व्यंग्य
चौबे छब्बे और दुबे
दर्शक
कहावत पुरानी है।
वैसे भी कोई बात जब पुरानी होने पर भी स्तेमाल होती रहती है, तभी कहावत कहलाती
है। राम भरोसे ने एक बार पूछा था कि लोग कहते हैं कि दो वेदों के ज्ञाता को
द्विवेदी कहा जाता था, तीन के ज्ञाता को त्रिवेदी और चार वेदों के ज्ञाता को
चतुर्वेदी कहा जाता था जो बाद में दुबे और चौबे कहलाने लगे। पर जो केवल एक वेद का
ही ज्ञाता होता था उसे क्या कहते थे?
मैंने धूल में लट्ठ मारा। ऐसे लोग केवल पंजाब में पाये जाते थे और वहाँ जो
वेदी होते हैं वे एक ही वेद के ज्ञाता होते थे इसलिए वेदी कहलाते थे।
राम भरोसे समझ गया कि मैंने तुक्का लगाया है, सो उसने दूसरा सवाल दाग दिया कि
जब दुबे और चौबे दो से चार हो गये तो त्रिवेदी तिबे क्यों नहीं हुये? मैं लाजबाब
हो गया सो बात बदल दी कि अभी बिहार के कुछ नेता चौबे से छब्बे बनने गये थे, पर दुबे
होकर रह गये।
रामभरोसे विषय से भटक कर तुरंत पूछ बैठा कैसे? मैं भी तुरंत बोला अरे भाई दो
महीने तो तुम सुशांत सिंह, सुशांत सिंह सुनते रहे और अब अभिनेत्रियों को ड्रग में
डूबे देख कर सब कुछ भूल गये। पहले भाजपा के गठबन्धन में बंधे नितीश कुमार ने आगामी
विधानसभा चुनावों के लिए सुशांत सिंह की अस्वाभाविक मौत को एक अच्छे मुद्दे की तरह
ऐसे लपका जैसे धोनी कैच लपकता रहा है। उसने सुशांत सिंह जैसे भोले भाले बच्चे को
बिहार का महान सपूत बतलाया और अपने गठबन्धन के सहयोगी की सलाह पर प्रचारित किया कि
बालीवुड के निर्माता निर्देशकों ने भाई भतीजावाद फैला कर इस महान कलाकार को मौका
ही नहीं दिया क्योंकि सब के सब मुसलमानों का कब्जा है। और इसी निराशा में उसने मौत
को गले लगा लिया। फिर लगा कि मुम्बई की पुलिस तो जाँच में इसकी कलई खोल देगी सो
उसके हाथ से केस ले लेने के लिए उसके पिता से बिहार में रिपोर्ट करायी कि उसकी मौत
सन्दिग्ध है और मुम्बई की पुलिस जाँच में इसलिए गड़बड़ कर रही है कि भाजपा के पुराने
सहयोगी शिवसेना के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का बेटा खुद इस षड़यंत्र में शामिल था।
बिहार पुलिस के पांडे डीजीपी ने तुरंत ही बिहार में रिपोर्ट लिख ली और इस बहाने
सीबीआई से जाँच की सिफारिश कर दी। वे समझे कि पिंजरे के तोते को मौका दे कर हम
चुनाव निबटा लेंगे। कुछ सन्देह था सो उसके सत्तरह करोड़ रुपये गायब होने की हवाई
खबर के नाम पर ईडी की जाँच बैठा दी। मामले को और फूलप्रूफ बनाने के लिए नार्कोटिस
कंट्रोल ब्यूरो जिसके पदाधिकारी के रूप में उन अस्थाना को पदस्थ कर दिया गया था
जिन्हें सीबीआई का डायरेक्टर नहीं बना पाये थे। वाह! क्या प्लान था, छब्बे बन ही
जाना था। मुम्बई में भाजपा को लतिया कर भगा देने वाली शिव सेना से भी बदला पूरा हो
जाना था। उसके बहाने काँग्रेस और एनसीपी के शरद पवार को भी दबाव में ले लेना था। गुलाम
मीडिया तो पहले ही से कहानियों की भांग घोंटने बैठा था।
पर, सीबीआई को हत्या का या आत्महत्या के लिए विवश किये जाने का कोई सबूत नहीं
मिला। ईडी को लेन देन के हिसाब के जो सबूत मिले वे उसने राष्ट्रहित में उजागर नहीं
किये। अब बचा नारकोटिक्स सो वह तो इतना फैला हुआ था कि स्वयं नारकोटिक्स ही घेरे
में आ गया कि जब इसका जाल इतना व्यापक था तो ये नार्कोटिक्स विभाग वाले क्या कर
रहे थे? इस जाल में केवल मछलियां ही नहीं वे मगरमच्छ भी फंस सकते हैं बाबा भेषधारी
भी फंस सकते थे जिससे मदद मिलती रहती है, वे महाजन भी जिनकी फाइलें गायब करके और
अनेक स्वाभाविक या अस्वाभाविक मौतें होने के बाद बचा लिया गया था।
बेचारा बिहार का सपूत जिसे शहीद बना कर पेश करना था वह एक आदतन चरसी, अनेक
महिलाओं के साथ सम्बन्ध रखने वाला और लगभग सारे लेनदेन में एक दो तीन नम्बर का
हिसाब किताब रखने वाला सिद्ध हो चुका था जिसने राज ठाकरे द्वारा बिहारियों के
खिलाफ हिंसक अभियान चलाने पर दुम दबा ली थी और लाक डाउन में प्रवासी बिहारी
मजदूरों की कोई मदद नहीं की थी।
चौबे जी छब्बे बनने चले थे दुबे से कहीं दवे ना बन गये हों।
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