व्यंग्य
हमारे डाक्टर कोरोना
मास्टर
दर्शक
एक पुरानी कहावत है-
पंडित वैद्य मशालची , इनकी उल्टी रीत
औरन गैल बताय कें आपहु नाकें भीत
अर्थात पूजा पाठ
कराने वाला पुरोहित, वैद्य और मशाल से रास्ता बताने वालों की उल्टी रीति होती है,
जो दूसरों को तो लम्बा रास्ता बताते हैं और खुद दीवार फांद कर निकल जाते हैं।
इन दिनों दुनिया बीमार चल रही है और दुनिया में हमारा जगतगुरू देश भारत भी
शामिल है। यहाँ हरी चटनी के साथ समोसा खाने से कृपा बरसने लगती है और लाल चटनी के
साथ खाने से कृपा चली जाती है। ऐसे नायाब उपाय बताने वाले चिक्त्सिकों के दरबार
में भी मोटी मोटी फीस चुकाये जाने के बाद ही दर्शन मिलते हैं व जल्दी नम्बर के लिए
ऊपर से कुछ देना पड़ता है। ऐसे देश में कोरोना ने लाक डाउन करा दिया तो करोड़ों
मजदूरों की नौकरी चली गयी, दुकानदारों का व्यापार चला गया, फिल्म कलाकार खेती करने
लगे, मंच के कवि घर में बैठ कर भजन गाने लगे। जो लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे थे वे
हाथ पर लात धर कर बैठ गये। दफ्तर वालों की ऊपरी कमाई तो चली ही गयी, निचली कमाई
में भी कटौती शुरू हो गयी। पैकेज वालो के पैकेज में लीकेज शुरू हो गया। जो
ब्रांडेड कमीजें और जूते ही खरीदते थे वे लोकल पर वोकल होने लगे। उन्हें समझ में
आया कि ब्रांड के इतने ज्यादा पैसे चुकाने पड़ते है।
हमेशा पाजटिव की बात करने वाले ‘सर्वे भवंतु निगेटिवः” की बात करने लगे। जो
पाजटिव निगल गया उसे संस्कृत का वह श्लोक याद आ गया जिसमें कहा गया था कि वैद्यराज
तुम्हें नमस्कार है, क्योंकि तुम यमराज के बड़े भाई हो। यमराज तो केवल जान ही ले
जाते हैं, तुम तो जान और धन दोनों ले जाते हो। अस्पताल में इलाज का एक बिल देखने
को मिला जो चार लाख पचपन हजार का था, जिसमें दवा का कुल खर्च चार सौ पांच रुपये का
था। बाकी मरीज की पीपीई किटों से लेकर डाक्टर और नर्सों से लेकर वार्ड व्याय की
किटों का खर्च जुड़ा हुआ था। यह खर्च सारे मरीजों से वसूला जाता है जबकि वे ही
डाक्टर, वे ही नर्सें, उसी एक किट को पहिने दिन भर मरीजों की पहरेदारी करती हैं कि
कहीं वह भाग न जाये।
बहुत चर्चा है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बिना सेनेटाइज किये विधायक
खरीद लिये सो वे भी संक्रमित हो गये। सलाह यह थी कि जो भी चीज खरीद कर लायी जाये
उसे पहिले सेनीटाइज कर लिया जाये।
इब्त्दा-ए-इश्क है रोता है क्या, आगे आगे देखिए होता है क्या।
अभी तो उपचुनावों की
अग्नि परीक्षा बाकी है।
शिकायत यह है कि सरकार में जनता को उपचार बताने वाले जितने निर्मल बाबा हैं वे
अपनी पार्टी वालों का उपचार प्राइवेट अस्पतालों के एलोपथी के डाक्टरों से करवाते
हैं, पर जनता को गौमूत्र चिकित्सा की सलाह देते हैं। इलाज की बात तो जाने दीजिए,
अमित शाह ने तो बीमारी तक को गोपनीय रखा। सम्बित पात्रा ने गोदी मीडिया की गोद में
बैठ कर नहीं बताया कि उन्होंने देशी गाय के मूत्र से उपचार किया या जर्सी गाय के
मूत्र से। म.प्र. विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी को अस्थायी रूप से सुशोभित करने
वालों ने तो राम जन्मभूमि मन्दिर के नये माडल की नींव पड़ते ही कोरोना के भाग जाने
की घोषणा कर दी। अपनी चर्चित छवि से साध्वी की छवि बनाने वाली एक सांसद ने तो उपाय
बता दिया कि दिन में पांच बार हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ करने से कोरोना भाग
जायेगा। अब यह पता नहीं कि यह पांच बार का समय उन्होंने नमाज की तर्ज पर उसी समय
करने के लिए कहा है या किसी दूसरे समय!
बहरहाल खबर यह भी है जिन्हें रोज रोज दर्शनों का सौभाग्य मिलता था उन तिरुपति
बालाजी के एक सौ चालीस पुजारी पाजटिव पाये गये हैं।
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