मंगलवार, 2 जनवरी 2018

व्यंग्य लाल बुझक्कड़ों के हाथों में जिन्दगी

व्यंग्य
लाल बुझक्कड़ों के हाथों में जिन्दगी
दर्शक
मोदी जनता पार्टी की सरकार आने के बाद कम से कम एक चमत्कार तो हुआ ही है, जिसके प्रभाव में स्वास्थ विभाग के सारे डाक्टर और कर्मचारी बेकार हो जाने वाले हैं। वह तो गनीमत समझो कि इस रहस्य का पता चलते ही हमारे आर्कमडीज दिगम्बर अवस्था में बाथरूम से यूरेका यूरेका चिल्लाते हुए नहीं भागे, शायद इस का कारण यह रहा हो कि वे बाथरूम में तब ही होते हों जब उनके किसी ऐसे समर्थक का फोन आया हो जिससे वे न “हाँ” कर पा रहे हों और ना “ना”। वे नहाते जरूर हैं किंतु उस दिन नहाते हैं जब सूर्य या चन्द्र ग्रहण पड़ता है और उसके प्रभाव से मुक्त होने के लिए लाखों वोटर नहा रहे होते हैं। वोटरों को पता लगना चाहिए कि उनका नेता पर्व के दिन पवित्र नदी में स्नान भी करता है। चूंकि नदी मैली हो चुकी है इसलिए वे उस दिन वहाँ से लौट कर घर में नहाते हैं।
बहरहाल मुद्दे की बात यह है कि असम राज्य के एक मंत्री, जो दुर्भाग्य से राज्य के स्वास्थमंत्री भी हैं, के ज्ञानचक्षु खुल गये और उनको दिव्यज्ञान हुआ कि कैंसर आदि रोगों की जड़ कहाँ हैं। यह ज्ञान उन्हें गीता पढ कर हुआ बताया गया है। वैसे गीता तो सैकड़ों सालों से हजारों लोग पढ रहे हैं या उस पर हाथ रख कर अदालतों में झूठी कसमें खा रहे हैं, पर किसी को यह दिव्यज्ञान नहीं हुआ इसे ही भाग्य की बात कहते हैं। मंत्रीजी ने बताया कि कैंसर आदि तो पिछले जन्मों के पाप का फल है। जब पिछले जन्मों के पाप का फल है तो उसका कोई उपचार नहीं, क्योंकि आप पिछले जन्म में वापिस जाकर भूल चूक को सुधार कर लेनी देनी भी नहीं कर सकते। गीता में यह भी कहा गया है कि कर्म किये जाओ फल की चिंता मत करो। कच्चा, सड़ा, कीड़ा लगा, कैसा भी फल मिले उसकी चिंता किये बिना आप को खाना ही पड़ेगा।
ऐसे ज्ञान की बात सुन कर राम भरोसे ने फिर से तम्बाखू खाना शुरू कर दिया, सिगरेट धौंकने लगा और हुक्का लौंज में जाने लगा क्योंकि इस जन्म में तो ऐसा कुछ होने से रहा, अगर पिछले जन्म में कुछ उल्टा सीधा किया होगा तब ही इस जन्म में कैंसर जैसी बीमारी होगी, जिसे कोई माई का लाल रोक ही नहीं सकता। उसे छुन्नन गुरू की वह बात याद आ गयी जब वे भाँग घौंटने और छानने के बाद कहा करते थे-
छान छान
किसी की मत मान
जब निकल जायेगी जान
तब कौन कहेगा छान
असम के मंत्री का इसमें कोई दोष नहीं है, वह तो अपनी परम्परा का अनुसरण कर रहा है। जब से वह मोदी की शरण में आया है तब से उसने मोदी में वह स्वरूप देखना शुरू कर दिया है जो कहता है कि ‘ सर्व धर्म परित्याज, मामेकं शरणं ब्रज’। उसने जब देखा कि उसके गुरू असपताल का उद्घाटन करते हुए हिन्दुस्तान की महान शल्य चिकित्सा का उदाहरण गणेशजी के सिर के ट्रांसप्लेंटेशन में पाते हैं तो पिछले जन्म के पापों की सजा इस जन्म में बता देने से सरकार सारी जिम्मेवारियों से मुक्त हो जाती है। सरकार प्राकृतिक न्याय में दखल नहीं दे सकती। जो पाप किये हैं उनकी सजा सबको भुगतना है। डाक्टरों का काम तो केवल झूठ मेडिकल बिलों की पुष्टि करना, फौजदारी में सरकार की सुविधा से प्रमाणपत्र देना व जेल गये नेताओं को बीमारी का प्रमाणपत्र देकर उन्हें विशिष्ट सुविधाएं दिलवाना होता है। बाकी सब तो ऊपर वाले को करना है। वही मेडिकल रिप्रेजंटेटिव्स को भेजता है। मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं सिवाय जिओ की सिम डले मोबाइल के।
अभी तक कैंसर के इलाज का दावा करने वाले लाला रामदेव की प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है जो हनुमान चालीसा की तर्ज पर कहते पाये जाते हैं कि-

और देवता चित्त न धरई/ हनुमतवीर सदा सुख करई।     

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