो जाता है तब बड़े उसकी मरम्मत करते हैं- मशीन की नहीं बच्चे की। क्योंकि सच तो यह होता है कि बड़ों को भी उसे दुबारा वैसी ही फिट करना नहीं आता। यह मगर का बच्चा पकड़ना तो है नहीं कि दुबारा पानी में छोड़ दिया।
नरेन्द्र मोदी भी वैसे ही किसी बच्चे की तरह विमुद्रीकरण की मशीन खोल कर बैठ गये हैं , और अब उन्हें दुबारा फिट करना नहीं आ रहा। बच्चे तो अपनी गलती मान लेते हैं पर बड़ों में यह उदारता नहीं होती, वे जो गलती करते हैं उस पर डटे रहते हैं, व इसी क्रम में नई गलतियां करते हैं। मोदी के पास एक फौज है जो उनकी गलतियों की ढीठता पूर्वक रक्षा करती है किंतु दिल्ली और बिहार में उनकी भी मरम्मत हो चुकी है और अब नई परीक्षाएं सामने हैं।
बुन्देली में एक कहावत है कि बिच्छू का मंत्र नहीं पता पर साँप के बिल में हाथ डालते फिरते हैं। लोक कथा के उस लालची बन्दर जैसी हालत हो गयी है जिसने सँकरे मुँह वाले चने के घड़े में हाथ डाल कर मुट्ठी तो बाँध ली है पर न तो बँधी हुई मुट्ठी निकल पा रही है और न ही लालच के कारण चने छोड़े जा रहे हैं। घड़ा भी गाड़ कर रखा हुआ है।
दूसरी ओर जिन्हें अपना समझे बैठे हैं वे भी – सुख के सब साथी, दुख में न कोय – हुये जा रहे हैं। जिन सुब्रम्यम स्वामी को कोट के बटन की तरह टाँक कर गर्वोन्मत थे वे ही गले की फाँस बन गये हैं। उन्हें वित्त मंत्री बनाने का वादा किया गया था, और वादाखिलाफी उन्हें मंजूर नहीं इसलिए वित्तमंत्री जैटली के बहाने मोदी को निबटाने में लगे हैं। जब उन्होंने जय ललिता, अटल बिहारी, राजीव गाँधी, आदि का साथ देर तक नहीं निभाया तो अब कैसे निभा सकते हैं। उनका साफ कहना है कि
दोस्ती हो तो मेरे तौर पै हो / बरना ये मेहरबानी किसी और पै हो
सिद्धू पंजाब में फेमिली पैकेज लेकर छोड़ कर चले गये। पहले वे आप में जाने वाले थे, पर फिर इरादा बदल लिया और काँग्रेस में चले गये। जब घर से बाहर ही निकल लिये तो काशी क्या और मथुरा क्या! जो गाड़ी सामने आई उसी में बैठ गये – परदेश परदेश सब बराबर। हाँ शत्रुघ्न सिन्हा ने जरूर –तू चल मैं आया – की तरह पहले अपनी पत्नी को आप में भेज दिया, व खुद अर्थशास्त्री बन कर बयान जारी करते फिर रहे हैं। कीर्ति आज़ाद जरूर रणनीतिक रूप से चुप हैं,  शायद ! ।
...... बिल्ली की घात है, समय पर, कर देगी चीख कर चढाई।
कुछ दिन की और है दुहाई, फिर तो छिड़ जायेगी लड़ाई
पहले महाजोट वाली दीदी तीस्ता समझौते के लिए खुद ही अपना रास्ता बदल चुकी थीं, पर अब बिफरी हुयी हैं, उनकी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें! कभी अरविन्द केजरीवाल के साथ प्रैस कांफ्रेंस करती हैं तो कभी राहुल गाँधी के साथ सामने आती हैं। चिट फंड उनकी पार्टी से ऐसा चिपट गया है कि पीछा छुड़ाये नहीं छूटता। वे चित्रकला भूल गयी हैं और करोड़ों में बिकने वाली उनकी पेंटिग्स बनना बन्द हो गयी हैं।

बहरहाल, मशीन खुल चुकी है पुर्जे बिखरते जा रहे हैं, लगता है कि अब तो मैकेनिक को भी मुसीबत लग सकती है क्योंकि हर पुरानी मशीन के पुर्जे भी कहाँ मिलते हैं। मार्गदर्शक मण्डल के पास भी नहीं।   

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