मंगलवार, 3 मई 2016

व्यंग्य लोकतंत्र और प्रशांत किशोर

व्यंग्य
लोकतंत्र और प्रशांत किशोर
दर्शक
राम भरोसे को भी कभी कभी सनक सवार हो जाती है। बोला मुझे चुनाव लड़ना है।
मैंने उसे ठंडा पानी पिलाया, और पूछा- तबियत तो ठीक है?
वह और भड़क गया, जैसे मैंने पानी नहीं पैट्रोल पिला दिया हो। वह यह कह कर जाने लगा कि तुम्हें मेरी कोई भी इच्छा हजम नहीं होती। अब कभी नहीं आऊंगा।
 मैंने उसकी इच्छा पूरी करते हुए उसे रोक लिया और कहा- अरे यार तुम पूरी बात सुने बिना ही रूठने लगते हो, मैं तो आगे पूछना चाहता था कि तुम्हारे पास चुनाव लड़ने के संसाधन हैं?
“हाँ, क्यों नहीं, मेरे पास बहुसंख्यकों का धर्म है, मेरी जाति के लोग ज्यादा हैं, पैसा है जिससे गुंडे, मीडिया, और वोट, सब खरीदे जा सकते हैं। इससे ज्यादा और क्या चाहिए?” वह बोला।
“ चाहिए, चाहिए, अब चुनाव लड़ने के लिए इतने भर से काम नहीं चलता। अब चुनाव लड़ने के लिए एक प्रशांत किशोर की भी जरूरत पड़ती है। लोकतंत्र उस मोड़ पर आ गया है कि जिसके पास प्रशांत किशोर होगा वही चुनाव जीतेगा।“
“ ये प्रशांत किशोर क्या है?” उसका मुँह जिज्ञासा में प्रश्नवाचक चिन्ह बन गया था।
अब मैं सवार हो गया- “ तुम्हें प्रशांत किशोर तक नहीं पता, और चले हो चुनाव लड़ने! पहले अपनी जी के तो करैक्ट करो! अब ये भी मत पूछने लगना कि जी के क्या होती है, जी के का मतलब होता है, जनरल नौलेज। पर तुम भी क्या करो, अंग्रेजी में कहा गया है कि कामन सैंस इज नाट सो कामन! बेटे तुम्हें पता नहीं कि देश भर में जिस तरह ‘फाग’ चल रहा है, उसी तरह चुनावों में प्रशांत किशोर चल रहा है। दल चाहे भाजपा हो या राजद जेडी[यू] गठबन्धन या काँग्रेस ही क्यों न हो सब प्रशांत किशोर के शरणागत हैं। चुनाव चाहे देश के हों या प्रदेश के हों, बिहार के हों या असम के हों, पर अटक से कटक तक, केरल से कन्याकुमारी तक प्रशांत किशोर ही चाहिए। प्रशांत किशोर विचारों की ताकत का उपहास है। प्रशांत किशोर रंग गंध विहीन है, वह निर्मल जल की तरह है। पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लगे उस जैसा, रे पानी............। गाँधी, लोहिया दीनदयाल, प्रशांत किशोर ले गया सबका माल।“ 
 राम भरोसे की चिंता का समय शुरू हो गया अब। वह हुड़ुपचुल्लू जैसा दिखने लगा। पर पीड़ा आनन्द से सराबोर होकर मेरे चेहरे पर प्रसन्नता छा गयी।    
जिस तरह चुनावों की कुंजी प्रशांत किशोरों के हाथ में रहती है उसी तरह मध्य प्रदेश के वर्तमान  मुख्यमंत्री की जान अरविन्द मेननों के हाथों में होती है। केन्द्र को पता होता है कि किसकी गरदन मरोड़ने से कौन चिल्लायेगा। समय आया और मरोड़ दी। ट्रांसफर अरविन्द मेनन का हुआ, पर अपने सारे कार्यक्रम निरस्त करके नागपुर हैडक्वार्टर पर ढोक देने मुख्यमंत्री पहुँच गये। रंगे हुए कपड़े केवल लाभ ही नहीं पहुँचाते, नुकसान भी कर सकते हैं। शंकराचार्य स्वरूपानन्द पहले ही कह गये थे कि यह कुम्भ चाण्डाल योग में हो रहा है जिसमें शासक और शासन को नुकसान की सम्भावना रहती है। जब राम मन्दिर के सहारे चुनावी वैतरणी पार करते अच्छा लगता है तो पागल बाबा, बाल्टीबाबा, पायलट्बाबा, कम्प्यूटर बाबा, साइलेंट बाबा, गोल्डन बाबा, नेपाली बाबा, रुद्राक्ष बाबा, जटाधारी बाबा, बर्फानी बाबा, के श्रापों से कैसे बच सकते हैं। जब साँई की पूजा से सूखा पड़ने का सिद्धांत सामने आने लगता है तो धार्मिक आस्थाओं वाली भीड़ विरोधियों का वोट बैंक नजर आने लगती है। तृप्ति देसाई, और कन्हैया चुनौती देते लगते हैं।
ऐसे माहौल में रामभरोसे बिना प्रशांत किशोर के चुनाव में उतरने की सोच रहा है तो वह उस किसान जैसा क्यों नहीं लगेगा जो अपने खेत के नीम के पेड़ से लटक जाता है।


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