व्यंग्य
कठिन दुश्मन
दर्शक
देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रसाद सिंह की एक कविता है-
तुम मुझे क्या
खरीदोगे
मैं तो मुफ्त हूं
मुफ्त आदमी को
खरीदना सबसे कठिन काम होता है। दिल्ली घेरे किसान ऐसे ही मुफ्त लोग हैं, वे ऐसे
लोग हैं जिनकी आदत सरकार को नहीं है। वह तो समझती रही है कि अगर कोई विरोध करने
आयेगा तो उसकी जन्मपत्री खोल कर ईडी, सीबीआई, आईडी, एनएसए, नारकोटिक्स किसी न किसी
स्कैम की झलक दिखा कर चुप करा देंगे। अपने पलतू मीडिया से किसी को देशद्रोही बता
देंगे, किसी को खालिस्तानी, पाकिस्तानी, किसी को गद्दार, नक्सलवादी, माओवादी,
टुकड़े टुकड़े गैंग, अफज़ल गैंग, वगैरह वगैरह। किसी को ठंड का दण्ड दे देंगे तो कोई
लू लपट, बरसात से हिम्मत हार जायेगा। जो ऐसे नहीं हारेगा तो उसे लालच के लिजलिजे
लेपन से चिपका लेंगे। आन्दोलन के नेता को सरकारी पार्टी में ले लेंगे, विधायक,
सांसद, मंत्री, कार्पोरेशन के अध्यक्ष, आयोग के सदस्य आदि आदि लपेट देंगे। बिल्कुल
ऐसे जैसे बलगम में मक्खी फंस जाती है।
पर ये तो कर्री बिद गयी है। कोई युक्ति काम नहीं कर रही। इनके समर्थन में
चुनावी पार्टियां तो हैं ही, इनके साथ लाल लाल झंडे वाले भी हैं जो सचमुच में ना
खाते हैं, ना खाने देते हैं। ये ना हिन्दू मुस्लिम के झांसे में आते हैं ना फाइव
स्टार होटल से मंगवाया तुम्हारा लंच खाते हैं। और कभी तुम्हारी चाय भी पीते हैं तो
पहले अपने साथ लाया हुआ खाना तुम्हें खिला देते हैं। हमने तुम्हारी चाय पियी, तो
तुम हमारा नमक खाओ। जनता देख रही है कि तुम नमक खा कर भी धोखा देने से बाज नहीं आ
रहे हो।
इनके मन में
न्यायपालिका का जो सम्मान है सो तुम उसका दुरुपयोग करने में भी नहीं चूके। जाने कब
से कह रहे थे कि न्यायपालिका चले जाओ। किसान नहीं गये। फिर भी मगरमच्छों के आंसुओं
ने जो समितियां बनवायीं उससे समझ में आ गया कि समितियों में न्यायपालिका की
निष्पक्ष भावना वाला कोई नहीं है। तुम समितियां बनवा लो फैसले कर लो चाहे सड़कों को
खोद दो या ठंडे पानी की बौछारें कर दो, वे तो सविनय अवज्ञा करके बैठे हैं, क्योंकि
तुमने बेईमानी से कानून बनवा लिये और जिनके हित में बनवाये हैं, उनके बारे में
लगातार झूठ बोल रहे हो। घोड़े के आगे गाड़ी बाँध रहे हो। किसान भोला और भला हो सकता
है, किंतु मध्यम वर्ग के अन्धभक्तों की तरह मूर्ख नहीं। वो जानता है कि जे एन यू
पर किसने हमला कराया था, सीएए आन्दोलनकारियों के बीच गोली चलाने वाला कहाँ से आया
था।दिल्ली में मुँह बाँधे दंगाई कहाँ से आये थे और मुजफ्फरनगर योगी क्यों गये थे।
पहले उनसे हिंसा कराते हो और फिर कानून के डर से डराते हो।
अब तक 56 लोगों ने अपनी जानें दे दीं और उनके प्रति श्रद्धांजलि देते हुए
दूसरा कोई किसान डरा नहीं। वे निहत्थे हैं, और उनके मुँह से गाली भी नहीं निकल
रहीं। वे तो अपना चूल्हा चौका लेकर बैठे हैं, अपने ट्रैक्टर ट्राली के नीचे अपना
चूल्हा जला कर खा रहे हैं और तुम्हारे पुलिस वालों को भी पानी पिला रहे हैं। तापने
के लिए तुम्हारे किसान बिलों की प्रतियां तो हैं ही।
धरती उनकी माँ है, हेमा नहीं। याद आया कि तुमने पंजाब की माँओं, दादियों के
खिलाफ कंगनाओं को लगा दिया। कृषि कानूनों के पक्ष के लिए हेमा को लगा दिया जिन्हें
बोलना नहीं आता और अभी तक दूसरे के लिखे डायलौग बोलने की आदी रही हैं। वे पंजाब के
आन्दोलनकारियों को कृषि कानून समझा रही हैं। निदा फाजली ने कहा है कि –
कभी कभी यूं ही हमने
अपने दिल को बहलाया है
जिन बातों को खुद
नहिं समझे, औरों को समझाया है
कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलनकारियों के खिलाफ सात सौ सभाएं करने की घोषणा
करने वाले अमित शाह अब खट्टर को समझा रहे हैं कि किसानों के खिलाफ सभाएं नहीं
करें।
जान एलिया का एक शे’र है-
चारासाजों की
चारासाजी से, दर्द बदनाम तो नहीं होगा
तुम दवा दे तो रहे
हो. पर बतलाओ, मुझको आराम तो नहीं होगा
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