शनिवार, 25 अगस्त 2018

व्यंग्य फिजीकल फिटनैस


व्यंग्य
फिजीकल फिटनैस
दर्शक
         “फिट होने का क्या मतलब होता है?” सवाल राम भरोसे का था इसलिए उसका पेचीदा होना जरूरी था, और पेचीदा सवाल का सीधा सीधा उत्तर हो ही नहीं सकता।
“ फिट होने का मतलब होता है किसी बने बनाये सांचे में ठीक तरह से समाने के लिए, समाने वाली वस्तु को घटाना-बढाना” मैंने अपने तईं सरल सा उत्तर देने का भरपूर प्रयास किया।
“इसका मतलब सांचा महत्वपूर्ण है, जड़ है, ठोस है, और उसमें समाने के लिए तैयार वस्तु कम महत्वपूर्ण है। यदि हम बाज़ार से एक लीटर दूध लाते हैं तो उसको नापने वाला लीटर दूध से ज्यादा महत्वपूर्ण है……” राम भरोसे बोला।
मैं अचकचा गया और भूल चुके कर्ता, क्रिया. कर्म, विशेषण आदि याद करने लगा पर जब नहीं याद आये तो उससे कहा महाराज आप सीधे सीधे बात क्यों नहीं करते। अपनी बात कहने के लिए तरह तरह के सवाल क्यों पूछते हो, असली बात पर आइए।
वह आ गया।    बोला ये जो फिजीकल फिटनैस होती है इसका सांचा पैंट शर्ट होगी जिसमें समो जाने पर आदमी फिट माना जाता है। पर जब हम बाज़ार जाते थे तब सेल में बिक रही शर्ट को पहिन कर देखते थे और साथ गये दोस्त से पूछते थे कि फिट तो आ रही है न,! उसकी हाँ सुन कर ही उसका रेट देखते थे और फिर अपनी जेब देखते थे। जब सारी चीजें फिट होती थीं तब शर्ट खरीद लेते थे। इसमें तो सांचा नहीं देखते थे।
“ इसमें सांचा तुम्हारा बेडौल शरीर होता था, राम भरोसे! और माल शर्ट होती थी।“ मैंने विद्वता बगरायी।
“ अर्थात ये परस्पर बदल सकते हैं, कभी गाड़ी नाव पर, तो कभी नाव गाड़ी पर ! “
उसने मुझे बिलबिचवा दिया, इसलिए अपनी बुद्धिमत्ता के सम्मान की रक्षा में मैंने हाँ कह दी।
“ तो मोदी मंत्रिमण्डल के सदस्य जो फिजीकल फिटनैस - फिजीकल फिटनैस खेल रहे हैं उसमें भी कभी फिटनैस उनके कपड़ों और शरीर के बीच होगी तो कभी कपड़ों के अनुरूप शरीर गढने की कोशिशों के बीच होगी। कभी मंत्री पद के लिए फिट है, कभी पद मंत्री के लिए फिट है जैसे उमा भारती और स्मृति ईरानी के मंत्रिमण्डल का परिवर्तन “ उसने कहा।
“अर्थात?”
“ जैसे गडकरी जी को जब उनकी नाप के कपड़े मिल जायें तो उन्हें फिट माना जायें तो उन्हें फिट माना जाये और जब राज्यवर्धन सिंह के कपड़ों के अनुसार उनकी देह हो जाये तब उन्हें फिट माना जाये। पर गिरिराज सिंह, निरंजन ज्योति आदि को कब फिट माना जायेगा? “
“ उनके मामले में फिजीकल फिटनैस नहीं चलेगी, जब वे मानसिक रूप से फिट होंगे तब फिट माने जायेंगे”
मोदी सरकार के घोषणापत्र में भले ढेर सारी फालतू बातें लिखी हों किंतु सरकार तो मंत्रिमण्डल के सदस्यों द्वारा फिटनैस का चैलेंज स्वीकारने की तैयारी के लिए काम कर रही है। राफेल का सौदा इसीलिए किया ताकि फिजीकली फिट रह सकें। डीजल पैट्रोल के रेट का चैलेंज कोई स्वीकार नहीं कर रहा। बेरोजगारों को रोजगार देने का चैलेंज कोई स्वीकार नहीं कर रहा। हर हाथ को काम तो छोड़ दीजिए हर स्कूल को शिक्षक देने का चैलेंज भी कोई स्वीकार नहीं कर रहा। हर गाँव को सड़क और हर घर को पानी देने का चैलेंज भी कोई स्वीकार नहीं कर रहा।
कुछ मंत्री पुश अप करके भले ही फिट होने का वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दें पर सरकार यह न समझे कि वह फिट है। राहत इन्दौरी कहते हैं-
आज जो साहबे मसनद हैं, कल नहीं होंगे
किरायेदार हैं, जाती मकान थोड़े है    
       


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें