सोमवार, 21 मई 2018

व्यंग्य न्यूटन के बाप


व्यंग्य
न्यूटन के बाप
दर्शक
हम ऐसे जगत्गुरू हैं जिसे हमारे अलावा जगत में कोई नहीं जानता, कोई नहीं मानता।
जिसे न मानना हो न माने, हमें कौन सा तर्क करना या तर्क सुनना है। हम तो हैं, सो हैं। बकौल मुकुट बिहारी सरोज – बन्द किवार किये बैठे हैं, अब कोई आये समझाने ।
बात यह हुयी कि बहादुर राजपूतों की धरती राजस्थान के शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी ने उवाचा कि गुर्त्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज न्यूटन ने नहीं की अपितु हमारे ब्रम्हजीत द्वित्तीय ने की थी। अखबार में छपी इस खबर को लेकर रामभरोसे मेरे पास भागा भागा इस तरह आया जैसे कभी आर्कमडीज यूरेका यूरेका चिल्लाता हुआ भागा होगा। गनीमत यह थी कि राम भरोसे आर्कमडीज की तरह दिगम्बर दशा में दृष्टिगोचर नहीं था। बैठने से पहले ही उसने बोलना शुरू कर दिया। कहने लगा तुम तो मानते नहीं हो कि हमारा देश कभी ज्ञान विज्ञान का भण्डार था और आज जो खोजें हो रही हैं वे सब तो हम बहुत पहले कर चुके हैं।
‘ फिर वे खोजें कहाँ चली गयीं? ‘
’ वे तो आक्रांताओं ने नष्ट कर दीं’ वह बोला
‘ तो अब जो खोजें हो रही हैं, वे तो नई हैं, और उनका श्रेय तो उन खोजने वालों को मिलना चाहिए’ मैंने कहा।
‘पर पहले तो हमने खोजी थीं’ वह ढीठता से बोला
‘ चलो मान लिया, पर न तो हम फार्मूले को संरक्षित कर सके, न माडल को, और न यह कह पा रहे हैं कि जो नई खोज हुयी है वह हमारे फार्मूले को चुरा कर हुयी है, तो वह नई खोज हुयी और उसका श्रेय नये खोजने वाले को मिलना चाहिए।
‘ पर पहले तो हमने खोजा था’ वह उसी ढीठता के साथ बोलता गया
‘ अच्छा, एक बात बताओ कि अगर हम इतने पुराने खोजी लाल थे तो हमने और क्या क्या खोजा था ‘
‘बहुत खोजा था, क्या क्या बतायें ?’ वह तर्कहीन ढीठ की तरह ठेलने की कोशिश कर रहा था।
‘ काठ के उल्लू!’  मैंने किंचित क्रोधित होते हुए कहा ‘तुम लोग उसी पर अपना दावा क्यों करने लगते हो जिसे दूसरा कोई खोज लेता है। कोई नई वस्तु तो खोज कर बताओ तो दुनिया का कुछ भला हो। अगर तुमने महाभारत के संजय वाले टेलीविजन की पुनर्खोज कर ली होती तो आज एलजी, सैमसंग के माडल चीन और जापान से तो नहीं मंगाना पड़ते। तुमने जो पुराण कथाओं में पढ लिया उसके आधार पर दावा करने लगे। ऐसा ही दावा करने वाले एक ईसाई सज्जन कह रहे थे कि ईसाई धर्म तो त्रेता में भी था जिसका प्रमाण तुलसीदास की उस पंक्ति में मिलता है जिसमें उन्होंने कहा है – सर समीप गिरिजागृह सोहे।‘
रामभरोसे कुछ सोचते हुए बोला कि एक बात तो मुझे भी समझ में नहीं आती कि ये सारे दिव्य ज्ञान इन भाजपाइयों को ही क्यों प्राप्त होते रहते हैं। अडवाणीजी ने डीसीएम टोयटा को तो रथ का आकार देकर रथयात्रा की भावना में डुबो दिया किंतु रथ में डीसीएम टोयटा की ताकत डलवा कर नहीं हांक सके। ऐसे प्राचीन विज्ञान का क्या फायदा जिसे हम कभी स्तेमाल ही नहीं कर सकें।
‘हाँ अब समझे तुम श्रवण कुमार के बाप’ मैंने कहा
‘ तुमने मुझे श्रवण कुमार का बाप क्यों बोला?’ उसने किंचित क्रोध और किंचित जिज्ञासा के साथ कहा।
‘ इसलिए क्योंकि श्रवण कुमार अपने दृष्टिहीन माँ बाप को ऐसे ही बहला रहा होगा कि चारों धाम के दर्शन करा रहा है। जिन्हें दिखायी ही नहीं देता उन्हें तो किसी भी जगह चारों धाम बताये जा सकते हैं। ऐसे ही तुम हो।‘
‘ यह व्यर्थ की शंका है’ उसने कहा
‘अरे नहीं भाई, अभी शंकराचार्य की पादुकाओं की यात्रा निकली थी, उस दौरान बताया गया कि चारों धाम की स्थापना तो शंकराचार्य ने करवायी थी, फिर ये श्रवण कुमार कहाँ घुमा रहा था ?’
रामभरोसे जैसी तेजी में आया था वैसे ही तेजी से चला गया।    
   

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