व्यंग्य
हाथरस की बेटी और उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री
दर्शक
यह वह समय है कि अगर कोई घर में आग भी लगा दे तो घर का चौकीदार अपनी
जिम्मेवारी से बचने के लिए कह देगा कि यह तो दिवाली हो रही है, या होली जल रही है।
जो लोग इसे आग मान रहे हैं वे देशद्रोही है, विदेशी एजेंट हैं। ये लोग ही तुम्हें
आँखें खोल कर देखने के लिए भड़का रहे हैं बरना-
मूंदहि आँख कितहुं
कछु नाहीं
सच देखने के लिए तो
उस मीडिया को देखो जो हमारी गोदी में बैठा हुआ है। जो हमारे इशारे पर दिखाया जा
रहा है वही सच है।
लाल बुझक्कड़ों की हमारे यहाँ कोई कमी नहीं है। कभी एक भले मानुष के यहाँ बच्चा
पैदा हुआ तो उसने कुछ दिन बाद जब उसके सिर पर हाथ फेरा तो पाया कि उसका तलुआ धड़क
रहा है। बेचारा भागा भागा लाल बुझक्कड़ के पास गया और उसे बच्चे की दशा बतायी।
गम्भीर चिंतन के बाद लाल बुझक्कड़ ने सलाह दी कि उसके सिर में कीला ठोक दो। उसने
तेजी से घर लौट कर ऐसा ही किया। क्यों न करता, अन्ध भक्त ऐसे ही होते हैं। पर वह
बच्चा कीला ठोकते ही मर गया। पूरे घर में कोहराम मच गया। जब लाल बुझक्कड़ से पूछा
कि ऐसी सलाह क्यों दी जिससे बच्चा ही मर गया।
लाल बुझक्कड़ बोला कि बेबकूफो, पहले यह बताओ कि तुलुआ धड़कना बन्द हुआ कि नहीं?
सब बोले हाँ वह तो बन्द हो गया। लाल बुझक्कड़ ने ताली बजायी, उस समय उसके पास थाली
नहीं थी, नहीं तो वह भी बजाता। बोला कि हमारे पास जिस समस्या को लेकर आये थे वह
खत्म हो गयी। बच्चा जिये या मरे उससे हमें कोई मतलब नहीं। आजकल ऐसे ही लाल बुझक्कड़
हमारे यहाँ की सरकारों में बैठे हुये हैं। घास काटने गयी किसी दलित लड़की की गरदन
तोड़ दी जाती है, रीढ तोड़ दी जाती है और वह मृत्यु पूर्व बयान दे कर जाती है कि
उसके साथ गाँव के किन किन लड़कों ने बलात्कार किया। जो पुलिस रिपोर्ट लिखने तक में
हीलाहवाली करती है वही अस्पताल से लाश लाकर रात के बारह बजे लाश को जलाने में ऐसी
तत्परता से काम करती है जैसा काम तो उन्होंने अपने बाप के मरने पर भी नहीं किया
होगा। जब देश भर में आक्रोश उठता है तो वहाँ का मुख्यमंत्री कहता है कि डाक्टर ने
तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं की है। अब वह न केवल उस लड़की
की मौत को भूल जाता है, उसकी गरदन तोड़ने को भूल जाता है, उसकी रीढ टूटने को भूल
जाता है बस लालबुझक्कड़ की तरह इस बात पर ताली बजा रहा होता है कि डाक्टर ने
रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं की है। वह बलात्कारियों के पक्ष में नजर आने
लगता है, वह पुलिस वालों को बचाता नजर आता है क्योंकि उसे तो विपक्षियों की बात को
गलत ठराने का तकनीकी बहाना मिल गया।
आक्रोशित जनता को भटकाने के लिए उन्होंने हिन्दू मुस्लिम भेदभाव पैदा करने में
जो वर्षों लगाये हैं वे काम आ जाते हैं। वे कहते हैं कि यह प्रदेश में माहौल खराब
करने की विदेशी चाल थी। वे चार मुस्लिमों को पकड़ लेते हैं और सारा ठीकरा उनके सिर
पर फोड़ते हुए भटकाने लगते हैं। गुजरात में भी यही तरीका अपनाया गया था। जिस
मुसलमान को मार दिया जाता था वह गुजरात के नेताओं की हत्या करने के लिए आया होता
था। कश्मीर में भी ऐसी ही घटनाएं होने लगी हैं।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री तो वह है जो बलात्कार को सबसे बड़ा बदला मानता है
और किसी हिन्दू लड़की के साथ किसी मुसलमान अपराधी द्वारा बलात्कार का बदला कानून से
सजा दिला कर नहीं अपितु कब्र की लाशों के साथ बलात्कार कर के लेने की सरे आम घोषणा
करता है।
नीरज जी की पंक्तियां
हैं-
देख कर वक्त का ये अजब
फैसला हमको रोते हुए भी हँसी आ गयी
मोमबत्ती भी जिनसे नहीं जल सकी, उनके हाथों में सब रौशनी आ गयी
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