सोमवार, 21 मई 2018

व्यंग्य ‘कूट’ नीति का जातिवाद


व्यंग्य
‘कूट’ नीति का जातिवाद
दर्शक
पत्रकारों और पदाधिकारियों का रिश्ता हमेशा से ही तल्ख रहा है। पदाधिकारी हमेशा से ही पत्रकारों की पूजा करते रहे हैं, पहले पत्रम पुष्पम से करने की कोशिश करते हैं और जब वे कम पड़ जाते हैं तो पादुका प्रहार से उनका सम्मान होता है। हमारे कस्बे में भी यह परम्परा रही है जिसमें कोआपरेटिव बैंक, भूमि विकास बैंक, के बाद नेताओं के खाने पीने की जगह केवल नगर पालिका ही बचती थी जिसके कामों की रिपोर्टिंग से ही पत्रकारों का पेट पलता था। पर जब नगरपालिका अध्यक्ष द्वारा तय किये गये लिफाफे से पत्रकारों का पेट नहीं भरता था तब नगरपिता अपने पत्रकार पुत्रों को सुधारने के लिए उनकी ठुकाई- पिटाई की व्यवस्था करता था। पिटाई से पहले गाली देने और धमकी देने की परम्परा है ताकि कलम का सिपाही अगर डर सके तो डर जाये। नगरपालिका में सबसे अधिक कर्मचारी सफाई कर्मचारी होते हैं जो मेहतर जाति से आते हैं। अपनी धमकी को और गहरी करने के लिए नगरपालिका अध्यक्ष कहता था कि – इस साले की समझ में नहीं आया तो इसको मेहतरों से पिटवाऊंगा।
पिटने और मेहतरों से पिटने में गुणात्मक अंतर होता था। सामान्य व्यक्ति से पिटने में तो केवल शारीरिक चोट लगती थी किंतु मेहतरों से पिटने में भावनात्मक चोट भी लगती थी, स्वाभिमान आहत होता था। कई न डरने वाले लोग तो इसी धमकी से डर जाते थे।
हमारे देश के आईएएस आईपीएस अधिकारी भी कुछ इसी तरह के अपमान बोध से ग्रस्त हो गये लगते हैं।
चलिए सीधे विषय पर आते हैं। राम भरोसे जैसे विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि वह पिछले दिनों उस कमरे में रुका हुआ था जिसके बगल में आम आदमी पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी। विषय था पार्टी का विकास। एक सदस्य ने कहा कि वैसे तो हम लोग भी भाजपा और काँग्रेस जैसे ही हैं, नई आर्थिक नीति का विरोध नहीं करते, भ्रष्टाचार के खिलाफ ऊंची ऊंची छोड़ते हैं, मजदूरों किसानों के पक्ष में कोई आन्दोलन नहीं करते और जो कुछ करने का दिखावा करते है, सिर्फ मौखिक करते हैं, फिर भी हमारा वैसा विकास नहीं हो रहा जैसा भाजपा का हो रहा है और उससे निराश होकर काँग्रेस का हो जाता है। सवाल के उत्तर में जवाब आया कि भाजपा कूट नीति का स्तेमाल करती है, हमें भी उसका प्रयोग करना चाहिए।
इस विचार का प्रायोगिक पक्ष यह हुआ कि अगले ही दिन कार्यकारिणी की बैठक बुलवायी गयी और काफी बहस के बाद देर रात प्रदेश के मुख्य सचिव को बुलवाया गया व निर्णयानुसार नीति का प्रयोग करते हुए उन्हें कूट दिया गया। यह बड़ा अपमान था। वैसे तो अधिकारी विभिन्न राज्यों में सत्तारूढ दल के कर कमलों और कमल गट्टों से यह सम्मान प्राप्त करते ही रहते हैं किंतु आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा पिटना तो मेहतरों से पिटना हुआ। इससे पूरे देश के अधिकरियों की भावनाएं आहत हुयीं। जिस पार्टी की एक ऐसे राज्य में सरकार है जिसे पूर्ण राज्य का दर्जा ही प्राप्त नहीं है, उससे पिटना बहुत दुखद है। न जिसके पास अपनी पुलिस है, न नगरनिगम पर उसका नियंत्रण है, न राज्य की भूमि पर उसका कोई अधिकार है उससे पिटना तो दुखद होगा ही। जमींदार से पिटना और उसके कारिंदे से पिटना बराबर कैसे हो सकता है। बिहार में डीएम को पीट पीट कर मार डाला जाता है, भाजपा का मुख्यमंत्री उल्टा लटका देने की धमकी दे तो आत्मा आहत नहीं होती, किसान अगर मन्दसौर में थप्पड़ मार दें तो चुपचाप ट्रान्सफर करा लेते हैं, हरियाना में मंत्री आईपीएस को बाहर निकल जाने को कहता है तो दूसरे आईपीएस दुखी नहीं होते, अगर किसी आईएएस की लड़की को सत्तारूढ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की बेटा अपहरण कर लेता है तो वो उसका व्यक्तिगत मामला होता है, उससे एसोशिएसन को कोई मतलब नहीं रहता, उससे कोई अपमान नहीं होता। किसी आईपीएस को जो एक आईएएस का पति भी होता है को रेत माफिया ट्रैक्टर से कुचल देता है व उसी राज्य के मंत्री का बेटा आरोपियों की वकालत में बैठकें करता है तो न आईएएस दुखी होते हैं, न आईपीएस क्योंकि मामला दिल्ली और आप पार्टी का नहीं होता।
का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात। ब्राम्हण की लात तो हरि भी खा लेते हैं, पर शम्बूक तपस्या भी नहीं कर सकता। एक्लव्य अगर धनुष चलाने में पारंगत भी हो जाये तो उसका अंगूठा काट लिया जाता है। 
       

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