व्यंग्य
दाढी वाले
दर्शक
वह व्यक्ति उस सुदर्शन पुरुष को बहुत गम्भीरता से देख रहा था। उसने आगे से
देखा, पीछे से देखा , ऊपर से देखा, नीचे बैठ कर देखा, और इतना देखा कि वह परेशान
हो गया। घबरा कर उसने पूछा कि भाईसाहब क्या बात है, आप मुझे इतना क्यों देख रहे
हैं?
उसने फिर एक बार उस पर भरपूर नजर डालते हुए कहा – सिर्फ दाढी मूंछों का फर्क
है, बरना आपकी शक्ल बिल्कुल मेरी पत्नी से मिलती है।
“दाढी मूंछें?” उसने अपने चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा कि मेरी तो दाढी मूंछें
हैं ही नहीं।
“ बिल्कुल ठीक, बस यही तो फर्क है, मेरी पत्नी की हैं’। उसने फिर एक बार उस पर
निगाह डाल कर कहा।
दाड़ी मूंछें रखने का ना तो कोई नियम है और ना ही कानून, जब जिसका मन होता है
तब वह रख लेता है और जब मर्जी होती है तब मुंढवा लेता है।
अपने आप को संत बताने वाले भिंडरावाले कहा करते थे कि आदमी तो स्वभावतः सिख ही
होता है। यह तो कैंची और ब्लेड है जो उसे गैर सिख में बदल देता है। उनके इस बयान
पर उनके जाने के बाद एक पत्रकार ने यहाँ वहाँ देख, धीरे से फुसफुसा कर कहा था कि
आदमी तो पैदाइशी दिगम्बर जैन मुनि भी होता है। इन दिनों बैक टु द नेचर वाले लोग
बढते जा रहे हैं कोई राम वन गमन पथ तलाश रहा है तो कोई बाबर के जमाने में जाकर
रामजन्म भूमि की पुनर्स्थापना में जीवन की सार्थकता मान रहा है। जो बहुत पीछे नहीं
जाना चाहते वे जवाहरलाल नेहरू के वंशजों की ही खोज में लगे हैं। काला धन कोई नहीं
तलाशता कि पन्द्रह लाख न सही पन्द्रह सौ रुपये ही मिल जायें।
शोएब अंसारी की एक शानदार फिल्म ‘खुदा के लिए’ में मौलाना की भूमिका करने वाले
नसरुद्दीन शाह अदालत में कहते हैं कि इस्लाम में दाढी है, दाढी में इस्लाम नहीं।
किंतु उन जैसों की बात आज कहीं नहीं सुनी जा रही। जिन मजहबों की दम पर दक्षिण पंथ
खड़ा और बड़ा हो रहा है उनमें निहित अन्ध विश्वासों की जड़ें उनके राजनीतिक विरोधी भी
नहीं काट रहे हैं।
हिन्दी के एक हास्य कवि काका हाथरसी भी दाढी रखते थे और अपना पक्ष मजबूत करने
के लिए उन्होंने दाढी वालों का पूरा इतिहास खोज निकाला था। वे लिखते हैं कि –
काका दाढी राखिए,
बिन दाढी मुख सून
ज्यों मंसूरी के
बिना, व्यर्थ देहरादून
व्यर्थ देहरादून,
इसी से मुख की शोभा
दाढी से ही प्रगति
कर रहे संत विनोबा
मुनि वशिष्ट यदि
दाढी मुख पर नहीं रखाते
तो क्या वे भगवान
राम के गुरु बन पाते
रूजवेल्ट, बर्नार्ड
शा, टालस्टाय, टैगौर
लेनिन लिंकन बन गये जनता
के सिरमौर
जनता के सिरमौर यही
निष्कर्ष निकाला
दाढी थे इसलिए
महाकवि हुए निराला
कह काका नारी सुन्दर
लगती साड़ी से
इसी तरह नर की शोभा
बढती दाढी से .... इत्यदि
पता नहीं हमारे प्रधानमंत्री किस सौन्दर्यबोध, किस प्रेरणा और लक्ष्य से दाढी
बढा रहे हैं कि लोग अपनी भावना के अनुसार प्रभु मूरत देख रहे हैं। अगर राज नारायण
की प्रतिज्ञा की तरह ट्रम्प की जीत के लिए बढाई हो तो आगे चार साल में न जाने और
कितनी बढ जायेगी। इमरजैंसी में सन्यासी बनने की असत्य कथा सत्य कथा में बदल सकती
है। हो सकता है कि 25 दिसम्बर को सांता क्लाज बनने तक ही रखी हो। अर्नब गोस्वामी
की बोलती बन्द हो गयी बरना वह पूछ सकता था कि नेशन वांट्स टु नो ....... पर शायद
वह भी नहीं पूछ पाता, क्योंकि उसका नेशन तो विपक्षियों से ही पूछना जानता है।
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