व्यंग्य
कानपुर वाला विकास
दर्शक
नीरज जी की काव्य यात्रा कानपुर से ही परवान चढी। वहाँ वे पढे भी, नौकरी भी की
और प्रेम भी किया, जिसके वियोग में गुजरते हुए कारवां का गुबार भी देखा। वे कानपुर
के नाम लिखे अपने पत्र का प्रारम्भ करते हैं-
कानपुर आज याद तेरी
फिर आयी
रंग कुछ स्याह मेरी
रात हुयी जाती है
ये आँख पहले भी बहुत
रोई थी तेरे लिये
अब तो लगता है कि
बरसात हुयी जाती है
इस लम्बे काव्य पत्र में वे लिखते हैं कि-
और तब तक के लिए
अपने कारखानों को
खूब समझा दे कि ना
उगलें जहर धरती पर
यूं ही पीती ना
रहेगी मेरी ये धरती धुंआँ
यूं ही भूखी ना
रहेगी मेरे भारत की नजर
कानपुर जो कभी मेनचेस्टर कहलाता था, में कारखाने और उनका धुंआँ तो बन्द हो गया
किंतु विकास बन्द नहीं हुआ। वह विकास दुबेओं के रूप में फैलता गया। सबका साथ सबका
विकास का नारा ऐसा फूला कि विकास की जरूरत हर पार्टी वाले को पड़ने लगी। बहुजन
पार्टी की बहिनजी जिनकी पार्टी का नारा कभी उसकी जाति को चार जूते मारने का आवाहन
करता था, वे कहने लगीं कि विकास जल्दी स्वस्थ हो जाओ व जहाँ से चाहो वहाँ से चुनाव
लड़ लो। एक बार वह लड़ भी चुका था। समाजवादी पार्टी ने तो अपने टिकिट पर उसकी पत्नी
को जनपद का सदस्य ही बनाया हुआ था। भाजपा के दो विधायक उसकी मदद के लिए उतावले
रहते थे। उसके पास सारे गुण थे क्योंकि उसके पास पैसा था व ‘सर्वे गुणः कांचनम
आसवंते’।
सबके अपने अपने नारों में विकास हैं। इन दिनों कानपुर वाले जिस विकास की चर्चा
है, जिस पर पुलिस वाले हाथ डालने से डरते थे, जिस पर पाँच लाख का इनाम हो वह चीख
चीख कर कह रहा था कि मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला। इस विकास ने सैकड़ों किलोमीटर
की पर्यटक की तरह कानपुर से फरीदाबाद और फिर उज्जैन की तीर्थ यात्रा की महाकाल के
मन्दिर में पूजा की तो अर्चना भी की होगी। उसकी मृत्यु के अगले ही दिन सरकारी
विभाग जाग गये और उसके करोड़ों के मकानों व संस्थानों का पता लगा लिया। जितना पता
चला वह तो शायद उसकी कुल सम्पत्ति का मामूली हिस्सा होगा। भारतीय पुलिस व प्रशासनिक
मशीनरी को उसका बल याद दिलाना पड़ता है, तब जागती है। आठ पुलिस वालों को मार कर
विकास ने उनका बल याद करा दिया था।
जिसके पास अपराधों से कमायी गयी इतनी अटूट दौलत हो और जिसके सिर पर मौत आ बैठी
हो, जिस पर पाँच लाख का इनाम घोषित हो गया हो, वह जिन्दा रहने के लिए कितना पैसा
खर्च कर सकता है इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है। वह जब मध्य प्रदेश के लिए चला
होगा तो अपनी जान की सुरक्षा का वादा ले कर ही चला होगा। जब किसी बड़े आदमी से कोई
मिलने जाता है तो कुछ ले कर ही जाता है। सुदामा तक तन्दुल ले कर गया था, फिर यह तो
विकास था जिसका पैसा लखनऊ से दुबई तक फैला हुआ था। मध्य प्रदेश में चाहे मेडिकल
कालेज में प्रवेश हो या कोई सरकारी नौकरी हर चीज पैसों में मिलती है। जब इतने
अपराधी संसद, विधान सभा, में पहले से मौजूद हैं तो एक और सही। आपदा को अवसर में
बदलना उन्हें आता है। उसने जरूर अपनी जेब खाली कर दी होगी। पर धोखा हो गया। आत्मा
मध्य प्रदेश में खाली करा ली गयी व शरीर उत्तर प्रदेश वालों को सौंप दिया गया। वे
खाली शरीर का क्या करते ! सो गाड़ी फिसल गयी और जोर जोर से मैं विकास दुबे कानपुर
वाला कहने वाला भागने लगा। शायद!
इस तरह सबने साथ तो दिया और विकास सबका हो गया पर सबका विश्वास नहीं पा सका।
भरोसा नहीं हो रहा कि मंत्रिमण्डल के विभाग तक ऊपर से पूछे बिना न बांट सकने वालों
ने सब कुछ अपने स्तर पर कर लिया होगा।
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