सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

व्यंग्य स्वामियों से पीड़ित सरकार

 

व्यंग्य

स्वामियों से पीड़ित सरकार

दर्शक

हमारी मोदीशाह सरकार को कई व्याधियां घेरे हुए हैं, जिनमें से एक स्वामी व्यधि भी है। जो खुद को स्वामी समझते हैं उनके भी स्वामी हैं। पहली गलती मोदी ने सुब्रम्यम स्वामी को पार्टी में शामिल करके की थी जो अजातमित्र हैं, वे जिसके साथ भी रहे उसका पतन उन्हीं के सहयोग से हुआ है। जयललिता हो, अटलजी हों या राजीव गाँधी हों, उन्होंने दोस्त बनने के बाद उनके कच्चे चिट्ठे खोल कर रख दिये। जब देश में इमरजैंसी के बाद जनता पार्टी सरकार बनी थी तब वे उसमें शामिल थे और दारूबन्दी का विरोध करने वाले तत्कालींन प्रधानमंत्री मोरारजी देसई मंत्रिमण्डल के बारे में उन्होंने बयान दिया था कि केवल तीन मंत्रियों को छोड़ कर उनके मंत्रिमण्डल के सारे सदस्य शराब पी लेते हैं।

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी पहली विदेश यात्रा फ्रांस की ही थी। मोदी फ्रांस की धरती पर उतर ही नहीं पाये थे कि स्वामी का बयान [v1]  गया था कि राफेल विमान का सौदा ठीक नहीं है। तब तक देश को पता ही नहीं था कि मोदीजी राफेल के बारे में बात करने के लिए भी गये हैं। बाद में स्वामीजी मान भी गये। कैसे माने किसी को पता नहीं। बाद में तो जब राहुल गांधी ने राफेल से स्म्बन्धित तरह तरह के आरोप भी लगाये तो उनके मुखारविन्द से शब्द नहीं फूटे। उन्होंने यह जरूर कहा था कि उन्हें भाजपा में शामिल करते समय वित्त मंत्री बनाने का वादा किया गया था। बीच में उन्होंने यह भी कहा था कि मोदी का कोई भी वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था का जानकार नहीं है। गाहे बगाहे वे अन्धभक्तों की जमात में सरकार की नीतियों से असहमति भी जताते रहते हैं जिसका कोई जबाब नहीं देता। जिन प्रवक्ताओं की जुबान कैंची की तरह चलती है उनकी धार भी सुब्रम्यम स्वामी के नाम पर मौथरी हो जाती है। उन्हें पार्टी से निकाल भी नहीं सकते बरना बचे खुचे राज भी बाहर हो सकते हैं। उगलत निगलत पीर घनेरी।

उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में जब मोदी और शाह दोनों ही जी जान से जुटे हुए थे और कार्यकर्ताओं के समने जीत का गुब्बारा फुलाये जा रहे थे तब उसमें सुई चुभोने वाला भी एक स्वामी निकला। स्वामी प्रसाद मौर्य ने सही समय पर गुब्बारे में सुई चुभो दी और हवा निकलते हुए देखने लगे। उन्हें भी जब बहुजन समाज पार्टी से स्तीफा दिलबाकर लाया गया था तब वे विधानसभा में उस पार्टी की ओर से विधायक दल के नेता थे। जाहिर है कि यह सौदा भी कोई सस्ता सौदा नहीं रहा होगा। उनकी बेटी को संसद में भेजा गया था। कहा जा रहा है कि इस बार बेटे को टिकिट देने का वादा निभाने में आनाकानी की जा रही थी। यही कारण रहा कि बहुजन समाज पार्टी छोड़ कर भाजपा में पधारे स्वामी परसाद को भाजपा ताबूत नजर  आने लगी और वे उस ताबूत में आखिरी कील ठोकने को उतावले नजर आने लगे।

वैसे भी खुद को भगवा दिखाने वाली भाजपा में स्वामियों, संतों, महंतों, की कमी नहीं है जिनमें जनता के भरोसे को वोटों में भुनाने के लिए वे उनसे गलबहियां करते रहते हैं, किंतु अपने कृत्यों से वे कभी कभी भाजपा पर ही भारी पड़ जाते हैं। वे इन स्वामियों को भी छोड़ नहीं सकते। सदन में बहुमत बनाने में भी इनकी भूमिका रहती है।

हम [प्रधान] सेवक, तुम स्वामी कृपा करो भर्ता ,

स्वामी जय जगदीश हरे   

 


 [v1]

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