सोमवार, 21 मई 2018

व्यंग्य ज्ञान का विस्फोट


व्यंग्य
ज्ञान का विस्फोट
दर्शक
देश में अचानक ही ज्ञान का विस्फोट हो गया है।
इस विस्फोट से ज्ञान का हाल वही हो गया है जैसा कि कभी दिल का हुआ करता था- इस दिल के टुकड़े हजार हुए कुई यहाँ गिरा, कुई वहाँ गिरा। आधे अधूरे, टूटे फूटे, झूठे अधझूठे ग्यान के टुकड़े बिखरे पड़े हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि ज्ञान का विप्लव होने लगा है। जबसे विप्लव देव त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बने हैं तब से रोज कोई न कोई ज्ञान की किरिच किसी न किसी को चुभ ही जाती है। धन्य हैं वे काँग्रेसी जो पहले तृणमूली हुये और फिर बिना किसी सौदे के उनका ह्रदय परिवर्तित हुआ और वे एकात्म मानववाद से प्रभावित होकर भाजपाई बन गये। बिना पैसा खर्च किये चुनाव लड़ा और विजय श्री प्राप्त कर के बिना लेन देन के हाई कमान थोपित उम्मीदवार श्री विप्लव देव की प्रतिभा से परिचित हुए और उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में सिर माथे पर बिठा लिया। अब चुपचाप उसकी सब बातें सहन कर रहे हैं।
बस एक ही बौड़म काफी था इस देश को चौपट करने को
हर शाख पै बौड़म बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा?
बात कर्नाटक में चुनाव प्रचार की है। उन्हें अपने भाषणों में मतदाताओं को सम्बोधित करते समय हूंका भराने का शौक है। ऐसी ही एक सभा में जहाँ हिन्दी जानने वाले लोग सीमित संख्या में हैं वे तम्बाखू की धूल उड़ाते समय एक हथेली पर दूसरी हथेली मारने वाले अन्दाज में सवाल पूछ रहे थे कि – बहिनो और भाइयो इस देश को बरबाद किसने किया। मैं फिर पूछ रहा हूं कि इस देश को बर्बाद किसने किया, जानते हो किसने किया?
कन्नड़भाषी जनता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था सो वह चिल्लाती रही- मोदी, मोदी , मोदी , मोदी, मोदी।
कश्मीर के एक शायर लियाकत ज़ाफरी फर्माते हैं-
हाय अफसोस कि किस तेजी से दुनिया बदली
आज जो सच है, कभी झूठ हुआ करता था
     जिन्हें पता है कि हजार साल पहले जहाँ बाबरी मस्जिद बनी वहाँ क्या था, उन्हें यह पता नहीं कि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किसको क्या और क्यों वापिस किया था। उन्हें पता नहीं कि नब्बे साल पहले जवाहर लाल भगत सिंह से मिलने गये थे अथवा नहीं। बहरहाल वे अयोध्या से जनकपुरी का लिंक मिला रहे हैं, जो अपनी ससुराल नहीं जाते।
उन्हें नहीं याद है कि 1941-42 में हिंदु महासभा मुस्लिम लीग के साथ बंगाल मे फजलुल हक़ सरकार में शामिल थी. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस सरकार में वित्त मंत्री थे, जिन्होंने सरकार के मंत्री के रूप में अंग्रेज सरकार को 26 जुलाई '42 को पत्र लिखकर कहा था कि... "युद्धकाल में ऐसे आंदोलन का दमन कर देना किसी भी सरकार का फ़र्ज़ है."। जिनके पास गाँधी नेहरू की चरण धूलि के बराबर भी ज्ञान नहीं है वे रोज धूल फेंकने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्हें केवल इतना पता है कि अलीगढ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के लिए जमीन राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने दी थी पर यह नहीं पता कि देश की पहली निर्वासित सरकार के अध्यक्ष भी वे ही थे जिनके प्रधानमंत्री बरकत उल्लाह खाँ थे और जो अपनी सरकार के साथ सहयोग जुटाने की अपेक्षा में लेनिन से मिलने मास्को गये थे। उन्हें तो यह भी नहीं पता कि 1957 के आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को बलरामपुर से पराजित करने वाले भी राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ही थे।
पंचतंत्र में गधे द्वारा शेर की खाल ओढ कर शेर होने का भ्रम देने की कहानी आती है, जिसमें यह भ्रम तब तक ही बना रहता है जब तक वह किसी दूसरे हमभाषी का स्वर सुन कर मुँह उठा उत्तर नहीं देने लगता। बोलने पर पता लग जाता है कि शेर की खाल कौन ओढे हुये है।
विज्ञान बताता है कि प्रकृति में बिजली चमकने और बादल गरजने की घटनाएं एक साथ घटती है पर तेज गति के कारण बिजली की चमक पहले दिख जाती है और बादलों की गरज बाद में सुनायी देती है। मतलब यह है कि चमक तभी तक बनी रहती है जब तक कि आप आवाज नहीं सुन लेते।
हमें बादलों की गरज लगातार सुनायी देने लगी है।    


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