रविवार, 30 जुलाई 2017

व्यंग्य राष्ट्रपति स्वयंवर

व्यंग्य
राष्ट्रपति स्वयंवर
दर्शक
जो लोग पिछले जमाने के गौरव का बखान करने में ही अपना ये जमाना बरबाद करने पर तुले हैं, वे भी पुराने समय के स्वयंवर की ज्यादा बात नहीं करते जिसमें लड़कियों को वालिग होने का प्रमाणपत्र दिखाये बिना ही अपना पति चुनने का अधिकार था, और इस काम के लिए उन्हें घर से भागने की जरूरत नहीं थी अपितु उनके पूज्य पिता खुद ही गाजे बाजे के साथ स्वयंवर का आयोजन करते थे। अब हाल यह है कि राजस्थान में लड़की द्वारा चुने हुए पति को उसके माँ बाप ने पीट कर मार डाला और उसकी माँ थाने पर जाकर कहती है कि उसे इसका कोई दुख नहीं है। ऐसे समाज का निर्माण किसने किया है कि बेटी के स्वयं वर चयन से माँ बाप की नाक कटती है किंतु हत्या कर के हवालात की हवा खाने और जेल जाने से कुछ भी नहीं कटता। ऐसा वातावरण बनाने वाले कौन लोग हैं? यह सवाल पूछने पर दोहरे चरित्र के सभी लोग कहते हैं कि मैं नहीं हूं, पर अगर वे नहीं हैं तो ऐसी घटनाओं का विरोध करने वालों के स्वर में स्वर क्यों नहीं मिलाते? जब पनसारे, कलबुर्गी आदि की हत्याएं होती हैं तो उनकी आवाज विरोध में क्यों नहीं उठती। जो तटस्थ हैं समय गिनेगा उनका भी अपराध।
भाषा की दृष्टि से सरकार और संसद दोनों ही स्त्रीलिंग हैं जो पति के चयन का काम स्वयं करती हैं। चाहे वह सभापति हो या राष्ट्रपति हो। यह मौसम राष्ट्रपति के चयन का है। पर जिनका पति चुना जाना है उन जनप्रतिनिधियों से कुछ पूछा ही नहीं गया। एक फिल्म में उत्पल दत्त अपने विशिष्ट अन्दाज में अपनी बेटी से कहते हैं- तुम उससे शादी नहीं कर सकती जिसे तुम चाहती हो, तुम्हें उससे शादी करना होगी जिसे मैं चाहता हूं। राष्ट्रपति का चयन करने से पहले लड़की से पूछा ही नहीं जाता अपितु उससे नाम छुपाया भी जाता है। जब बारात आये तब झरोखे से झाँक कर देख लेना। देश भर से आयी गठबन्धन की सुशील कन्याएं अपने पूज्य पिता के चयनित को पति परमेश्वर का दर्जा देने के लिए सिर झुकाये वरमाला लिए नामांकन अधिकारी के कार्यालय में चली जाती हैं। कभी जौहर महमूद की जोड़ी ही सारे काम कर लेती थी, यहाँ तक कि गोआ को आज़ाद भी करा लेती थी। ऐसी ही जोड़ी आजकल गुजरात से आकर दिल्ली में जम गयी है। यह जोड़ी किसी से पूछने और किसी को बताने की जरूरत नहीं समझती। इमरजैंसी के बारे में कहा जाता है कि जब लोगों से झुकने के लिए कहा गया तो वे लेट गये। ऐसे हालात अब भी आ गये हैं इसलिए इमरजैंसी की विधिवत घोषणा की जरूरत ही नहीं रही। राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन होगा, यह किसी को पता नहीं था। नामांकन के खाली फार्मों पर विधायकों से हस्ताक्षर करा के मंगा लिये गये थे और सभी ने सिर झुका कर कर भी दिये थे। इन्दिरा गाँधी के समय में अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि ये राष्ट्रपति इन्दिराजी के यहाँ से आये किसी भी कागज पर आँख मूंद कर दस्तखत कर देते हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि महामहिम उसे पढ तो लिया करो, कहीं ऐसा न हो कि वे आपके स्तीफे पर ही दस्तखत करा लें।
एक मार्गदर्शक मंडल है जो पिछले दिनों रस्ता देखता रहा कि कोई आकर उनसे औपचारिक रूप से ही पूछेगा कि बताइए राष्ट्रपति के रूप में कौन ठीक रहेगा पर वे रास्ते पर आँखें टांके देखते रहे, हर आहट पर खटकते रहे पर मार्ग दर्शन तो क्या दर्शन लेने देने ही कोई नहीं आया। कैफ भोपाली ने लिखा है –
कोई न, कोई न, कोई भी न आया होगा
मेरा दरवाजा हवाओं ने हिलाया होगा
घोषणा हो जाने के बाद उम्मीदवार इस तरह से आये जैसे सभी उम्मीदवार अपने वोटरों के पास आते हैं। नामांकन के बाद जब फोटो सेशन हुआ तो अडवाणी मोदी शाह के पीछे खड़े रहे, ठीक समय पर उम्मीदवार को वोटर का खयाल आ गया और उसने वोटर अडवाणी का लाचार हाथ अपने साथ में खड़ा कर दिया। मुनव्वर राना ने कहा है-
हमारे कुछ गुनाहों की सजा भी साथ चलती है
कि हम तनहा नहीं चलते, दवा भी साथ चलती है

     

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