शनिवार, 25 अगस्त 2018

व्यंग्य सलाहकार का स्तीफा


व्यंग्य
सलाहकार का स्तीफा
दर्शक
मैंने अखबार से हवा करते हुए राम भरोसे से पूछा- यार पानी कब बरसेगा!
वह मुँह में दही जमाये बैठा रहा, जैसे उसके होंठ चिपक गये हों।
‘क्या हुआ आज क्या मौनव्रत है? मेरे मनमोहन” मैंने उसे छेड़ा
‘नहीं, मैंने सलाह देना बन्द कर दिया है’ वह मुँह फेर कर बोला
‘अरे ऐसा जुल्म न करो, तुम्हारी सलाह पर तो ये दुनिया चल रही है बरना न जाने किधर भटक जाती। जब तुम्हीं चले परदेश, लगा कर ठेस ओ प्रीतम प्यारा, दुनिया में कौन हमारा। ‘ मैंने एक भजन के बोलों को भजन की तरह ही गाने की असफल कोशिश की।
‘ तुम कुछ भी कह लो पर ये सलाह वलाह बहुत हो गयी, मेरी भी पारिवारिक जिम्मेवारियां हैं, जिन्हें निभाना है”
मुझे लगा कि वह देश के आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रम्यन की तरह बात कर रहा है। उनकी भी कुछ पारिवारिक जिम्मेवारियां थीं सो वे मोदी सरकार को अधर में छोड़ कर चले गये। ‘ये ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहि नाच नचायो’ ।
ये पारिवारिक जिम्मेवारियां भी अब अर्थशास्त्रियों को बहुत आने लगी हैं। हर चीज का समय होता है। बबलू की मम्मी को एक खास समय में याद आता है कि बाजार में कैरी आने लगी है सो उसका अचार डाल लेने का यही सही समय है। मुन्नी को अच्छे स्कूल में एडमीशन कराना है। प्याज चार रुपये किलो बिक रही है सो दस बीस किलो ले के डाल लो बरना तो प्याज के भाव पर तो सरकारें पलट जाती रही हैं। कहाँ सरकार की आर्थिक सलाहकारी ढोते रहें। सरकार भी ऐसी कि न कुछ जानती है न मानती है। तुलसी बाबा पहले ही प्रशंसा में कह गये हैं कि – सबसे भाले मूढ, जिन्हें न व्यापे जगत गति।
रिजर्व बैंक के गवर्नर राजन को भी पारिवारिक जिम्मेवारियां याद आ गयी होंगीं सो उन्होंने भी कह दिया कि सम्हालो अपना बही खाता और अमितशाह की को-आपरेटिव बैंक के किसी मैनेजर को सम्हलवा दो हमसे नहीं होगा। यही बात नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविन्द पनगढिया को याद आ गयी होगी सो उन्होंने भी छाता उठा कर जूते पहने और जयराम जी की करते हुए निकल लिये। मोदी जी की कुण्डली में जरूर यह लिखा होगा कि अरविन्द नाम के लोगों से दूरी बनाये रखना।
वैसे पता नहीं ये अर्थशास्त्री अपना पद और जिम्मेवारियां छोड़ के जाने के लिए परिवार को क्यों बीच में लाते हैं! मोदी जी ने तो बीच में लाने के झंझट से बचने के लिए परिवार ही छोड़ दिया था पर इसके बाद भी वे कहते हैं कि मैं तो फकीर आदमी हूं अपना झोला उठाऊंगा और चल दूंगा। ऐसे में तो शत्रुघ्न से शत्रु बन चुके शत्रुघ्न सिंहा की फिल्म का गाना गाने के लिए ही उनके मोदी मोदी कहने वाले भक्त रह जायेंगे कि- हमें इस हाल में किसके..... सहारे ... छोड़ जाते हो!  
ये रामभरोसे भी पट्ठा हमेशा ऊंचे लोगों की नकल करता है, डर लगता है कि कहीं अपनी पत्नी के बारे में यह न कह दे कि इससे तो मेरी शादी ही नहीं हुयी थी। पूछेंगे तो बड़के बड़के लोगों के बयानों का उदाहरण देने लगेगा। कल के दिन मुरली मनोहर जोशी की तर्ज पर यह न कह दे कि कोरी कापी पर नम्बर कैसे। यह तो कांग्रेस की भाषा हुयी जो कहती है कि इन्होंने कुछ भी नहीं किया केवल हमारे द्वारा शुरू किये गये कामों का उद्घाटन भर किया है। वे भी यह नहीं बताते कि अच्छे अच्छे काम यूपीए के किस घटक की सलाह पर हुये थे।
अचानक कमल हातवी का शे’र याद आ गया है-
अरे ये काफिले वालो अगर रहबर नहीं बदला
तो फिर शिकवा न करना मील का पत्थर नहीं बदला      

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें