व्यंग्य
गांधी जी का ठिकाना
दर्शक
अब देश और दुनिया को पता चल रहा है कि भारत देश में जो एक चुनी हुयी सरकार चल
रही है जिसकी एक मंत्रिपरिषद है और उसमें श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमितशाह के
अलावा दूसरे भी सदस्य हैं। अब पता चला है कि सरकार के कृषि मंत्रालय के एक मंत्री
भी हैं और उनका नाम भी नरेन्द्र है, श्री नरेन्द्र सिंह तोमर। एक रेल मंत्री भी हैं
जो कभी बजट प्रस्ताव भी बांच चुके हैं, एक रक्षा मंत्री भी हैं जिन्हें राफेल
विमान पर नींबू मिर्ची बांधने के अलावा और कुछ भी आता है। लोग तो भूल ही गये थे कि
एक प्रकाश जावेडकर भी हैं जिनके नाम के आगे सूचना प्रसारण मंत्री लिखा जाता है।
किंतु न होते हुए भी राष्ट्रपति प्रणाली जैसी सरकार चल रही थी, भारत के
प्रधानमंत्री अमेरिका के प्रेसीडेंट की तरह काम कर रहे थे। बस, मोदी और शाह, शाह
और मोदी। अन्य जिनके नाम के आगे मंत्री लिख दिया गया था वे धन्य तो हो गये थे।
उनकी जिम्मेवारी इतनी भर तय की गयी थी कि विभाग में कोई भूल हो जाने पर वे
उत्तरदायित्व स्वीकार कर लें और दबाव बढने पर स्तीफा दे दें। किसी को मंत्री पद के
लाभ देना होते थे सो गंगा मंत्रालय बना दिया जाता था, राज्यों में गौ कैबिनेट बना
दी जाती थी। पर बुरा हो इन किसानों की जिन्होंने प्रधानमंत्री को बैकफुट पर ला दिया।
प्रधानमंत्री को गंगा के किनारे क्रूज पर तबला बजाना पड़ा और यह उजागर करना पड़ा कि
कोई है जिससे वे अपनी सारी बातें साझा करते हैं।
नये कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलनों की आँच ने जमे जमाये मंत्रिमण्डल को
पिघला दिया। मंत्री नाम के चेहरों को ढाल की तरह आगे कर दिया गया। वे कुम्भकरण की
तरह जाग गये और चिराग घिसने के बाद सामने आये जिन्न की तरह बोलने लगे ‘हुक्म करें
मालिक’। मालिक ने हुक्म दिया कि यह तुम्हारा विभाग है सो किसानों से बात करो।
दूसरा कोई होता तो कहता कि बात तुमने बिगाड़ी है और मैं कैसे सम्हालूं जिसे फैसला
लेने का कोई अधिकार ही नहीं। जब सब फैसले तुम्हीं ले रहे हो तो बात भी तुम्हीं
करो। पर मंत्री पद की सुविधाओं के जारी रहने का सवाल था इसलिए तीन तीन मंत्री मिल
कर भी असफल दर असफल वार्ताएं करते रहे। इसके बाद अमित शाह का प्रवेश होना लाजिमी
था और वे आन्दोलन की कमजोर कड़ियो को बुला भेजते हैं, जो हाथ खड़े कर देते हैं, हम
से नहीं हो पायेगा।
रामभरोसे के सपनों में गांधीजी आये और बोले एक कहानी सुनो। एक आदमी बहुत
आस्तिक था और जैसा कि होता है उसके भगवान ने उसकी परीक्षा लेने की ठानी सो वह इतना
गरीब हो गया कि भूखे मरने की नौबत आ गयी। उसने मन्दिर में जा कर भगवान से मांगा पर
कई दिन तक कुछ भी नहीं मिला। वह अमीर अमीर भक्तों को देख देख कर जलता रहा। उसने तय
किया कि क्यों ना भगवान के इन्हीं भक्तों से मांग लिया जाये। सो वह अन्दर से बाहर आ
कर भीख मांगने लगा। शाम तक बैठा रहा, पर फिर भी कुछ ना मिला। निराश होकर वह
मदिरालय के बाहर भीख मांगने बैठ गया। देर रात में एक आदमी शराब में धुत होकर निकला
तो उसे भीख मांगते देख कर उसने जेब में हाथ डाला और सारे रुपये निकाल कर उसके
कटोरे में डाल दिये और लड़खड़ाता चला गया। वह आदमी ऊपर हाथ उठा कर बोला – भगवान तू
भी बहुत चालाक है, रहता कहीं और है और पता कहीं और का देता है।
“मैं समझा नहीं बापू कि आप इस कहानी से क्या कहना चाहते हैं?” रामभरोसे बोला
बापू बोले जो लोग हमारे नाम पर राजनीति करते हैं वे झूठे हैं मैं तो इन
किसानों के दिलोदिमाग में रहता हूं, जो इतने दिनों से अहिंसक आन्दोलन चला रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें