बुधवार, 17 जून 2015

व्यंग्य नकली डिग्री



व्यंग्य
नकली डिग्री

दर्शक  
बहुत पहले एक घटना सुनी थी।
एक सज्जन को लगा कि शादी के पहले बी.ए. पास तो होना चाहिए, सो उन्होंने शार्ट कट के इस ज़माने में एक नकली डिग्री बनाने वाले से सम्पर्क साधा जो मध्य प्रदेश में हर नगर में मिल जाते हैं। उनकी डिग्री की दम पर उनकी शादी हो गयी, पर दुर्घटना यह हुयी कि उनकी पत्नी एम.ए. निकली। पारम्परिक शादियों में तो पत्नियां लाटरी की तरह निकलती हैं, जैसी निकल आये। कम दहेज होने के कारण उसके पिता ने शादी से पहले उसकी एम.ए. होने वाली छुपा कर रखी थी। बेचारे सच जान कर हीन भावना से ग्रस्त हुये और उन्होंने एम.ए. का फार्म भर दिया। जब उनका फार्म यूनीवर्सिटी पहुँचा तो उनकी नकली डिग्री पकड़ी गयी। बड़ी ले दे हुयी और गिरफ्तार होने की नौबत आ गयी। पर बीमारू राज्यों में पैसे की दम पर सब कुछ हो जाता है, जब फसल अच्छी हो जाती है तो किसान बन्दूक का लाइसेंस लेने के लिए दौड़ पड़ता है, तकि एकाध दुश्मन को निबटा दे। मध्य प्रदेश में हजारों लड़कों ने पैसे की दम पर ही मेडिकल में एडमीशन ले लिया और हजारों इसी दम पर नौकरी कर रहे हैं।
सो वे भी पैसे खर्च कर के बच गये। बचने के बाद वे तुरंत उस व्यक्ति के पास पहुँचे जिसने उन्हें बी.ए. की नकली डिग्री बेची थी और कहने लगे कि तुम्हारी डिग्री किसी काम नहीं आयी, वो तो मैं किसी तरह निकल आया बरना जेल में होता।
डिग्री बेचने वाले शांत स्वर में कहा कि यार तुम्हें एम.ए. का फार्म भरने की क्या जरूरत थी? अरे एम.ए. ही करना था तो जैसे बी.ए. की खरीद ले गये थे वैसे ही एम.ए. की भी ले जाते। हमारे यहाँ तो सभी तरह की बनती हैं।
यह घटना तो यहीं खत्म हो गयी, पर दूसरी घटना आगे जाती है। दिल्ली के विधायक तोमर को जब प्रैक्टिस करनी ही नहीं थी तो डिग्री का बोझ क्यों लिया। मंत्री विधायक बनने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती। महाराष्ट्र के एक भाजपा विधायक ने 2005 के चुनावों के समय खुद को बी.ए. पार्ट-1 बताया था पर 2014 के चुनाव में पाँचवीं पास बताया। कई भगवा भेषधारी तो –मसि कागद छूओ नहीं कलम गही नहिं हाथ – वाले हैं, और ठाठ से मंत्रीगीरी झाड़ रहे हैं। तोमर के कारण से बेचारी स्मृति ईरानी की साँस रुक गयी है। तुम्हारी डिग्री के कारण अरविन्द केजरीवाल को भी समझ में आ गया है कि बिना पुलिस के आन्दोलन तो चलाया जा सकता है पर सरकार नहीं चलायी जा सकती। पुलिस बकौल दुष्यंत कुमार जानती है कि-
इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म हैं
आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फरार
सो किसी को भी कभी भी धरा जा सकता है. बस इंस्पेक्टर मातादीन को ऊपर वालों का इशारा भर चाहिए। तोमर के चक्कर में भारती की आरती भी उतर गयी।
पर अगर पुलिस साथ हो तो कुछ भी करते रहो। गुजरात में एक संस्था ने किसी कार्यक्रम में जशोदा बेन को मुख्य अतिथि बना कर बुला लिया तो दिल्ली से अहमदाबाद तक की पुलिस सतर्क हो गयी। ऐसा दबाव बनाया कि उन्हें कार्यक्रम ही स्थगित करना पड़ा। पुलिस साथ हो तो पत्नियों की पीड़ा के अर्थ भी बदल जाते हैं। यूपी की पुलिस ने तो मंत्री के खिलाफ लिखने वाले पत्रकार को ज़िन्दा ही जला दिया। उसके दूसरे पत्रकार साथियों में से ज्यादातर सरकार के आगे कटोरा लेकर विज्ञापन के लिए खड़े हो गये। जब सरकार फँसती है तो खैरात ज्यादा बँटती है।            

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