शनिवार, 18 जुलाई 2015

व्यंग्य मौनी बाबा के प्रवक्ता और सत्य की दुनिया



व्यंग्य
मौनी बाबा के प्रवक्ता और सत्य की दुनिया

दर्शक 

जंगल में रहने वाले एक बाबा को मौनी बाबा के नाम से जाना जाता था। जब बात करने के लिए कोई न हो तो सारे बाबा ही मौनी बाबा हो जाते हैं। वे मन ही मन, मन की बात करने लगते हैं। राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त कह गये हैं-
कोई पास न रहने पर भी जन मन मौन नहीं रहता
आप आप की सुनता है वह, आप आप से है कहता
सो उन बाबा ने मौनी बाबा कहलाने के लिए एक स्लेट पैसिल पास में रख ली थी और अगर भूले भटके कभी कोई आ जाता तो उसकी बात का उत्तर लिख कर दे देते। उनने किस से प्रेरणा ली थी यह तो पता नहीं चलता किंतु ऐसे ही निरुत्तर बाबा बनने के लिए काका हाथरसी ने प्रेरणा देते हुए लिखा है-
घेर कर कुछ शिष्य तुम उनके गुरू बन जाइये
फिर मजे से मालपूआ और खीर उड़ाइए
तर्क करने के लिए आ जाये कोई सामने
पोल खुल जायेगी, इस भय से लगो मत काँपने
ब्रम्ह क्या है जीव क्या तू कौन है मैं कौन हूँ
स्लेट पर लिख दो- महाशय आजकल मैं मौन हूं  
एक बार जंगल में भटकते भटकते मौनी बाबा के पास राम भरोसे पहुँच गये। उस सुरम्य कुटी पर जब उन्होंने जय घोष किया तो सहसा ऐसा लगा कि टीवी पर प्राइम टाइम की बहस शुरू हो गयी है पर सच यह था कि बाबाजी के कुत्ते भौंकने लगे थे। गनीमत यह थी कि वे जंजीरों से बँधे थे और राम भरोसे यह हिसाब लगाने लगा था कि अगर अलग अलग कुत्ते के काटने की दर से चौदह चौदह इंजेक्शन लगते हों तो पेट में कुल कितने इंजेक्शन लगेंगे? बाबाजी के इशारे पर वे शांत हो गये।
राम भरोसे के प्रत्येक सवाल का उत्तर बाबाजी बहुत शांत भाव से लिख कर दे रहे थे, सो उसका सवाल तो जल्दी हो जाता था किंतु बाबाजी का उत्तर लिखने के कारण समय लेता था। राम भरोसे ने पूछा – आप अपने श्वानों को पुकारते समय तो बोलते होंगे?
बाबाजी ने लिखा- नहीं
तो फिर उन्हें कैसे बुलाते हैं?
बाबाजी ने तालियां बजायीं और तीनों कुत्ते जंजीर तोड़ने के अन्दाज में कसमसाने लगे।
रामभरोसे ने पूछा- फिर तो इनका कोई नाम भी नहीं रखा होगा?
बाबाजी ने लिखा- नही! नाम तो रखा है
क्या? राम भरोसे ने पूछा
प्रवक्ता नं, 1, प्रवक्ता नं 2, प्रवक्ता नं 3, - बाबाजी ने लिखा।
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नये हरिश्चन्द्र
वे झूठ नहीं बोलते थे,
क्योंकि उन्होंने मौन धारण कर लिया था।
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कुछ बाबा सचमुच सच बोलते थे और मुखर होकर बोलते थे। सब मानते है कि रामनाम सत्य है, वे भी मानते थे और उसका उद्घोष भी करते थे। अक्सर ही शिशु जन्म या विवाह संस्कारों के अवसर पर वे यह सत्य बोल देते थे और पिटते पिटते बचते थे। उनकी समझ में नहीं आता था कि क्या सत्य काल और स्थान के अनुसार बदल भी सकता है? यह नाम मौत के अवसर पर ही सत्य होकर कैसे रह सकता है और विवाह संस्कार के अवसर पर झूठ कैसे हो जाता है! इसी तरह उन्होंने जो आया है सो जायेगा चाहे रेल में हो या जेल में जैसा सुभाषित बोलकर अपना बिस्तर गोल करने के इंतजाम कर लिये थे।
एक बाबा जेल में रह कर भी चाहते हैं कि उनके अलावा कोई सत्य नहीं बोले और जो अदालत में गवाही देने जाता है उसे गीता आदि पर हाथ रख कर सच बोलना पड़ता है सो वे उनके स्वर्ग का आरक्षण करवा देते हैं कि जो कुछ भी बोलना हो सो वहाँ जाकर बोलना।  
परमपिता के बाबा रूपी प्रवक्ताओं के कारण सारी दुनिया परेशान है। 

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