सोमवार, 21 मई 2018

व्यंग्य बाबाओं के देश में


व्यंग्य
बाबाओं के देश में
दर्शक
रेडियो मिर्ची पर गाना बज रहा है- जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे .................
यह उस जमाने का गाना है कि जब जोगी या जोगी बने लोग द्वारे तक ही आते थे। अब तो ऐसे जोगी हैं जो खुद लिविंग रूम में घुस जाते हैं और घर के लोगों को द्वारे पर भेज देते हैं। मुखिया का काम न्याय करना होता था इसलिए आज का मुखिया सबसे पहले खुद के लिए विचार करता है। उत्तर प्रदेश के योगी ने न्याय करते हुए सबसे पहले अपने ऊपर चल रहे सभी मुकदमे वापिस ले लिये और फिर मुज़फ्फरनगर जैसे मामलों तक में अपने वालों पर चल रहे मुकदमे वापिस ले लिये। जो पुलिस वालों की पूछ्ताछ पर संसद तक में टसुए बहा कर दिखा रहा था उसके राज में पूरे प्रदेश की जनता धार धार रो रही है।
किंतु, वे कह रहे हैं कि हमने तो पहले ही चिल्ला चिल्ला कर कहा था कि ‘बेटी बचाओ, बेटी बचाओ’ , पर आपने नहीं सुनी तो क्या कर दें जिम्मेवार आप हैं। बसों में लिखा रहता है कि सवारी अपने सामान की रक्षा खुद करें हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं है। पुलिस भी कहती है कि विधायक कुछ भी करे उसके खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखी जा सकती। जिद करने पर आरोपी पुलिस थाने में ही इतना पिटवाता है कि आदमी मर जाता है। मर जाने पर उस पढे लिखे आदमी का अंगूठा खाली कागजों पर लगवा लिया जाता है। अरे जब मुखिया के पास पुलिस है और उसके हथियारों में गोलियां हैं तो अदालतों की क्या जरूरत, कर दो एनकाउंटर। दोषी मरे या निर्दोष, इंस्पेक्टर मातादीन कह ही गये हैं कि सब में एक ही परमात्मा का बास है सो अंततः मरना परमात्मा को ही है, फिर देह का आधार नम्बर कया देखना। सब आधार नम्बर एक दिन चित्रगुप्त के खातों से लिंक होने हैं।  
लोकतंत्र के खिलाफ भाजपा बाबा कार्ड चलाने में भाजपा का कोई सानी नहीं है। अपने जनसंघ रूप में उसने गौ रक्षा के नाम पर 1967 में संसद पर बाबाओं से हमला करवा दिया था जो लम्बे लम्बे चिमटे लेकर संसद भवन में घुसने जा रहे थे और मजबूरन उन गृहमंत्री गुलजारी लाल नन्दा की पुलिस को गोली चलवना पड़ी थी, जो बाबाओं का बड़ा सम्मान करते थे। मध्यप्रदेश में जब प्रबन्धन के सहारे चुनाव जीतने की घोषणा करने वाले दिग्विजय सिंह के मुकाबले भाजपा को कोई उपाय नहीं दिखा था तो उन्होंने बाबा कार्ड चल कर साध्वी भेष में रहने वाली उमा भारती को दाँव पर लगा कर देखा। संयोग से पांसे सीधे पड़ गये और भाजपा की सरकार बन गयी। किंतु बाबा तो दाँव लगाने के लिए होते हैं सो उन्हें हटाने के हथकण्डे आजमाये। उनके दुर्भाग्य से कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला उनके पक्ष में नहीं आया इसलिए उन्हें जाना पड़ा।
बाबा रामदेव से गलबहियां कीं तो योगासनों की लोकप्रियता मुफ्त में मिल गयी और बल्ले बल्ले हो गयी। आम चुनाव में तो उमा भारती, साक्षी महाराज, निरंजन ज्योति, चान्द नाथ, जैसे कई बाबाओं ने सदन में संख्या बल में वृद्धि करवायी। हरियाणा में रामरहीम को करोड़ों देकर फिल्में बनवायीं पर मीडिया और अदालतों ने उसे जेल भिजवा दिया। अब रही सही कसर मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पूरी कर दी। नर्मदा यात्रा में बाहर के बाबाओं पर सरकारी धन लुटा कर लोकल वालों को अंगूठा दिखा दिया गया था सो उन्होंने यात्रा में हुए घपलों की जाँच हेतु जन जागरण यात्रा निकालना चाही। सरकार को लगा कि अब तो जाते जाते पोल खुल जायेगी सो उसने बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा दे कर साधना के लिए राजधानी आवंटित कर दी। अब सरकारी गैस्ट हाउस पर धूनियां रमायी जाने लगी हैं। कुछ दिनों में बन्द किये जाने वाले हजारों स्कूलों में यज्ञ हवन होने लगेंगे और अस्पतालों में झाड़ फूंक करने वाले व ज्योतिषी बैठने वाले हैं। जय हो।      

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