गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

व्यंग्य निशान और निशान साहब

 

व्यंग्य

निशान और निशान साहब

दर्शक

कभी हम लोग नारे लगाते थे-

लाल किले पर लाल निशान

मांग रहा है हिन्दुस्तान

उस दौर के कवि ऐसी ही कविताएं व नारे लिख सकते थे, क्योंकि वे हिन्दुस्तान को इसी तरह का देख रहे थे। दुष्यंत कुमार ने लिखा था-

कल वो मेले में मिला था चीथड़े पहिने हुये

मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है

इतिहास बताता है कि बाद में जनसंघ का तर्पण करने के बाद उसकी राख से एक पार्टी ने जन्म लिया या कहें कि पुनर्जन्म लिया और अपना नाम भाजपा रखा। भाजपा अर्थात भारतीय जनता पार्टी। महापुरुषों से लेकर नाम तक चुराने वाले स्ंगठन ने भारतीय जनसंघ का भारतीय चुराया और 1977 में झाडूमार जीत दर्ज कराने वाली जनता पार्टी से बाकी का हिस्सा लेकर भारतीय जनता पार्टी बन गयी। फिर उसने वामपंथियों का नारा चुरा कर नया नारा गढा-

लाल किले पर कमल निशान

मांग रहा है हिन्दुस्तान

[ हिन्दुस्तान यहाँ भी मांगता ही रहा और निशान का पोस्टर लगाने वाली जगह लाल किला ही रहा]

आते आते 2021 आया तो कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आन्दोलन हुआ, जिसमें पंजाब के सिखों ने केन्द्रीय भूमिका निभायी। किंतु अब हिन्दुस्तान मांगने वाला नहीं था अपितु अपने अधिकार लड़ कर छीनने वाला था। उसके संघर्ष के तरीके भी नये थे इसलिए उसने मनुष्यों के साथ साथ मशीन को भी अपने आन्दोलन का साथी बनाया। अपने लाल झंडे पर कभी हंसिया हथोड़े का प्रतीक चिन्ह बनाने वालों ने ट्रैक्टर रैली निकालने का नया प्रयोग किया। जब खेती के तरीके बदलते हैं तो किसान के संघर्ष के प्रतीक भी बदलेंगे। इस समय सरकार भाजपा की थी जो पीछे की ओर देखने की आदी थी, और इतना पीछे देखती थी कि इतिहास का मुगल काल, उसकी भाषा व उस दौर में विकसित संस्कृति, सबको नकार देना चाह्ती थी। उसे ट्रैक्टर रैली के विचार ने भौंचक्का कर दिया। पहले ही दिल्ली की सीमाओं पर किसान जम चुके थे और वे भिखमंगे नहीं थे। वे सुदामा की तरह अपने तन्दुल की पोटली अर्थात अपना राशन साथ लेकर आये थे व उन्हें डंडे मारने वाले पुलिस वालों को भी पानी पिला कर, कृष्ण सुदामा का दृश्य रच रहे थे।

भाजपा संघर्ष की नहीं षड़यंत्र की राजनीति करने की आदी रही, चाहे दलबदल से सरकारें बनाने की बात हो, या दंगे करा के ध्रुवीकरण कराने की बात हो, भारतीय राजनीति की कालिमा का बड़ा हिस्सा उसी के खाते में आता है। विडम्बना यह थी कि इस बार उनके पसन्दीदा विषय हिन्दू-मुसलमान की जगह सिख आ गये थे जिन्हें वे हिन्दुओं के खाते में डाल कर मन और जन दोनों को बहलाते रहते थे, और जो जरूरत पड़ने पर सबको को लंगर छकाते थे।

‘राम की चिड़ियां, राम के खेत / खा लो चिड़ियां भर भर पेट ।

राष्ट्रीय षड़यंत्रकारी संगठन ने यहाँ भी मार्ग तलाशा और आन्दोलन के बीच से ही एक गद्दार तलाश लिया जो प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, सांसदों से लेकर उनके माँ [सौतेली] और बाप के बगल में बैठ कर् खुद को तोप समझने लगा था। उसने आन्दोलन का सहारा लेकर घुसपैठे के सहारे भीड़ को मार्ग भटका दिया। भूल भुलैयों में भटक कर वे लाल किले पहुंच गये, जहाँ सरकार की पुलिस घरातियों की तरह उनका इंतजार कर रही थी। लाल किले और निशान मांगने के रिश्ते में इस भाजपा के एजेंट ने सिखों का झंडा निशान साहब ही फहरा दिया। इससे उसके एक पंथ दो काज हो गये। किसानों के संघर्ष का झंडा पीछे रह गया और सिख बनाम हिन्दू की पुरानी दरार उभारने का मौका भी मिल गया।

अपनी सरकार बचाने में देश को गर्त में डाल रहे हैं।

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