बुधवार, 2 जनवरी 2019

व्यंग्य नये साल का नया जाल


व्यंग्य
नये साल का नया जाल
दर्शक
मुझे इस साल नये साल की शुभकामनाएं देने की जरूरत कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही है, वैसे इससे कुछ होने जाने वाला नहीं है। जरूरत ज्यादा इसलिए महसूस हो रही है क्योंकि पिछला इतना गया गुजरा बीता कि निकट के अनेक लोगों को खोया। और जब डर लगने लगता है तो आदमी या तो प्रार्थना करने लगता है या दुआएं देने लगता है। परसाई जी कह गये हैं कि आदमी इतना चतुर है कि रास्ते में लुट जाने पर दान का मंत्र पढने लगता है। एक कहावत में कहा गया है कि फिसल पड़े तो हर हर गंगे। पर क्या करें – रस्मे दुनिया भी है मौका भी है दस्तूर भी है।
पिछला साल कुछ इस तरह गुजरा कि बकौल एक शायर –
जिन जिन को था ये इश्क का आज़ार, मर गये
अक्सर हमारे साथ के बीमार मर गये
या किसी ने कहा है कि –
मरने वाले तो खैर बेवश हैं, जीने वाले कमाल करते हैं
वैसे तो कबीरदास काशी को छोड़, जिद के साथ मगहर में जाकर मरे थे, पर कह गये थे कि
हम न मरिहें, मरिहै संसारा। हमको मिला जियावन हारा
अगर जीने का कोई सार्थक कारण मिल जाये या जियावन हारा लक्ष्य मिल जाये तो मौत का डर खत्म हो जाता है। उसी काशी में ही धूमिल ने कहा है-
अगर जिन्दा रहने के पीछे
कोई सही तर्क नहीं है
तो रामनामी ओढने और रंडियों की दलाली में
कोई फर्क नहीं है
मुकुट बिहारी सरोज कहते थे-
जिसने चाहा पी डाले सागर के सागर
जिसने चाहा घर बुलवाये चाँद सितारे
कहने वाले तो कहते हैं बात यहाँ तक
मौत मर गयी थी जीवन के डर के मारे ।
इस वर्ष ऐसे बहुत सारे लोगों को खोया है जिनकी पहचान से अपनी पहचान बनाने का सुख मिलता रहा। बहरहाल जिन नीरज जी का इस साल निधन हुआ, उन्होंने ही लिखा था-
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
इस नये साल के कई जाल हैं जो फैलाये जायेंगे क्योंकि इस साल हमारे स्वातांत्रोत्तर काल का सबसे खतरनाक शासक अपनी सत्ता बचाने के लिए जाल फैला रहा है। उस जाल में चारा भी भरपूर डाला जायेगा। हालात राजेश जोशी की कविता की पंक्ति में पहले ही संभावना के रूप में आ चुकी है कि “जो असहमत हैं, मारे जायेंगे” । किंतु ‘एक चिड़िया, अनेक चिड़िया’ वाले गीत की तरह अनेक चिड़ियां जाल लेकर भी उड़ सकती हैं। आमीन।
हम तो अपनी औकात के अनुसार यही कामना करते हैं कि –
पैट्रोल डीजल की दर भी और ना चढे
नये वर्ष में अनियोजित परिवार ना बढे
नये वर्ष में कम मच्छर हों कम खटमल हों
नये वर्ष में रोज आपके नल में जल हो
नये वर्ष में रोज नियम से बिजली आये
घी में पाचों उंगली हों घी असली आये
नये वर्ष में अधिक पेट पर वेट न आये
नये वर्ष में ट्रेन आपकी लेट न आये
शेयरवालों के शेयर के रेट ना गिरें
बातचीत में मोबाइल का नेट ना गिरे
बीमारी में अस्पताल पर ताला न हो
और डाक्टर नोट बनाने वाला न हो
नये वर्ष में जमे जगत में धाक आपकी
नये वर्ष में रहे सलामत साख आपकी
नये वर्ष में संवादों की धार न टूटे
नये वर्ष में मिले नियम से डाक आपकी


 

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